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फिरदोस जी
आपने इस्लाम और मुसलमानों की बात की तो यह समझने में देर नहीं लगी होगी कि जिन को इस्लाम ओर मुसलमानों से खुदा वास्ते का बेर हे वह तिलमिला उठे ,बिंदास को बुरा लगा ,शिवम् परेशान होगए ,बेरागी को पसीने छूट गए ,ओर उन्हों ने आप को आइना दिखाना शुरू कर दिया ,वह कहते हें कि उन्हें मुसलमानों से इतनी परेशानी नहीं जितनी इस्लाम से हे ,उन्हों ने पुछा हे कि साठ साल का व्यक्ति अगर सात साल की बच्ची से शादी करे तो वह धर्मगुरु केसे हो सकता हे , में उनकी इस बात का जवाब दूंगा ,लेकिन पहले एक बात आप से कह्दुं, आप समझ गयी न उन लोगों की मानसिकता ,जिन के वास्ते आप दिल निकल कर रखती रही हें ,आप ज़िन्दगी भर इमान बेचते रहिये ,मगर बे ईमानों कि तसल्ली नहीं होती,, ओर आप का इमान तो आप के ही बकोल
खतरे में हे, ,,,,,,,,,,,खेर ,,,,बात करते हें ,,,बेरागी की ,,,,उन्होंने जिस जानिब
इशारा किया हे वह यह हे कि हजरत मुहम्मद साहब ने सात साल की आयशा से शादी की थी ,,, ,,,इस सम्बन्ध में आप पहले तो यह बात ध्यान में रखें कि इस्लाम में ना बालिग बच्ची
से शादी जायज़ नहीं , ,,ओर यह मसला इस बात को साबित करने के लिए काफी हे कि यह केवल
बेरागी जेसे लोगों की जानिब से लगाया जाने वाला इल्जाम हे ,,,दूसरी बात यह हे कि इस्लाम की सब से महत्त्वपूर्ण पुस्तक कुरान हे उसमे एसा कही भी नहीं लिखा हे कि मुहम्मद साहब ने सात साल की आयशा से शादी कि थी , ओर जो बात कुरान में न हो ओर वह कुरान के हुक्म से टकराती हो तो हम उसको नहीं मानते ,स्वय मुहम्मद साहब कहते हें की अगर मेरी बात तुम्हे कुरान से टकराती मिले तो उसे दीवार से दे मारो ,इस लिए आप का यह सवाल फिजूल हे ,तीसरी बात रामपुर के तारिक अब्दुल्लाह सहित कई लोगों ने इस मसले पर शोध कर गनितिग्य आधार पर वैज्ञानिक तोर पर यह साबित किया हे कि यह महज इस्राईली (यहूदियों की शाज़िशी) रिवायत अर्थात झूठा ओर मन घडत इलज़ाम हे ,,, आप कहेंगे तो उस शोध का पूरा लेख में आप के सामने परस्तुत कर दूंगा ,,,,मगर फिर कभी ,,,क्यों कि अभी आप से कुछ ओर बातें करनी हें ,,,, आपने कहा हे ,कि जो सात साल की बच्ची से शादी करे वह धर्म गुरु केसे होसकता हे ,? ,,,आप के इस सवाल के हवाले से में पूछना चाहता हूँ कि जो घर से मक्खन चुराए ,नदी में नहाती हुयी महिलाओं के कपडे उठा कर पेड़ पर चढ़ जाए ,वे कपडे मांगें तो कहे पहले बाहर निकलो ,वे हाथों से अपने अशलील अंगों को छुपा कर बाहर
आएं ओर अपने कपडे मांगे तो वह कहे कि पहले हाथ जोड़ कर मुझे नमस्कार करो, एसा व्यक्ति धर्म गुरु केसे हो सकता हे,? ब्रह्मा शिव कि शादी में प्रोहित का कार्य करे तो पार्वती का पैर खुल जाए तो बरह्मा उसका सुन्दर पैर देखकर अस्खलित होजाए ,तो वह धर्म गुरु केसे हो सकता हे, वेद व्यास जंगल से आए ओर कोरों व् पाडुओं की माताओं को गर्भवती कर जाए तो वह धर्म गुरु केसे हो सकता हे ? पवन देवता हनुमान जी , की माता के पास आएं ओर उन्हें देख कर उन पर मोहित होजाएं ,ओर ज़बर दस्ती व्यभिचार कर के उन्हें गर्भवती बनादें तो वह धर्म गुरु केसे हो सकता हे पांच पुरुष एक पत्नी रखें ,ओर जुआं खेलें ओर जुवे में पत्नी को भी दाँव पर लगाएँ ओर मदिरा का सेवन करे तो वह धर्म गुरु केसे होसकता हे ,? ,,, पिता ओर पुत्र एक ही पत्नी से सम्भोग करे तो धर्म गुरु केसे होसकता हे ? बरह्मा जब अपनी बेटी पर ही मोहित होजाए ओर उस के पीछे भागे ओर अस्खलित होजाए तो धर्मगुरु केसे हो सकता हे ,? मुनि गोतम जानकी अप्सरा को नग्न देख कर अस्खलित होजाएं ओर अपना वीर्य सरकंडों में रख दें जिस से वेद शास्त्र्रों के ज्ञाता गुरु किर्पचारी पैदा हों तो वह धर्मगुरु केसे हो सकता हे ?,,, जब इंद्र गोतम की पत्नी अहल्लिया से व्यभिचार करें तो धर्म गुरु केसे होसकता हे ,,?बरहम ऋषि शिवामित्र मेनका के साथ,,,,,,,? संपर्क ,,,,,,,,,,,करें तो धर्म गुरु केसे हो सकता हे ,?,,,, मित्रा मुनि उर्वशी अप्सरा को देख कर काम वासना से पीड़ित हों ओर अपना वीर्य घड़े में छोड़ दें जिस से म्र्म्गमुनिव्शिष्ट पैदा हों तो वह धर्म
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विचारणीय प्रश्न
ReplyDeleteनिंदा योग्य पोस्ट
ReplyDeleteभाई अजनबी पहले ये तय करे कि निंदा किसकी होनी चाहिए बुरा करने वाले की या सच उजागर करने वाले की
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
ReplyDeleteगहन चिंता का विषय
ReplyDeleteउल्लू का पटठा
ReplyDeleteउल्लू का पटठा
ReplyDeleteउल्लू का पटठा
ReplyDeleteउल्लू का पटठा
ReplyDeleteअबे क्या बके जा रहा है
ReplyDeleteयहाँ पर गंदी बात करना मना है
ReplyDeleteगन्दी बातें मत बोलो ,गन्दी बातें मत सोचो ,गंदगी मत देखो
ReplyDeleteफ़िरदौस और तस्लीमा नसरीन इस्लाम की विसंगतियां उजागर कर धार्मिक कट्टरवाद के खिलाफ़ अपने बूते जंग लड रही हैं और यह बात इसलिये ज्यादा अहमियत रखती है कि इस्लाम में धर्म ग्रन्थ में जो भी लिख दिया गया है उसके खिलाफ़ अपना मत रखने और प्रकट करने की स्वच्छंदता कतई नहीं है।स्वच्छन्द विचारों की खिडकियां खोलना सख्त मना है। फ़तवा जारी करने वालों की तो बाढ सी आई हुई है। अब रही हिदु धर्म की बात तो सबसे अव्वल यह बात मन में बैठा लेनी चाहिये कि इस धर्म का प्रणेता कोई एक महापुरुष नहीं है। इसमें खुले शास्त्रास्त की अनुमति है। अगर किसी धर्म ग्रन्थ में कोइ विसंगत बात लिखी गई है तो हिन्दु मतावलंबी उस पर खुली टीका टिप्पणी कर सकते हैं उनके खिलाफ़ फ़तवा जारी करने की हिन्दु धर्म में परंपरा नहीं है। हिन्दु धर्म ग्रंथों के रचनाकार परस्पर विरोधी विचारधारा से भी प्रेरित रहे है। सच्चा धार्मिक प्रजातन्त्र सिर्फ़ हिदु धर्म में ही है। इस धर्म के अनुयाई मूर्ती पूजक भी हैं और वे लोग भी हैं जो मूर्ती-पूजा को पाप कर्म की संग्या देते हैं ।कबीर और महर्षि दयानंद इसी श्रेणी में आते हैं। इस धर्म में ३३ करोड देवता मानने वाले लोग भी हैं तो दूसरी तरफ़"एको ब्र्ह्म द्वितीय नास्ती" सिद्धांत के अनुगामी भी कम नहीं है। धर्म मानव के लिये बनाया गया है।उसकी बेहतरी के लिये बनाया गया है। देश,काल परिस्थिति के बदलने पर धर्म की बातों,सिद्धांतों में भी जरूरी बदलाव करते रहना आवश्यक है। सदियों पुराने सिद्धांतों में बदलाव होना चाहिये। यही मुद्दा फ़िरदौस उठा रही है। जहां तक हिन्दु धर्म ग्रंथो में लिखी बातों का सवाल है अगर किसी का अंत:करण साक्छी न दे तो उसे न माने। बस यही आजादी इस्लाम और हिदु धर्म की विभाजन रेखा है।दुनियां के अन्य किसी भी धर्म के अनुयायियों को हिन्दु धर्म जैसी विचारों की आजादी नहीं है। इस धर्म में "लकीर का फ़कीर" बनना अनिवार्य नहीं है। हिन्दु धर्म ग्रंथों पर की गई छींटाकशी तब विचारणीय होगी जब आप महर्षि दयानंद के इस्लाम संबंधी विचारों का अनुमोदन करेंगे।
ReplyDeleteमैंने आपका नाम नहीं लिया था, आपने मेरा नाम लेकर हिम्मत दिखाई |
ReplyDeleteमै आप जैसे खुदा टाइप लोगों से बहस नहीं करता, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आप अपनी शेखी बघारें | नाचाहते हुए भी लिख रहा हूँ,
लोग हल्का समझते हैं मुझे शांत देखकर
शायद उन्हें अंदाजा नहीं है तूफान का
असलम भाई, आपने बेरागी जी को जवाब हज़रात आयशा के बारे में दिया वह बहुत ही अच्छा है, जो लोग समाज को भ्रमित करते हैं उन्हें उनके प्रश्नों का जवाब दिया भी जाना चाहिए. प्रश्न के जवाब में और भी बहुत कुछ बताया जा सकता है, आप कहें तो मैं इसके ऊपर एक तफ्सीली लेख भी लिख सकता हूँ.
ReplyDeleteलेकिन उनके जवाब में आपने जो टिपण्णी हिन्दू धर्म के स्थापकों के बारें कहीं और जिन अल्फाज़ का प्रयोग किया वह कहीं से भी सही नहीं कहलाएँ जा सकते हैं. हमारा धर्म दूसरों के मज़हब की इज्ज़त करना सिखाता है. उनको उनके प्रश्नों का जवाब देना बिलकुल सही बात है, लेकिन उनकी तरह अपनी ज़बान को गन्दा करना किसी भी अक्लमंद के लिए दुरुस्त नहीं है. वैसे भी हमारा धर्म ऐसी बातों की इजाज़त नहीं देता है.
@ dr.aalok dayaram
ReplyDeleteइस्लाम में धर्म ग्रन्थ में जो भी लिख दिया गया है उसके खिलाफ़ अपना मत रखने और प्रकट करने की स्वच्छंदता कतई नहीं है।स्वच्छन्द विचारों की खिडकियां खोलना सख्त मना है।
अलोक साहब क्या आप पर किसी ने कुरआन-ए-करीम के विरोध में मत रखने पर पाबन्दी लगे है? अगर नहीं तो आप कैसे कह सकते हैं कि इजाज़त नहीं है?
@ dr.aalok dayaram
ReplyDeleteअगर किसी धर्म ग्रन्थ में कोइ विसंगत बात लिखी गई है तो हिन्दु मतावलंबी उस पर खुली टीका टिप्पणी कर सकते हैं उनके खिलाफ़ फ़तवा जारी करने की हिन्दु धर्म में परंपरा नहीं है। हिन्दु धर्म ग्रंथों के रचनाकार परस्पर विरोधी विचारधारा से भी प्रेरित रहे है। सच्चा धार्मिक प्रजातन्त्र सिर्फ़ हिदु धर्म में ही है।
अलोक साहब एक तो तरफ तो आप अपने ही धर्म ग्रंथो पर विसंगतियां लिखने का मन घडत आरोप लगा रहे हैं और फिर दूसरी तरफ कह रहे हैं कि हिन्दू धर्म ही सच्चा धर्म है. क्या आपके कहने का मतलब यह है कि जिन धर्म ग्रंथो में विसंगतियां लिखी गई वाही सच्चा धर्म है???? क्या ऐसा हो सकता है कि किसी ईश्वर के सच्चे ग्रन्थ में ईश्वर ने कोई विसंगति लिख दी हो???? आपकी स्वयं की बात में इतना अधिक विरोधाभास क्यों???
ऐसा इसलिए क्योंकि आपको स्वयं अपने धर्म ग्रंथो के बारें में जानकारी नहीं है. और मेरे विचार से जिसे अपने ही धर्म की जानकारी नहीं है उसे किसी दुसरे के धर्म की जानकारी क्या होगी???? इसलिए उसे किसी दुसरे के धर्म को बुरा भी नहीं कहना चाहिए.... आशा हैं मेरी बात पर घुर करेंगे.
आर्य जी ,,,क्यों नाराज होते हो ,आलोक जी ,,,आप की बातें भी सर आँखों पर ,,, परन्तु पहले बेरागी जी से पूछए,,, उन्हों ने हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलेहिव्सल्लम पर क्या टिपण्णी की थी ,,मेने तो उनका जवाब दिया हे ,,ओर बस ,,
ReplyDeleteओर आलोक जी ,
,आप ने कहा हे की धर्म मानवता की भलाई के लिए बनाए जाते हें ,, यह तो सही हे की धर्म मानवता की भलाई के लिए होते हें ,,पर वः बनाए नहीं जाते अर्थात धर्म मानव निर्मित नहीं होते वः केवल ईश्वरीय होते हें ,,परन्तु दुनिया में मानव मिर्मित धर्म भी हें ,, ओर मानव मिर्मित धर्म में ही बदलाव ओर सुधर की आवश्यकता होती हे ,, ईश्वरीय धर्म में नहीं ,इस्लाम ईश्वरीय धर्म हे इस लिए उस की एक एक बात आज भी बिकुल नयी मालूम होती हे ,यह कोई शेखी बघारने वाली बात नहीं ,आप निष्पक्ष होकर सोचें ,,कोन सी बात इस्लाम की ऐसी हे जिस से बेहतर आप कुछ ओर पेश कर सकते हें , ओर कोनसी बात ऐसी हे जिस में बदलाव चाहिये ,,ओर आप कहते हें की हिन्दू धर्म में छूट हे उसमें परजातंत्र हे ,अर्थात कोई कुछ भी करे व्ही धर्म हे ,तो क्या बे असूली का नाम धर्म हे,,? ,,
मेरा ज़ाती तजुर्बा है की किसी नज़रिए पे आपस में एख्तेलाफ दिलों में नफरत नहीं पैदा करता बल्कि झूट, फरेब और तोहमत दिलों में नफरत पैदा करती है। इन बातों से बचा जाए.
ReplyDeletemulla madharchod paagal ho gaya hai.. beta www.faithfreecom.org par ja.. aur apni bhadas nikal...
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