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Saturday, July 24, 2010

छुवा छूत का रोग

छुवा छूत का रोग
हालिया दिनों मैं चर्चा का विषय रहा ,यह छुवा छूत का समाचार था, खबर है कि किसी सरकारी स्कूल के बच्चों ने एक दलित महिला के हाथ का बना खाना खाने से इनकार कर दिया ,इस पर कुछ विचारकों ने अपनी अपनी टिपण्णी प्रस्तुत की , हिंदी के जाने माने लेखक डाक्टर महीप सिंह ने २२ जोलाई २०१० को ,,देनिक जागरण,, में एक गंभीर लेएतराज लेख लिखा ,उन्हों ने कई ऐसी जगहों की निशानदही की,जहाँ यह बीमारी खूब फल फूल रही हे ,और इसे रोक ने वाला कोई नहीं ,
१७ जनवरी २००९ को ,, दैनिक जागरण ,,में एक समाचार में बताया गया था कि, भूनेश्वर में परदेश की एक दलित मंत्री मंदिर से पूजा करके निकली तो ,मंदिर का शुद्धिकरण किया गया ,
इस परकार के समाचार कोई नयी बात नहीं ,यह हम आए दिन देखते और सुनते रहते हें ,और इनके विरुद्ध विद्द्वानगाणों के विचार भी पढ़ने को मिलते रहते हें ,परन्तु क्या आपने सोचा हे कि, इक्कीसवी सदी के इस आधुनिक युग में भी यह वबा हमारा पीछा क्यों नहीं छोढ़ रही हे ,तो आइये मैं आप को बताता हूँ ,,,बात असल यह हे कि यह मुद्दा उन तत्त्वों के लिए विचारणीय हे ,जो सीना तान कर कहते हें ,,, गर्व से कहो हम हिन्दू हें ,, हिन्दू होने का मतलब क्या हे , यही न कि आप उस कि विचारधारा को मानेंगे ,, और उस की विचारधारा की बुनीयाद है वर्ण व्यवस्था और यह व्यवस्था टिकी हुयी ही छुवाछूत पर हे ,,आप हिन्दू धर्म की कोई भी धर्म पुस्तक उठालें ,इतनी सफाई के साथ उस में छुवाछूत आप को मिलेगी की जिस का इंकार संभव नहीं ,मसलन ,,मनुस्मार्ती,, को लें,, उस का आरम्भ ही चार वर्णों की बात से होता हे ,फिर दूसरे अद्ध्याय के १७५ वें श्लोक में शूद्र के लिए वेद पाठ वर्जित किया गया हे ,चोथे अद्ध्याय के १८० वें श्लोक में ब्रह्मन को कहा गया हे की वः शूद्र को कोई परामर्श भी न दे ,यहाँ तक कि उसे हवन के बाद का परसाद तक देने कि मनाही हे ,पांचवे अद्ध्याय के ९५ वें श्लोक में उसकी अर्थी उस रस्ते से भी लेजाने की अनुमति नहीं हे जिस से ब्रह्मन की जाती हे ,
इस पारकर के दर्जन भर श्लोक आप को इस ,,स्मर्ति,, में मिलेंगे , जो दलित को नीच साबित कर रहे होंगे ,,
केवल म्नुस्मारती ही की बात नहीं , महाभारत, हो या ,,रामायण,,छुवाछूत और ऊँच नीच की बात सब में हे ,रामायण के नायक श्री राम ने तो शम्बूक नामी दलित का वध ही इस कारन से कर दिया था कि उस ने दलित हो कर भी जपतप करने का साहस किया था ,और राम चरित्र मानस के रचयता ने तो यहाँ तक लिख दिया कि ,,, ढोल गंवार शूद्र और नारी
यह सब हें ताडन के अधिकारी

ऐसे में प्रश्न यह हे कि आखिर छुवाछूत का यह रोग कैसे ख़त्म हो सकता हे ,,
मैं जानता हूँ कि आज कल कुछ लोग धर्म के इन आदेशों ,उपदेशों को तोड़मरोड़ कर कुछ का कुछ अर्थ बताने का पर्यास करते हें , परन्तु कोन नहीं जानता कि सच्चाई क्या हे ,,इस सच्चाई को साबित करने के लिए केवल वर्तमान की स्थिति ही पर्याप्त हे ,,,

Sunday, July 11, 2010

उजाड़ ,बंजर ,रेतीली सोच

किसी भाई के ब्लाग पर एक महाशय ने इस्लाम धर्म पर टिप्पणी करते हुए उसके पर्वर्तक हजरत मुहम्मद साहब सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम के वतन के हवाले से इस्लामी कवानीन का मजाक उड़ाया है,उन के शब्दों में यह अरेबियन सोच हे और उजाड़ ,रेगिस्तानी ,बंजर ,और रेतीली सोच हे ,,,,, अरेबियन सोच ,उजाड़ ,बंजर ,रेतीली सोच ,इन उपाधियों का शुक्रिया ,,,,?,,,,,मगर मेरे भाई में यह भी बतादुं कि यह वही रेगिस्तानी सोच थी जिस ने सब से पहले दुनिया को यह पैगाम दिया कि सारे इनसान बराबर हैं ,न कोई स्वर्ण हे न कोई शूद्र ,जिसे आज न केवल भारत अपितु सारी दुनिया मानती हे , वरना , भारतवर्ष को तो आप जैसी सोच के लोगों ने चार खानों में बाट कर तबाह रख दिया था , और हाँ यह उसी रेगिस्तानी की सोच थी कि मां के पेट में लड़का हो या लड़की , उसे दुनिया में आने का पूरा पूरा हक हे ,जो उसका यह हक उस से छीने वह अपराघी हे , आज आप भी इसे ही मानते हें ,आखिर क्यों आपने उस रेगिस्तानी की बात मानी,, ? ,,,और उस बंजर रेतीले अरेबियन क्षेत्र के निवासी की सोच के कुर्बान जाइये ,कि उस ने सारे संसार में सब से पहले महिला अधिकारों की आवाज़ उठाई और कहा कि बाप की जायदाद में बेटे की भाँती बेटी भी हिस्सेदार है ,आज आप के देश के नेताओं ने संविधान में संशोधन करके इस रेगिस्तानी सोच को क्यों अपना लिया ,,?,, और उस रेगिस्तानी ने ही हमें इस बात का पाबंद किया कि अगर किसी महिला का पति मर जाये तो तुम्हें कोई हक नहीं कि तुम उस महिला को भी मार डालो ,,हम ने यह उसी से सीखा हे ,,क्यों कि सब से पहले उसी ने इस सम्बन्ध में आवाज़ उठाई थी वर्ना हम तो इस से पहले विधवा पत्नी को उस के पति की चिता के साथ ही जिंदा जला दिया करते थे ,,आज भारत में भी इसी कानून को फालो किया जाता हे ,यह तो रेगिस्तानी सोच थी आप इसे छोड़ क्यों नहीं देते ,? ,,
इन सब बातों को सामने रखये और सोचिये कि सच्चाई सच्चाई होती हे वह अरेबियन या भारतीय में नहीं बाटी जासकती ,इस लिए बुद्धिमान वह हे जो जितनी जल्दी हो सके सच्चाई को स्वीकार करले ,अगर आप सच्चाई को क्षेत्रों में बांटेंगें तो में पूछूंगा कि अणु ,परमाणु की थ्योरी तो यूरोपियन हे फिर आप को उसे भी न मानना चाहिए ,,? ,, इन्फार्मेशन टेक्नोलोजी भी बाहर से आई हे इसे भी छोड़ देना चाहिए ,,,?,,,,इस लिए मेरे भाई अक़ल से काम लें ,और क्षेत्रों में न बट कर सच्चाई को स्वीकार करें और मान लें कि उस ,बंजर रेगिस्तान के रहने वालेने जो कुछ भी कहा है उस का एक एक शब्द सही है ,,