श्री महक जी आज एक मुद्दत के बाद ब्लॉग खोला तो आप नज़र आए ,श्री आनन्द जी ने आप की समसियाओं का समाधान किया हे ,मुझे अच्छा नहीं लगता की उस बात पर टिपण्णी करूँ जिस पर उन्हों ने हाथ जोड़ कर चुप रहने को कहा हे ,परन्तु सोचता हूँ की सच को छुपाने वाला भी गुनाहगार हे ,इस लिए मुआफी के साथ कुछ बातें,,,श्री आनन्द जी ने स्वय ही माना हे की इन धर्म पुस्तकों में छेड़ छाड़ हुयी हे , अब कहने को तो कुछ रहता नहीं परन्तु अफ़सोस हे की उनहों ने फिर भी गलत को सही ठहरने का पर्यास किया हे ,किया वह बताएगें की वर्ण व्यवस्था स्वयं मनुष्य के शरीर में हे तो बाहर समाज में क्यों फेली हुयी हे ,ओर अगर विधवा को सती उस के योन शोषण के भय से किया जा ता था ,तो क्या उस समय का हिन्दू इतना बुजदिल था ,जो बहुसंख्यक होकर भी अपने सामने अपनी विधवाओं को शोषण के लिए किसी को भी लेजाने देताथा,ओर वह शोशनकर्ता कोन थे जो केवल विधवाओं को ही उठाते थे,ओर कुवारियों को ताक़तवर होते हुए भी छोड़ जाते थे ,यह अपने गुनाह का इलज़ाम दूसरों को देना हे ,एक बार राष्ट्रपति महोदया ने कहा था कि पर्दा पर्था हिदुओं में उन मुग़ल शहजादों के कारण आई जो बहु बेटियों को उठालेजाते थे ,मेरा प्रश्न यह हे कि जिन शहजादों के सामने बड़े बड़े दुर्ग आड़ नहीं बनते थे उनके सामने बारीक कपडे की झिल्ली का एक पर्दा केसे आड़ बन जा ता था ? आपने मेरी जिस किताब का हवाला दिया हे उसमे मेने यह बताया हे की आज दुनया में केवल कुरान की व्यवस्था चल सकती हे ,हिन्दू पुस्तकों के बारे में आनन्द जी कह ही चुके हें की वह पुराने समय की बात हो गयी हें ,जब की कुरान की किसी एक बात को भे एसा नहीं कहा जा सकता, फिर भी लोग इस्लाम की अर्थात सच्चाई की मुखालफत करते हे ,,,आप मेरी जिन बातों से सहमत नहीं हे उनको आपने गहराई से नहीं समझा ,वक्त मिला तो उन पर फिर कभी बात होगी ,अगर अल्लाह ने चाहा तो,,,, ,,
May 8, 2010 11:02 AM
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