मेरे प्यारे अरविन्द मिश्रा
आप नास्तिक हें तो श्री राम में आस्था क्यों ? ,, दर असल आप जैसे लोगो की कहानी शुत्रमुर्ग की सी हे जिस से कहाजाए कि तुम पक्षी हो तो उड़ते क्यों नहीं तो वः कहता हे कि मैं पक्षी नहीं ऊँट हूँ ,, और जब उस से कहा जाए की तुम ऊँट हो तो बोझ उठाओ तो वः कहता हे कि मैं तो पक्षी हूँ ..
आइये अब इस पर विचार करे कि अल्लाह को पर्योगशाला में सिद्ध किया जा सकता हे या नहीं ,
मेरे प्यारे यह सारा ब्रह्मांड इश्वर की प्रयोगशाला हे , यह धरती यह आकाश और यह चाँद सितारे चीख चीख कर कह रहे हें कि यह सब स्वयं से नहीं ,, इस बोलते मानव का अपना वजूद खामोश जुबान से गवाही दे रहा हे कि कोई हे जो इस के पैदा होने से पहले माँ कि छाती में दूध उतार देता हे ,,, हजारों महान गेलक्सीज़ और उन के अथाह राज़ मजबूर करते हें कि इन के पीछे कोई सत्ता मानी जाए जो इस बर्हमांड को भली भांति चला रही हे ,,
आज इस शक्ति का वजूद तो हर कस व् न कस स्वीकार करता हे , ख्याल रहे कि अल्लाह/गोड़ कोई मानव जेसी वास्तु नहीं ,जो इंसानी शक्ल में ही आप के सामने आए तो आप मानेंगे वर्ना नहीं ,, वेसे आप मोत को तो मानते ही होंगे ,, और जहाँ इंसान बेबस और लाचार नज़र आए , अर्थात जैसे वः मोत के सामने बेबस हो जाता हे तो फिर उसे मान लेना चाहिए कि कोई हे , जो उस के ऊपर हे ,जो उसके जीवन व् म्रत्यु को कंट्रोल कर रहा हे ,, और अगर अब आप नहीं मानते तो उस समय ,अर्थात म्रत्यु के पश्चात् देख कर मानेंगें जब मानने से कोई लाभ नहीं होगा , कुरान में हे ,,
और लोगों को उस दिन से डराइये जब अज़ाब आएगा , उस समयं ज़ालिम
लोग (इंकार करनेवाले) कहेंगे .हे ईश्वर हमें थोड़ी मोहलत देदे ,अब की बार हम
तेरे पैगाम को स्वीकार करेंगे , और संदेष्ठा के बताए मार्ग पर चलेंगे , ( १४/४४)
Wednesday, August 4, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अब बोलो मियाँ राम हैं या नही ? जिस तरह करोड़ों मुसलमानों के लिए अल्लाह मियाँ हैं वैसे ही करोडो के लिए राम हैं -यह आस्था की बात है -खुदाई और प्रयोगशाला की नहीं -लिव एंड लेट लिव मियाँ जी ...!
ReplyDeleteआस्तिक और नास्तिक
ReplyDeleteیہاں سوال ایتبار کا ہے، وزُود پر ایتبار اؤر ناوزُود پر ایتبار اَلگ اَلگ مسایل ہے ۔ اِیشور، اَلّاہ، گاڈ، واہے گُرُ پر ایتبار اُسی مانِند ہے، جیسے اِںسان اَپنی ماں کے وزُود پر یکیں کر لیتا ہے، وہ مان لیتا ہے کِ اُسکی پیدائیش اِسی کی کوکھ سے ہُئی ہے، یہ ن سُنا اؤر دیکھا کِ کوئی اِسکے ایتماد کے لِیے اُس ہمل کو ٹٹول سکا ہو، جہاں اُسکی بُنِیاد پڑی۔ چُناںچے وہ ماں کے وزُود میں ( گوکِ وہ ایک اِںسانی شکل میں ہے ) اُسکو پاتا ہے، جِسے وہ اَپنے مزہب کے مُتابِک ایک آسمانی تاکت مانتا ہے ۔ جب وہ اَپنے وزُود کے سِرے کو پکڑنا چاہتا ہے، تو ماں کی کوکھ میں کیسے آیا، کیوں آیا اِن سوالوں پر ّلازواب ہو اَپنے مزہبی تؤر-تریکے کے مُآفِک ایک Almighty کی اِیزاد کر لیتا ہے، یہ اُسکا یکیں ہے ۔ وہ کِسی بُت میں اِس یکیں کی تسدیک کرکے سُکُن پاتا ہے، تو کیا بُرا ہے ؟
ReplyDeleteاَگر وہ سِر پر قفن باںدھ کر نِکل پڑے کِ ساری کاینات اُسکے یکیں کے بُت کو سِزدا کرے۔۔ تو تمام مُشکِلات پیش آتی ہیں، اَکسرہاں اِن مُشکِلات کو دُور کرنے کی تردُّد میں پیدا ہُیے ہالات کھُد اِںسان پر بھاری پڑتے آیے ہیں ۔
میں مانتا ہُوں کِ سزدے کے راستے اَلگ اَلگ ہوں تو کیا سبکا کھُدا ایک ہی ہے !
मेरे प्यारे अरविन्द मिश्रा
ReplyDeleteआप नास्तिक हें तो श्री राम में आस्था क्यों ?
yeh sawal hai accha hai !!!
मैं नाचीज अपनी क्या बात करूं, मैं उन करोड़ों हिन्दू जो राम में आस्था रखते हैं और वे करोड़ों मुसलमान जो अल्लाह मियाँ को मानते हैं उनकी बात करता हूँ -मैं अकेला राम याईश्वर में आस्था न रखकर भी हिन्दू हूँ और जनमत का सम्मान करता हूँ -किसी के आराध्य पर उंगली उठाकर कुफ्र करने की फितरत मुझमें नहीं है -मैं ईशनिंदक नहीं बनना चाहता ,मेरे लिए राम और अल्लाह एक ही हैं अलग नहीं -जो इन्हें अलग करता है वह मेरी नजर में काफिर है !
ReplyDeleteकैसे मुसलमान हैं आप ,कहाँ तालीम पाई है ,एक मुसलमान ईशनिंदक ,न कभी देखा न सुना? किसी मुसलमान ने राम के वजूद पर उंगली नहीं उठायी है -वे तो कण कण में व्याप्त हैं !
ReplyDeleteविचरणीय आकलन
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
हा हा हा हा,
आज तो बुरे फंस गये डाक्टर मुo असलम क़ासमी साहब आप तो...
*** "अब बोलो मियाँ राम हैं या नही ? जिस तरह करोड़ों मुसलमानों के लिए अल्लाह मियाँ हैं वैसे ही करोडो के लिए राम हैं -यह आस्था की बात है -खुदाई और प्रयोगशाला की नहीं..."
*** "मैं अकेला राम याईश्वर में आस्था न रखकर भी हिन्दू हूँ और जनमत का सम्मान करता हूँ -किसी के आराध्य पर उंगली उठाकर कुफ्र करने की फितरत मुझमें नहीं है -मैं ईशनिंदक नहीं बनना चाहता ,मेरे लिए राम और अल्लाह एक ही हैं अलग नहीं -जो इन्हें अलग करता है वह मेरी नजर में काफिर है !"
*** "कैसे मुसलमान हैं आप ,कहाँ तालीम पाई है ,एक मुसलमान ईशनिंदक ,न कभी देखा न सुना? किसी मुसलमान ने राम के वजूद पर उंगली नहीं उठायी है -वे तो कण कण में व्याप्त हैं !"
अरविन्द मिश्रा जी से बहस...???
जवाब देते न बनेगा... चलिये प्रयत्न तो करियेगा ही...
शुभकामनायें !
...
असलम मियां आज अतिउत्साह में,खुद विरोधाभाषी सिद्ध हो गये।
ReplyDeleteअल्लाह, खुदा, ईश्वर, God को लेकर काफ़ी भ्रांतिया है समझने के लिहाज से इसे तीन हिस्सो मे मैने बाँट लिया है अगर मै इसको समझ पाया तो शायद दूसरा भी समझ पाए
ReplyDelete1. इस्लामी विचारधारा
2. गैर इस्लामी विचारधारा
3. नास्तिक
तीनो विचारधारा वाले लोग किसी ना किसी शक्ति को मानते है शक्ति, शक्तिमान,सर्वशक्तिमान
तीसरी विचारधारा वाले लोग विज्ञान और उसके बनाए गये नियमो के आधार पर साबित करते है कि दुनिया मे शक्ति तो है (force, power) लेकिन शक्तिमान और सर्वशक्तिमान को नकार देते है कि इन force, power को कंट्रोल करने वाला कोई है !
ReplyDeleteदूसरी विचारधारा मे इस्लाम के अलावा जो भी मज़हब, धर्म है उनमे ये विचारधारा प्रचलित है वे लोग सर्वशक्तिमान को तो मानते है साथ मे दूसरे शक्तिमानो को को भी मानते है(जिसे वो सर्वशक्तिमान क हिस्सा मानते है जैसे हिंदू देवी देवताओ को, ईसाई ईसा को खुदा क़ा बेटा मानते है) इसी विचारधारा के लोग ये भी मानते है कि सर्वशक्तिमान हर जगह मौजूद है, ज़र्रे ज़र्रे, मे हर कण और परमाणु मे वो मौजूद है या ये सब उसी क़ा अंश है,
ReplyDeleteऐसी विचारधारा मसलमानो मे सूफ़ी लोगो कि भी है जिसे वाहादताल वुजूद कहा जाता है, इबने अरबी ने तो यहाँ तक कहा कि जो आबिद और माबूद (खुदा और बंदा)को अलग अलग माने वो काफ़िर है, इसी विचारधारा को मानने वालो मे अशरफ अली थानवी, अहमद रज़ा, मुहम्मद ज़कारिया व्गैराह शामिल है जो देवबंद और बरेलवी के बड़े आलिम कहलाते है!
@Anonymous
ReplyDeleteविवाद तभी होता है जब ईश्वर या अल्लाह की तुलना उसकी बनाई हुई सृष्टि की चीज़ों से की जाने लगती है. कहीं उसे मानव की तरह मान लिया जाता है तो कहीं ऊर्जा की तरह. लेकिन अगर यह सोच लें की क्रियेटर की मिसाल क्रियेशन की तरह हो ही नहीं सकती तो विवाद की कोई बात नहीं रह जायेगी.
भारत में कई तरह के इंसान हैं, कुछ श्री राम को ईश्वर मानते हैं, कुछ भगवान मानते हैं, कुछ महापुरुष, कुछ केवल पुराने ज़माने का राजा और कुछ ऐसे भी हैं जो मानते ही नहीं हैं.
ReplyDeleteमैं उनको केवल महापुरुष और अनेकों खूबियों वाला एक इंसान मानता हूँ. उनको मर्यादा पुरषोत्तम मानता हूँ और मानता हूँ कि जो कुछ लोगो ने उनकी छवि को खराब करने के लिए भ्रांतियां फ़ैलाने की कोशिश की हैं वह गलत हैं. जो इंसान अपने पिता के आदेश को मानते हुए 14 साल वन वास काट सकता है, उनमे बुराइयों का होना संभव नहीं सकती है. मैं उनका इसलिए भी सम्मान करता हूँ कि वह हमारे पूर्वज थे और अपने पूर्वजो का सम्मान करना भी चाहिए. उनके होने या ना होने पर सवाल उठाना मेरे विचार से ठीक नहीं है. क्योंकि आज से ६-७ लाख पहले पैदा हुए किसी भी महापुरुष का होना भी कोई साबित नहीं कर सकता है और ना होना भी कोई भी साबित नहीं कर सकता है. वैसे भी श्री राम का अस्तित्व साबित होने अथवा ना होने से ऊपर है. क्योंकि वह करोडो लोगों के दिलों में बसते हैं.
एक मुसलमान होने के नाते महापुरुषों का अनादर करने का मुझे हक भी नहीं है, क्योंकि अल्लाह (ईश्वर) ने कुरआन में फ़रमाया है कि उसने हर क्षेत्र और समाज में अपने संदेष्ठा (नबी) भेजें हैं. इसलिए हमारे बड़े हमें किसी भी महापुरुष के खिलाफ बोलने को मन करते हैं. क्योंकि हो सकता हो कि वह भी संदेष्ठा रहे हों.
@असलम, दूसरों से सवाल करने वाले डाक्टरी के नाम पर कलंक, पाखंडी, जलील इन्सान अब अरविन्द मिश्रा, डा. अमर और प्रवीण शाह द्वारा उठाये सवालों को सुनकर माँ क्यूं मर गई? अब मुँह में दहीं जम गया क्या ?
ReplyDeleteसाले हरामखोर! इन्सानियत के नाम पर कलंक!
जीशन भाई की बात पढने के बाद मेरी ये टिपण्णी पढ़ें:::
ReplyDeleteईश्वर के अंतिम ग्रन्थ कुरआन के अध्याय ११२, सुरः इखलास में श्लोक संख्या १ से ४ में लिखा है कि -
1- कहो! अल्लाह यकता है| (अर्थात ईश्वर एक है)
2- अल्लाह निरपेक्ष और सर्वाधार है|
3- न वह जनिता है और न जन्य |
4- और ना उसका कोई समकक्ष |(अर्थात उस जैसा कोई नहीं)
इसी तरह वेदों में लिखा है कि - एकम ब्रह्मा अस्ति, द्वितीयो नास्ति| नास्ति नास्ति नेह्न्ये ना अस्ति | (ईश्वर एक ही है, दूसरा नहीं है. नहीं है, नहीं, ज़रा भी नहीं है.)
और
ना तस्य प्रतिमा अस्ति | (ईश्वर की कोई प्रतिमा, कोई बुत, कोई फोटो, कोई तस्वीर, कोई छवि, कोई मूर्ति नहीं हो सकती)
रहा सवाल आस्था का तो अं कहूँगा कि धर्म की दुकानदारी करने वालों के लिए सबसे सुगम रास्ता है आस्था, क्यूँki आस्था दिल को लुभाती है वहीँ अगर धर्म की बात करें तो यह दिल और दिमाग दोनों को संतुष्ट कर सकता है... अगर किसी की आस्था कहीं पर टिकी है तो वह बदल नहीं सकता क्यूंकि वह उसके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा बन चुका होता है और अगर आप उसे उसके इतर कुछ बताएँगे या समझायेंगे तो वह नहीं मानेगा हो सकता है कि साम-दाम-दंड-भेद की निति अपना कर attack भी कर दे...
ReplyDeleteलेकिन ऐ दोस्तों ! सत्य तो सिर्फ एक ही है, क्यूँ सत्य दो नहीं हो सकते या फिर दो से ज़्यादा तो बिलकुल भी नहीं... और ये सत्य है कि एक से ज्यदा झूठ हो सकता है... जैसे मनभावन लुभावना एक वाक्य भारत वर्ष में कथित बिद्धिजिवी वर्ग खूब जोर शोर से कहता है (जिसका जवाब मैंने संगीता पुरी जी ब्लॉग पर १ साल पहले ही दिया था आज दोहरा रहा हूँ) कि ... "भई! रास्ता चाहे कोई भी हो मंजिल तो आखिर सबकी एक ही है ना !" और इसे सुनकर और लोग भी खूब जोर शोर से वाहवाही करते हैं और वह बन जाता है भारत का धर्म-निरपेक्ष महान सख्शियत... मेरे पास इसका जवाब है अगर आपके पास मेरे जवाब का काट हो तो जवाब ज़रूर देना मेरे भाई !!!
देखिये ! मैं लखनऊ में रहता हूँ और कानपूर जाने के लिए दो तरीके इस्तेमाल करता हूँ ...
१. मैं वाया उन्नाव जाता हूँ और कानपूर पहुँच जाता हूँ.... अर्थात रास्ता नम्बर १ पकड़ कर मंजिल पर पहुँच गया.
२ .मैं लखनऊ से डेल्ही जहाज़ से जाता हूँ फिर वह से मुंबई की फ्लाईट पकड़ता हूँ वह से ऑन-अराइवल वीजा लेकर दुबई जाता हूँ फिर वह से ओमान और फिर न्यूयार्क और फिर................ वेल वापिस कोलकाता आता हूँ और और ट्रेन द्वारा सीधा कोलकाता से कानपूर पहुँच जाता हूँ.....
अब आप बताईये कौन सा रास्ता सही है....
कौन सा रास्ता सही है ??????????????????????????????????????
अब आप बताईये कौन सा रास्ता सही है....
ReplyDeleteकौन सा रास्ता सही है ??????????????????????????????????????
इस्लामी विचारधारा के बारे मे बात करने से पहेले कुछ बिंदुओ और बातो को जानना और समझना ज़रूरी है और इन पर विचार करना ज़रूरी समझता हुँ
ReplyDeleteपहेली बात अगर ये माना जाता है कि शक्ति है तो उसके कुछ नियम है यदि कोई उन नियमो का पालन नही करे तो उस से नुकसान होगा अथवा कोई लाभ नही होगा!
जैसे बिजली एक शक्ति है और उसका नियम है कि उसका उपयोग हेतु फेस और न्यूट्रल होना चाहिए और बीच मे कुछ लोड हो,
जहाँ शक्ति है वहाँ नियम है अगर नियम नही तो शक्ति अनियंत्रित होगी अथवा नही होगी अर्थात नियमो का पालन ज़रूरी है अत: सब शक्ति से उपर सर्वशक्तिमान को मानना है तो उसके भी नियम तो ही होने चाहिए !
दूसरी बात अब अगर कोई अपने आपको नास्तिक कहता है तो उसके लिए ये ज़रूरी है कि वो शक्तिमान (देवी देवता, खुदा का बेटा, या हर चीज़ मे खुदा ईश्वर है)और सर्वशक्तिमान का इनकार करे, केवल शक्ति को मानना और ना मानना से नास्तिक होने मे कोई फ़र्क नही पड़ेगा,उसके बावजूद नास्तिक भी नियम विशेष मे बँधा होगा चाहे वो प्रकर्ती के हो, देश के रास्ट्र के हो, राज्ये के शाहर के, सड़क के हो, घर के हो
ReplyDeleteइसी तरह अगर कोई ईसाई बनना चाहता है तो उसे सर्वशक्तिमान और ईसा और मरियम (मदर मैरी) और बाइबल (किताब) और जो कुछ बाइबल मे है उसे मानना ज़रूरी होगा वरना वो ईसाई नही होगा चाहे किसी ईसाई घर मे पैदा हो,
अगर हिंदू है तो उसे सर्वशक्तिमान के साथ दूसरे शक्तिमान (देवी देवता) को और धर्मग्रंथो को मानना पड़ेगा अगर कोई नही मानता तो नास्तिक ही कहलाता है !
आस्तिक के लिए सर्वशक्तिमान को मानने उसका अस्तित्व स्वीकार करने के बाद सर्वशक्तिमान अथवा शक्तिमान (देवी देवता, खुदा का बेटा) कि इबादत, पूजा आवशयक अंग होती है, इसके अलावा नियम भी होते है जिसे उसका पालन करना ज़रूरी है !
ReplyDeleteआस्तिक के लिए सर्वशक्तिमान को मानने उसका अस्तित्व स्वीकार करने के बाद सर्वशक्तिमान अथवा शक्तिमान कि इबादत, पूजा आवशयक अंग होती है, सीके अलावा नियम भी होते है जिसे उसका पालन करना ज़रूरी है जैसे हर मामले मे ये देखा जाता है क्या वैध क्या अवैध ईसाई माँस को वैध और हिंदू अवैध बताता है, ईसाई गो मूत्र को अवैध और हिंदू वैध, इसी प्रकार धर्म विशेष के मानने वालो के लिए परिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, नियम भी है !
जब कोई अपने को सेकुलर, धर्म निरपेक्ष, धर्म से अलग कहता है तो वो ना तो सर्वशक्तिमान को मानता है ना शक्तिमान को ना ही वो कोई पूजा इबादत करता है और ना ही वो धर्म के बाकी नियम, क़ानून को मानता है, उसके अनुसार मानव अपने नियम खुद बनाए ! लोकतंत्र मे देश व राज्ये को सेक्युलर या धर्मनिरपेक्ष घोषित किया गया है अर्थात लोकतंत्र देश कि विचारधारा मे ये बात समाहित है कि देश या राज्ये ये नही मानता कि कोई अल्लाह, ईश्वर, God है
ReplyDeleteलेकिन ये देश के हर नागरिक को ये अधिकार देता है कि हर वयक्ति किसी को भी सर्वशक्तिमान, देवी देवता मानकर उसकी इबादत और पूजा कर सकता है,अब यदि कोई ये सवाल उठाता है कि देश बड़ा या धर्म तो उसे मुमकिन हो पूरी जानकारी ना तो धर्म कि है ना देश के क़ानून क़ी !
ReplyDeleteदेश का क़ानून ही ये इजाज़त नागरिक को देता है क़ी वो सर्वशक्तिमान को मान सकता है तो कोई आस्तिक है उसका जवाब यही होगा क़ी धर्म बड़ा है अगर नास्तिक है तो कहेगा देश बड़ा है अगर कोई हिंदू देश को बड़ा कहता है तो वो नास्तिक है अगर कोई ईसाई देश को बड़ा कहता है तो वो नास्तिक है क्योकि वो सर्व शक्तिमान और शक्तिमान (देवी देवता, खुदा का बेटा) इत्यादि से किसी और को बड़ा या ज़यादा शक्तिमान मान रहा है !
ReplyDeleteइस से तो ये साबित हुआ कि नास्तिक है तो सबसा बड़ा देश प्रेमी, देश भक्त है, तो क्या आस्तिक देश द्रोही है? आस्तिक कहता है कि मै भी देश से पयार करता हुँ और इसलिए देश का क़ानून मानते हुए किसी को भी सर्वशक्तिमान मानते हुए उसके इबादत पूजा करता हुँ बात बिल्कुल सीधी सच्ची और बिल्कुल साफ है कि आस्तिक या नास्तिक होने से देश प्रेम का कोई ताल्लुक नही है
ReplyDeleteहा हा हा हा… बड़ी मजेदार भच-भच चल रही है…
ReplyDeleteअरविन्द मिश्रा जी अब आप झेलिये… :) :)
समय कि कमी के कारण बाकी भच-भच (बाते) बाद मे
ReplyDeleteउमीद है वो और भी मजेदार रहेंगी
रहा सवाल आस्था का तो अं कहूँगा कि धर्म की दुकानदारी करने वालों के लिए सबसे सुगम रास्ता है आस्था, क्यूँki आस्था दिल को लुभाती है वहीँ अगर धर्म की बात करें तो यह दिल और दिमाग दोनों को संतुष्ट कर सकता है... अगर किसी की आस्था कहीं पर टिकी है तो वह बदल नहीं सकता क्यूंकि वह उसके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा बन चुका होता है और अगर आप उसे उसके इतर कुछ बताएँगे या समझायेंगे तो वह नहीं मानेगा हो सकता है कि साम-दाम-दंड-भेद की निति अपना कर attack भी कर दे...
ReplyDeleteलेकिन ऐ दोस्तों ! सत्य तो सिर्फ एक ही है, क्यूँ सत्य दो नहीं हो सकते या फिर दो से ज़्यादा तो बिलकुल भी नहीं... और ये सत्य है कि एक से ज्यदा झूठ हो सकता है... जैसे मनभावन लुभावना एक वाक्य भारत वर्ष में कथित बिद्धिजिवी वर्ग खूब जोर शोर से कहता है (जिसका जवाब मैंने संगीता पुरी जी ब्लॉग पर १ साल पहले ही दिया था आज दोहरा रहा हूँ) कि ... "भई! रास्ता चाहे कोई भी हो मंजिल तो आखिर सबकी एक ही है ना !" और इसे सुनकर और लोग भी खूब जोर शोर से वाहवाही करते हैं और वह बन जाता है भारत का धर्म-निरपेक्ष महान सख्शियत... मेरे पास इसका जवाब है अगर आपके पास मेरे जवाब का काट हो तो जवाब ज़रूर देना मेरे भाई !!!
देखिये ! मैं लखनऊ में रहता हूँ और कानपूर जाने के लिए दो तरीके इस्तेमाल करता हूँ ...
१. मैं वाया उन्नाव जाता हूँ और कानपूर पहुँच जाता हूँ.... अर्थात रास्ता नम्बर १ पकड़ कर मंजिल पर पहुँच गया.
२ .मैं लखनऊ से डेल्ही जहाज़ से जाता हूँ फिर वह से मुंबई की फ्लाईट पकड़ता हूँ वह से ऑन-अराइवल वीजा लेकर दुबई जाता हूँ फिर वह से ओमान और फिर न्यूयार्क और फिर................ वेल वापिस कोलकाता आता हूँ और और ट्रेन द्वारा सीधा कोलकाता से कानपूर पहुँच जाता हूँ.....
अब आप बताईये कौन सा रास्ता सही है....
कौन सा रास्ता सही है ??????????????????????????????????????
@ मिश्रा जी ! हमारे बंधु को कन्फ़्यूज़ तो आपके ही बंधुओं के कथन-प्रवचन कर रहे हैं। ख़ैर शिकवा छोड़िये यह बताइये कि यह पोस्ट कैसी लगी । इसके बाद इस पोस्ट पर भी अपने विचार दें तो अच्छा लगेगा। http://mankiduniya.blogspot.com/2010/08/tolerance-in-india-anwer-jamal.html
ReplyDeleteराम और रामचन्द्र जी में अन्तर है , कृपया अजन्मे ईश्वर और जन्म लेने वाले दशरथपुत्र को आपस में गड्डमड्ड न करें। सर्वज्ञ ईश्वर ही उपासनीय है वही सृष्टिकर्ता है । रामचन्द्र जी उपासक थे , उपासनीय नहीं। यह बात हिन्दू धर्मग्रंथों से ही प्रमाणित है।
ReplyDeletemadharchod mulle tera dimag abhi theek nahi hua kya? saale tere muhammad ki maan chud rahi thi jab usko ye shaitani dharm shuru karne kya khayal aya.. bahanchod apni aankhien khol.. ab bhi waqt hai sudhar jaa aur is atank ke majhab ko chod de..
ReplyDeleteछद्म नाम धारी सय्यद हुसैन जी
ReplyDeleteआज दो दिन बाद कम्प्युटर खोला तो आप की गाल्यों का तोहफा नज़र नवाज़ हुआ , आप गलियां दीजिये और जी भर कर दीजिये , मैं भी आप के हक मैं हिदायत की दुआ करने से थका नहीं हूँ ,
दूसरी बात जो बड़े तम तराक से आप ने कही हे , की अरविन्द मिश्रा आदि के सवाल सुन कर माँ क्यों मर गयी , तो मेरे प्यारे उस की वजह यह थी कि ,,,,,, गम और भी हें ज़माने में मुहब्बत के सिवा ,,,मैं दो दिन के लिये दिल्ली चला गया था ,,जहा ५ अगस्त को इंडिया इंटरनेश्नल कल्चरल सेंटर में होने वाली एक कांफ्रेंस में मुझे सम्मलित होना था , वापस हुआ तो आप की गलियों के पत्थर नज़र आये और साथ में उक्त चेलेंज भी,,,,,
प्यारे छद्म नाम धारी ,,,,
यह कोन बड़ी बात अरविन्द भाई ने कहदी ,,मैंने अल्लाह के अस्तित्व पर कुछ बोद्धिक तर्क दिए थे ,, जब कि उन्हों ने बिना तर्क दिए ही ,,, प्रश्न कर डाला कि ,,, अब बोलो , राम हे कि नहीं ,, उन्हों ने कहा हे कि जैसे करोंड़ों मुसलमानों के लिए अल्लाह मियां हे वैसे ही ,,,,करोंड़ों के लिए राम हे ,, यह आस्था की बात हे ,, क्या यह कोई तर्क हुआ,,, ?,,, क्या बुद्धि धारी प्राणी ,हज़रत ए इन्सान इश्वर और अपने पालनहार के सम्बन्ध में इतना गैर जिम्मे दार हे कि बिना सोचे समझे , और यह देखे बिना ही कि जिस वस्तु से मैं आस्था जोड़ रहा हूँ ,,उस का अस्तित्व भी हे कि नहीं , ? ,, ऐसे ही कहीं भी अपनी आस्था को कुर्बान कर देता हे ,,, ?,,
अरविन्द जी कहते हें कि जेसे अल्लाह हे वेसे राम हे ,, यानि,,,, चे निस्बते खाक ब आसमान ए पाक ,,,,हमने अल्लाह से आस्था सोच समझ कर जोड़ी हे ,,अल्लाह से मुराद हम इंसानों जैसा कोई वजूद नहीं ,, अपितो वः सर्व शक्तिमान अस्तित्व हे जो यूनिक हे , जो सर्वत्र , निरपेक्ष और सर्वधार हे ,जो न पैदा होता हे और न ही मरता हे ,,जो न कसी से जना जाता हे और न कसी को जनता हे ,,और सारी बातों की एक बात कि ,,,, उस के जैसा कुछ भी नहीं ,, देखें ,,, (कुरान , सूरह इखलास )
आइये अब इस का जायजा लें कि आपने बिना सोचे समझे अपनी आस्था को कहाँ जोड़ लिया ,,,
सर्व्पर्थम हम आप की बात बड़ी करते हें,, और मानते हें कि राम का अस्तित्व हे ,(यों भी हमें कोई जिद नहीं हे राम को नकारने की ,यह बिंदु आपका पर्सनल हे , हम ने जो कुछ लिखा था ,,वः हमारी नहीं कुछ हिन्दू (क्रोनानिधि आदि) विद्द्वानों का मत था) ,,,
राम थे , ५ ,६ लाख वर्ष पहले अयोद्ध्या के राजा दशरथ के घर में श्रंग्गी ऋषि द्वारा पुत्रोष्टि yag करने पर ( जब दशरथं अपनी तीनों पत्नियों को गर्भवती करने में नाकाम रहे उक्त ऋषि दुवारा गर्भ धारण करके पैदा हुए थे , अर्थात वः दशरथ की पारम्परिक संतान नहीं थे, उनको उनके पिता ने अपनी एक पत्नी के कहने पर देश नीकला दे दिया था , कहते हें की उन्हों ने अपना प्रण पूरा किया था , ( यहाँ में आप को इस्लामी सिद्धांत बताता चलूं ,,वः यह की अगर कहीं पर किसी की हक तलफी हो रही हो तो एसा प्रण पूरा नहीं किया जाएगा ,, और गलत प्रण लेने का कफ्फारा (प्रायश्चित) अदा किया जाएगा )