Saturday, May 22, 2010
ब्लॉग की दुनिया में भी भांत भांत के लोगों से मुलाक़ात होती हे .अब देखिये न एक हे लफ़्ज़ों के जजीरे की शाहजादी वह कहती हें की उनका ईमान खतरे में हे ,क्यों
ब्लॉग की दुनिया में भी भांत भांत के लोगों से मुलाक़ात होती हे .अब देखिये न एक हे लफ़्ज़ों के जजीरे की शाहजादी वह कहती हें की उनका ईमान खतरे में हे ,क्यों की उन्हें बचपन से या पचपन से सवाल पूछने की आदत हे ,उनके बकोल वह मदरसे में दर्जा दो तक पढ़ी हें जहाँ उन्होंने अपनी मुल्लानी से पुछा था कि जब मुसलमान ही अल्लाह के सच्चे धर्म के मानने वाले हें तो फिर वह दुसरे मज़हब वालों की मुरादें क्यों पूरी करता हे ,मुल्लानी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया ऊपर से कहा कि तुम्हारा ईमान खतरे में हे ,आखिर क्यों? इस लिए की जेसी नकटी देवी ऐसे ही ऊत पुजारी ,मुल्लानी अगर मुल्लानी न हो कर पढ़ी लिखी होती तो बतादेती की कुरान में अल्लाह कहते हे की वह सारेजगत के पालनहार हें (रब्बुल आलमीन ) रब्बुल मुस्लिमीन नहीं , ओर अल्लाह ने तो हर हर जिव को रिजक देना अपनी ज़िम्मेदारी में ले रखा हे ,ओर उसने कहा हे ( वमा मिन दाब्बतिन इल्ला अलाल्लाही रिज्कुहा ) अर्थात जब वह अपने न मानने वालों को भी रिजक की गारंटी देता हे तो.उनकी मुरादेपूरी करने कि बात तो भुत छोटी हे, परन्तु मुल्लानी क्या पतातीं वह तू मुल्लानी थी व्ह्भी फिरदोस कि ,उसने दन्त ओर पिलानी शुरू करदी कि तुम्हारा इमान खतरे में हे ,अब यह सारा मुल्लानी का गुस्सा कुनान पर उतर रही हे ,ओर कहती हें ,,,ताक पर रखदो इसी सब किकाबों को .........इन्हें कुरान से नफरत केवल मुल्लानी के कारण हे वरना यह गीता से बहुत प्यार करती हे ,,, इन्हों ने एक जगह लिखा हे .. हम ने गीता पढ़ी हे ओर यह हमारी पसंदीदा पुस्तक भी हे ...इनकी बातों में कितना विरोधाभास हे ,वह देखें इन्होने अपना परिचय देते हुए कहा हे कि इंसानों में भेद भाव करने वाली पुस्तकों को छोड़ कर वह हर परकार कि किताबें पढ़ती हे ,परन्तु जब वह गीता पढ़ती हें तो उन्हें नोवें अध्ध्याय का वह श्लोक नहीं दीखता जिस में कहा गया हे ,,,मेरा आशर्य पाकर नीच कुल में उत्पन्न स्त्रयां ,वेश्य ,ओर शूद्र भी उत्तम गति को प्राप्त होते हें,,असल बात यह हे कि इन्हों ने न ही गीता पढ़ी ओर न कुरान ,,,
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prabhaavit kiya apke aalekh ne.........
ReplyDeleteshukriya !