फिरदोस का इस्लाम सम्बन्धी ज्ञान सुना सुनाया है
कुछ लोगों के सर पर सस्ती शोहरत का भूत सवार होता है , आज कल शोहरत हासिल करने का आसन नुस्खा हे इस्लाम में फी निकालने का ,कम से कम इस्लाम मुखालिफ तो एसे इन्सान को हाथोंहाथ लेते हैं ,यहाँ हम बात कर रहे हें ,एक महिला की,, जिसे ब्लागर फिरदोस नाम से जानते हें ,इन्हें कभी पर्दा बुरालागता हे ,कभी कुरआन की आयतों में कमी नज़र आती हे ,कभी कहती हें कि इस्लाम में भी सुधार की गुंजाईश होती ती तो अच्छा होता,,वगेरा ,,वगेरा ,,,इस्लाम दुनिया के बड़े मज़ाहिब में से एक हे ,,जिस के पास अपनी पूर्ण जीवन व्यवस्था हे ,,,,,जिस पर आधारित बहुत से देशों में हुकूमत भी चलाई जाती हे ,,,एसे धर्म के बारे में उस व्यक्ति की टिपण्णी जिस ने उसे शोध कि हद तक न पढ़ा हो क्या उचित हे ? जब कि फिरदोस का ज्ञान तो इस्लाम के सम्बन्ध में केवल सुना सुनाया हे , यव हम इस लिए कह रहे हें कि फिरदोस ने अपने एक लेख में लिखा था कि उसने दर्जा दो तक मदरसे में धार्मिक शिक्षा वह भी एक मुल्लानी से प्राप्त कि थी ,अब ज़रा सोचें कि अगर कौई व्यक्ति साइंस पर टिपण्णी करे ,उस के नियमों में सुधार का मशविरा दे ,ओर कहे कि मेने भी दर्जा दो तक साइंस पढ़ी हे तो उसके बारे में आप क्या कहेंगें ? ,,,अभी हाल ही में फिरदोस का एक लेख उर्दू में पढ़ा ,लिखती हें कि हम ने बजुर्गों से सुना हे कि ,शायरों की बख्शिश नहीं होगी ,, आगे लिखती हें कि अगर एसा हे की सारे शायर दोज़ख में जायेगें तो हमें दोज़ख भी कबूल हे , क्यों की वह भी (दोज़ख भी ) अल्लाह की ही बनायीं हुयी तो हे ,,? ,,क्या खूब तर्क हे ,,इस पर हम थोडा बाद को बात करेंगे ,पहले इस पर चर्चा करलें ,,जो उन्हों नें बजुर्गों से सुना हे ,वह जिस जानिब इशारा कर रही हें जिस की वजह से उन्हें दोज़ख भी कबूल हे ,,वह कुरान की सूरः २६ की आयत २२४ हे जिस में कहा गया हे की शायर लोग भटके हुए लोगों की पेरवी करते हें ,, ,इस आयत का शान ,ए,नुजूल यह हे कि मुमम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम जब लोगों को कुरआन पढ़ कर सुनाते तो मुखालिफ लोग उन्हें कहते कि यह तो शायर हें ,चुनाचे कुरआन में इस का इंकार किया गया ओर कहा गया कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम शायर नहीं ,ओर शायरों की पैरवी वह करे जो भटक गया हो .परन्तु यह फिरदोस के बजुर्ग हें जिन्हों ने इस बात का बतंग्गढ़ बनादिया ,उधर फिरदोस हें कि सुनी सुनाई बातों की बुनियाद पर दोज़ख में जाने को तैयार हें ,,, अब बात दोज़ख में जानें की करते हें ,,ऐसी बातें वह करे ,,,जिसे अल्लाह की पकड़ का भय न हो ,ओर यह तर्क भी खूब रहा की धोज़ख भी तो अल्लाह की ही बनायीं हुयी हे ,,एरे भाई क्या आप अपनी एक ही अंगुली आग के हवाले कर सकते हें यह कहते हुए की आग भी अल्लाह की बनायीं हुयी हे ,खेर हम तो फिरदोस के लिए दुआ ही कर सकते हें,,साथ ही उन्हें यह मशविरा भी हें कि जिस चीज़ का इन्सान को ज्ञान न हो उस पर ख़ामोशी बेहतर होती हें ,,परन्तु जब बुद्धिजीवी बन ने का सर पर खब्त सवार हो ,खामोश रहना मुश्किल होता हें ,फिरदोस एक जर्नलिस्ट हें ,हो सकता हें वह पत्रकारिता बहुत अच्छी कर लेती हों ,परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि वह ला कालिज वालों को या पुरातत्व विभाग को भी मशविरा दें कि उन्हें अपने यहाँ क्या रखना चाहिए ओर क्या निकाल देना चाहिए , एक बात ओर ,,, इस्लाम धर्म का सारा ज्ञान या तो अरबी भाषा में हें ओर या उर्दू में ,भारत में बिना उर्दू की मदद के अरबी भाषा का ज्ञान प्राप्त करना आसान नहीं ,अब ज़रा उन के उर्दू ज्ञान के बारे में देखें कि उनका नाम फिरदोस हें अर्थात उनके नाम के आखिर में छोटा सीन आएगा ,न कि बड़ा ,जब कि वह अपने नाम में हमेशा बड़े शीन का पर्योग करती हें ,ओर हमें फ़ौरन अपने एक अफसर याद आजाते हें ,जो बात बात में बड़े शीन का पर्योग करते थे ,,,,,,बेतर हो कि कुछ बात फिरदोस कि शायरी पर भी कर ली जाए ,,शायरी के नाम पर यह जो कुछ लिखती हें उसे हो सकता हें हिंदी में शायरी माना जाता हो ,उर्दू में तो उन के कलाम को नसरी नज़्म कहा जा सकता हें ,ओर उर्दू के नाकिदों ने नसरी नज़्म लिखने वालों को लताड़ पिलाते हुए मशविरा दिया हें, कि वह नसर व् नज़्म को खल्त मल्त न करें ,देखें उन्वान चिश्ती कि तनक़ीद
नज्म में नस्र जो लिखते हें वह कुछ भी लिखते ,,,,,
नज्म में पर नस्र यूँ न मिलायी जाती ,,,,,
फिरदोस की नज्म पर यह कहना हें मुझे ,,,,
हम से नम्कीम मिठाई नहीं खायी जाती ,,,,
फिरदोस की कुछ नज्में ऐसी भी होती हें जिन पर उर्दू का रंग चढ़ा होता हें परन्तु वह भी आउट आफ काफिया ,होती हें , उनमे ,फीलपा ,,श्तुर्गुरबा ,,,शकिस्त ना रवा,, जेसी तो आम खराबियां होती हें ,,इस लिए बेहतर यह हें की जो जिसका मैदान हें वह उसी में रहे ,,,
Saturday, June 19, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Mujhe to apke gyan par hi hansi aa rahi hai. Afsos ki aap Firdaush ji ki Kalam ko nahi samaj paye.
ReplyDeleteGood morning !!!
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
ReplyDeleteaslm saahb kuch logon ki bhonkne ki aadt hoti he unhen bhonkne do agr hm bhi unki gndgi men pdh jaayenge to fir unme or hmme kyaa frq rh jaayegaa hmaare khudaa or s.a.w.ne is mamle me kese niptne ki shikshaa di he apn to bs use yaad rkhen yeh log khud sudhr jaayenge , kbhi hmaare blog akhtarkhanakela.blogspot.com ko bhi chkh kr usmen nmk mirchi kaa kyaa haal he btaaoge to jnaab mehrbaani hogi akhtar kha akela kota rajsthaan
ReplyDeleteगई भैँस पानी मे
ReplyDeletedono pagal ho sudhar jao
ReplyDeleteगिरी जी
ReplyDeleteआप को मेरे ज्ञान पर हंसी आ रही हे ,चलये हँसना तो ख़ुशी की निशानी हे ,परन्तु आप ने कहा हे कि में फिरदोस के कलम को समझा नहीं ,बेहतर हो अगर आप उस की खूबियाँ ब्यान करदें ,,
kasmi ji
ReplyDeletecuch mahilaen bikao mal ki tarah hen inhe is kam ka paesa milta he aap kahan in ke chakkar men pade ho ,,,
tum sab ullu ke patthe ho
ReplyDeletetum sab ullu ke patthe ho
ReplyDeleteयूँ फ़िरदौस साहिबा का नाम आप तो दुरुस्त लिख लेते..खैर टायपिंग सही कर लें तो ये वर्तनी की अशुद्धियाँ बेजा न लगें. खैर कई बार मुझे भी ये शक हुआ है कि उन्हें धर्म का ज्ञान बराय नाम है.पढी-लिखी हैं उन्हें इस्लाम और दीगर धर्मों की किताबें भी खूब पढनी चाहिए . आप जैसे लोगों को फिर कभी शिकायत का मौक़ा न मिले.यही दुआ है.
ReplyDeletetum sab ullu ke patthe ho
ReplyDeletetum sab ullu ke patthe ho
ReplyDeleteशायरी ही सीखना थी तो हमसे कहती फ़िरदौस जी ।बंदा इस ख़िदमत के लिए अब भी तैयार है
ReplyDeleteSahi likha hai
ReplyDeleteउन्हें धर्म का ज्ञान बराय नाम है
ReplyDeleteफिरदोस नज्में आउट आफ काफिया होती हें
ReplyDeleteओ भाए,,,, शायरी तो हम भी जानता हूँ फिरदोस कहे तो हम भी सिखा सकता हूँ
ReplyDeleteफिरदोस को हिन्दुत्व वादियों ने कन्धों पर उठाया हुआ है, अन्धों में काना राजा
ReplyDeleteउन्हें इस्लाम और दीगर धर्मों की किताबें भी खूब पढनी चाहिए . आप जैसे लोगों को फिर कभी शिकायत का मौक़ा न मिले.यही दुआ है.
ReplyDeleteउर्दू में तो उन के कलाम को नसरी नज़्म कहा जा सकता हें
ReplyDeleteउर्दू में तो उन के कलाम को नसरी नज़्म कहा जा सकता हें
ReplyDeleteशायरी कोई खेल नहीं जो बचा खेले,,,,,
ReplyDeleteहम ने इस काम में पिचहत्तर बरस पापड़ पेले ,,,,
आओ हम सिखाएं
ReplyDeleteख़बरदार क़ासमी जी अगर आपने दोबारा फिर कभी फ़िरदौस बहन के बारे मे हकीकत बयान की तो ...
ReplyDeleteइस पोस्ट से असहमत लेकिन आधा , गिरी जी से सहमत आधे से थोड़ा ज्यादा
ReplyDeleteआपने फिरदोस के बारे में जो कुछ बताया है उससे मालूम होता है कि ये कोई फ़िल्मी माहौल में पली बढ़ी खुद को मोडर्न कहने वाली मुसलमान (मुसलमान है भी या नहीं कह नहीं सकते )लड़की है अपने आसपास के गंदे माहौल से इनके जैसे लोग इस कदर मुतास्सिर होते हैं के इस्लाम में भी सुधार कि गुंजाईश देखते हैं जबकि असल में सुधार कि ज़रूरत तो इन्हें खुद है अपनी इस गन्दी सोच से , जिसकी वजह से इन्हें खुद को मुस्लिम कहते हुए शर्म महसूस होती है, आखिर ये लोग इस्लाम को सुधारने(जो कि ये कर नहीं सकते ) की जगह खुद ही किसी दूसरे मज़हब को क्यों नहीं अपना लेते जो कि इन्हें आज़ादी के नाम पर तमाम बुरे कामों को करने कि इजाज़त दे देता हो
ReplyDeleteऔर आखीर में मेरी एक सलाह फिरदोस जी के लिए अगर वो मेरे इस कमेन्ट को पढ़ रहीं हों कि जितनी जल्दी हो सके आप अपने वालों में शामिल हो जाइये वरना कहीं अगर उन्होंने भी आप को लेने से इंकार कर दिया तो आपकी हालत तो ऐसी हो जायेगी कि कहते हैं न कि "धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का"
फिरदौस को इस्लाम सिखाने से अच्छा है कि आप खुद सीख लें ,इस्लाम ऐसा क्या है जिसे सीखा जाए .सारी दुनिया इस्लाम की असलियत जान चुकी है.दोजख का डर आप आतंकवादिओं .और मुसलमान अपराधिओं को क्यों नहीं बताते.क्या गारंटी है कि आप दोजख में नहीं जायेंगे ऎसी बातें तो हरेक धर्म में कही गयी हैं .सभी दोजख का डर दिखाते हैं .लोग कब तक डर डर के जीते रहें ,और आपकी गुलामी करें .अब ज़माना बदल रहा है .अपनी दकान बंद कर लो .
ReplyDeleteKya Islam aur Kuran yehi sikhsa deta hai aap logo ko, ki farzi ID banakarke kisi ko badnam kiya jay.
ReplyDeleteMujhe to shak hota hai kashmi saheb ki aap kanhi Talibani to nahi hain.
Kyonki ek Hindustani Insan Aisi Bhasha ka prayog nahi kar sakta. Aur Kitni Ferzi Id bana rakha hai aapne.
sach se kitna darte hain aap log
ReplyDeleteएक औरत के पीछे इतने मर्द | सच्चाई दिख रही है आपकी..... इतना लम्बा लिखने की जरुरत ही नहीं थी | बस फिरदौस लिख देते समझने के लिए इतना ही काफी था | अरे मियां अगर आप ही पढेलिखे हैं तो कुछ ऐसा लिखिए जिसमे समाज का कुछ भला हो | जब आप दूसरे की तरफ एक अंगुली उठाते हैं तो खुद की तीन अंगुलिया अपनी तरफ होती है |
ReplyDelete@ are bhayya giri ji , apki batti abhi tak gul hai ya kuchh sudhar hua hai , apki new post ka besabri se intezar hai .
ReplyDeleteकासमी साहब यह भी याद रखिये की आदरणीय मुहम्मद साहब ने भी कहीं शिक्षा नहीं पाई थी, ईश्वरीय ज्ञान भी उन्हें अंतर्मन में सुनाई दिया था. यह बात बिलकुल सही है की कोई इस्लाम के मामले में उनके समक्ष तो कतई नहीं हो सकता. पर कोई इस बात का इनकारी भी नहीं हो सकता की किसी को भक्ति के लिए कहीं पढने गए बिना ज्ञान नहीं मिल सकता.
ReplyDeleteमहात्मा कबीर भी अनपढ़ थे पर ईश्वरीय ज्ञान शायद आज मौजूद बन्दों से कहीं उच्च स्तर पर था
ReplyDeleteभाई.... पहली बात तो यह है कि आपको फ़िरदौस का नाम लेकर पोस्ट लिखनी ही नहीं चाहिए थी.... अगर आपको कोई शिकायत फ़िरदौस से है भी तो आप मेल में लिख कर कह सकते थे.... किसी लड़की के बारे में या उसके लेखन जे बारे में ऐसा खुलेआम लिखना ...आपकी तबियत के बारे में कुछ और ही शो करता है.... किसी की मीन मेख निकालना बहुत आसान होता है.... किसी औरत ज़ात की बेईज्ज़ती करना इस दुनिया में सबसे आसान काम है जो कि आपने किया है.... आपने फ़िरदौस के लेखन में तमाम खामियां गिनायीं हैं.... जबकि लेखन में इम्पोर्टेंट यह है कि आपके भाव क्या हैं..... ? अगर फ़िरदौस के लेखन में भाव हैं.... और लोगों को पसंद भी आ रहे हैं.... तो फ़िरदौस का लेखन अच्छा कहा जायेगा.... आपने फ़िरदौस के लेखन में तो तमाम खामियां गिना दीं .... लेकिन आप ज़रा अपने लेखन में देखिये कितनी खामियां हैं..... ? है ना.....? ज़रा ख़ुद अपना लिखा भी एक बार देख लीजियेगा.... हर इन्सान की अपनी एक सोच होती है.... और उसी सोच के तहत वो हर चीज़ को डिफाइन करता है..... तो अगर फ़िरदौस की डेफिनिशन अलग है .... तो उससे आपको कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए.... क्या पता आपका डेफिनिशन भी अलग हो?
ReplyDeleteमेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना है.... की नौलेजैबल इन्सान हमेशा कन्फ्यूज़ रहता है.... और जिसको नॉलेज नहीं होती वो ज़्यादा उछलता है ..... बातों को लॉजिक से जीता जा सकता है.... ना कि.... किसी के बारे में ऐसा लिख कर.... आपको जो भी प्रॉब्लेम थी .... वो आप फ़िरदौस से मेल पर भी डिस्कस कर सकते थे.....
फ़िरदौस जी पर आप का यह लेख अच्छा लगा!!
ReplyDeleteअच्छा इसलिये कि सिरे से इस्लाम को मानने वालों के मन्तव्य और मानसिकता से साक्षात्कार हो गया।वर्ना समझ रहे थे सभी सुनी सुनाई बातें है।
मुद्दे जो स्पष्ट हुए:
1,उम्मी पर नाजिल हुआ सन्देश समजने के लिये गहन अध्यन की आवश्यक्ता है।
2,अपने बन्दों के हितार्थ,व सर्वभोग्य बनने के लिये भी इस्लाम मे सुधार की कोई गुन्ज़ाईश नहिं।
3,मुमम्मद साहब को शायर नहिं कह्ना है," शायरों की पैरवी वह करे जो भटक गया हो" बाकि शायरी उस्ताद बन आप सलाह दे सकते है।
4,इस्लाम को समझने के लिये पह्ले 'छोटा सीन''बडा सीन'का फ़र्क फ़िर उर्दु जानकारी फ़िर अरबी जानकारी तब जाकर समझ में आयेगा कि अल्लाह एक है,पुरी कयानत का मलिक है,और मुहम्म्द अन्तिम पैगम्बर है।
फ़िरदौस जी,पुरे लेख में ऐसा कुछ नहिं है,जिससे आपको जरा भी विचलित होना पडे।
और
ReplyDelete5,इस्लाम दर्शन की गुण्वत्ता व सिद्धान्त परखनें मानदन्ड है"इस्लाम दुनिया के बड़े मज़ाहिब में से एक हे ,,जिस के पास अपनी पूर्ण जीवन व्यवस्था हे ,,,,,जिस पर आधारित बहुत से देशों में हुकूमत भी चलाई जाती हे"
भावार्थ बौद्धिकों लिए…………।
श्री sugy जी
ReplyDeleteबस आप का एक ही वाक्य नोट करने लायक हे ,यानि वः जिस में आप फिरदोस को संबोधित करते हुए कहते हें ,,,,कि,,,,,, फिदोस जी ,,,पूरे लेख में एसा कुछ नहीं हे , जिस से आप को ज़रा भी विचलित होना पड़े ,, जागते रहो ,,,,,,कहीं ,,,हाथ से चली न जाए ,,,
भाई असलम क़ासमी,
ReplyDeleteवह वाक्य सीधा फ़िरदौस जी के ब्लोग पर किया जा सकता था,पर यहां आपके नोट करने के उद्देश्य से ही रखा गया था,गोया सफ़ल हुआ।
अब फ़िरदौस एक महिला या एक इन्सान ही नहिं रही,ब्लोग जगत की एक विचारधारा बन चुकी है,साहस से सच्चाई पूर्ण अपना मन्तव्य रखने के लिये सदा (यह विचारधारा)याद की जायेगी।
jhooti chaplosi ko vichardhara nahi kate
ReplyDeleteभैया काशिम साहब, ये भारत है और यहाँ जयचंदों का इतिहास रहा है. इसलिए आप जैसे लोग इस्लाम के बेतुके बिना सर पैर वाली धाराओ को लागु करते रहते है. और जूते भी नहीं पड़ते. यही भारत की जगह पाकिस्तान होता तो आप खुद समझदार क्या हो सकता था. इसलिए एक अच्छा इंसान बने ना की ऊटपटांग विचारधाराओं से लदे सिर्फ मुस्लमान बने. महिलाओं का आदर करे और आदर पाए. वरना जो नहीं चाहे वो भी खाए.
ReplyDeletetotaly disagree with MAHFOOZ !!!
ReplyDeleteअसलम क़ासमी,साहेब की बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ, यह गंगा जमुना संस्कृति वाले ,धर्म मैं भी मिलावट कर के एक नया धर्म बना ने पे लगे हाँ. ना हिन्दू को हिन्दू रहने दो और ना मुसलमान को मुसलाम. सुज्ञ जी फिरदौस जी के ब्लॉग पे केवल वोह कमेन्ट दीखते हैं जो उनकी बात कहते हैं. या उनके खिलाफ कमज़ोर तरीक़े से कोई बोले. दलील के साथ उनकी बात से इनकार का मतलब, कमेन्ट disapprove
ReplyDeleteआपके उपरोक्त लेख में विषयान्तर है,हर्फ़-ए-ग़लत पर तो विरोधाभास की बात ही नहीं हो रही। मोमिन ने तो पूरी कुराआन ही गलत होने का दावा किया है। न मनमाने अनुवाद है,न मनमाना अर्थ। अर्थ वही है जो आप लोग भी करते हो।
ReplyDeleteउल्टा आप लोग जो आयत में है ही नहिं,वह दर्शानें की कोशिश करते हो,और तुक भिडाते हो। और मोमिन अपने नोट में सीधा भाव (नजरिया) पकडता है।
और जो अल्लाह के चेलेन्ज "कि कोई एक आयत भी उस जैसी बना के दिखाये"
का मतलब कोई भी समझ सकता है,उस आयत का निर्णय कौन करेगा? "न नौ मन तैल होगा न राधा नाचेगी!!"
समझने का प्रयास करो,मुसलमानों,मोमिन आपका हितेषी है,कडवा जरूर लगेगा,क्योंकि बडी पुरानी बिमारी की दवा है।