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Tuesday, August 3, 2010

राम का अस्तित्व और राम जन्मभूमि

डाक्टर अयाज़ ने एक अहम् सवाल उठाया ,इस पर टिपण्णी भी खूब आइ परन्तु जवाब किसी ने नहीं दिया , वजह यह हे कि इसका जवाब हे ,नहीं , और जवाब इस लिए नहीं कि अभी तो यह भी तय नहीं हुआ कि राम पैदा भी हुए हैं या नहीं , यह सवाल डॉ0 अयाज़ के सवाल से भी गंभीर हे ,परन्तु इन सवालों को कोई इस लिए नहीं उठता कि किसी कि भावनाओं को ठेस न पहुंचे ,हम ने इस को उठाने कि हिम्मत तब कि जब स्वयं कुछ हिन्दू विद्वानों ने इस परकार के सवाल उठाने आरम्भ कर दिए ,जैसा कि मालूम होगा कि मुख्य मंत्री करूणानिधि ने कहा था कि राम का अस्तित्व एसा ही झूट हे जैसा हिमालय का सच , समुद्र सेतु के मसले पर स्वयं भारत सरकार ने शपत पत्र के द्वारा कहा था कि राम एक अफ्सान्वी किरदार हे और उस के होने का कोई एतिहासिक परमाण नहीं हे , फिर उस ने वह शपत पत्र जल्दी में वापस भी लेलिया,था . क्यों कि उस पर कट्टरपंथियों ने वाविला मचा दिया था , परन्तु इस से यह तो पता चल ही गया कि राम कितने एतिहासिक हें ,राम को महात्मां गाँधी भी एतिहासिक नहीं मानते थे और उन्हों ने अपने द्वारा निकाले जा रहे अख़बार ,हरिजन में राम को एक अफ्सान्वी किरदार लिखा था ,तफसील और हवाले के लिए आप मेरी किताब ,जिहाद या फसाद , का अध्यन कर सकते हें..
ऐसे मैं सवाल खड़ा होता हे कि जब राम ही नहीं हुए तो जन्म भूमि कैसी ? परन्तु कौन मानता हे और कौन सुनता हे , यहाँ तो जिसका डंडा उस की भेंस हे , लेकिन सच बहरहाल सच हे ,
खून आखिर खून हे टपकेगा तो जम जाएगा

61 comments:

  1. aslam ji app ka sawal yqeenan gambheer he parantu siyasat is par gor nahi karne deti

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  2. tum sab chootya ho

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  3. tum sab chootya ho

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  4. जो चाहियेगा , कहियेगा , हमें तो गली खाने की आदत हो गयी हे ,परन्तु याद रखये कि गलियों से सच को दबाया नहीं जा सकता , इस से आप की मानसिकता का पता चलता हे कि जहा जवाब नहीं बनता वहां गालियाँ देनी शुरू करदी , अरे भाई सोचये और सच को स्वीकार कीजिये ,

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  5. बेशक सच एक दिन सामने आ ही जाता है

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  6. 15 september tak doodh ka doodh pani pani ho jayega

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  7. जो लोग सेक्स के बारे में हीन भावना के शिकार होते हैं वे अक्सर अपनी सेक्स पॉवर को बहुत बढ़ा चढ़ाकर डींगें हांकते रहते हैं परंतु आजकल युग है रिसर्च का । मराठा मर्दों के लिंग की पोल भी एक रिसर्च ने खोल कर रख दी। देखिये और फैसला कीजिये । हम चुप रहते हैं तो चुप रहते हैं परंतु जब बोलते हैं तो किसी न किसी सत्य को सामने ले आते हैं।
    भारतीय पुरूषों के पौरूष का गलत आकलन किया,
    नई दिल्ली। सुपर फ्रीकोनोमिक्स के लेखकों ने अपनी किताब में कंडोम के बारे में एक अध्याय में भारतीय पुरूषों को महत्वहीन करके आंका है, लेकिन यहां चिकित्सा अनुसंधानकर्ताओं ने इसे गलत बताया है।
    अमेरिकी अर्थशास्त्री स्टीवन डी. लेविट और पत्रकार स्टीफन जे. डबनर ने अपनी किताब में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद , आईसीएमआर, के अध्ययन से जानकारी का हवाला देते हुए लिखा है ‘60 प्रतिशत भारतीय पुरूषों के जननांग डब्ल्यूएचओ के मानकों पर निर्मित कंडोम के लिहाज़ से छोटे होते हैं।‘
    उन्होंने यह भी कहा कि वैज्ञानिकों ने दो साल में एक हज़ार से अधिक भारतीय पुरूषों के लिंगों को मापा और उनकी तस्वीरें लीं। लेकिन अब आईसीएमआर के उपमहानिदेशक डॉ. आर.एस. शर्मा ने कहा कि लेखक पूरे अनुसंधान के पहलुओं का अध्ययन किये बिना सीधे नतीजे पर पहुंच गये। उन्होंने केवल महाराष्ट्र के एक अनुसंधानकर्ता द्वारा एकत्रित छोटे से नमूने को आधार बनाया।
    दैनिक जागरण डेटिड 21 जून 2010
    जिन मराठियों के लिंग की छोटाई के कारण आज पूरे भारत के मर्दों को नीचा देखना पड़ रहा है वे यहां बेपर की उड़ा रहे हैं। पोस्ट के विषय से ध्यान हटाने का प्रपंच मात्र है यह सब, इसे हर कोई देख और जान रहा है।

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  8. जिन मराठियों के लिंग की छोटाई के कारण आज पूरे भारत के मर्दों को नीचा देखना पड़ रहा है वे यहां बेपर की उड़ा रहे हैं। पोस्ट के विषय से ध्यान हटाने का प्रपंच मात्र है यह सब, इसे हर कोई देख और जान रहा है।

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  9. kattar panthiyon ki yh vidambna he ki in ke pas galiyon ke siva cuch nahi fir bhi ,,,,garv se kaho ki ham hindu hen

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  10. यह जो भारतियों के जन्नांग को छोटा आंक रहे हैं इनहोंने शिव लिंग नहीं देखा हे क्या ,, ?,,

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  11. .
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    आदरणीय अयाज अहमद साहब की पोस्ट पर किया गया अपना कमेंट एक बार फिर यहाँ दोहरा रहा हूँ...
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    "बाबर इस देश मे आक्रमणकारी के तौर पर आया वह कब आया और कब तक उसने शासन किया और कब उसकी मृत्यु हुई यह सब ऐतिहासिक तथ्य मैं भी जानता हूँ और आप सब बुद्धिजीवी भी जानते ही होंगे लेकिन श्रीरामचंद्र जी कब पैदा हुए और कब से कब तक उन्होने शासन किया और कब उनकी मृत्यु हुई ये मैं नही जानता"

    आदरणीय अयाज अहमद साहब,

    आपका सवाल ही गलत है...

    राम इस मामले में उपास्य हैं ठीक उसी तरह जैसे कि मस्जिद में अल्लाह की उपासना होती है... अब यह मामला तो आस्था व आस्था प्रतीकों का है...और आस्था प्रतीकों व उपास्यों की पैदाइश का दिन व जगह नहीं पूछी जाती!

    रही बात विवादित इमारत को बनाने-बिगाड़ने-तोड़ने-दावा करने वालों की... तो यदि इन सब में बाबर व मीर बाकी ऐतिहासिक शखसियत हैं... तो दूसरे पक्ष के दावा करने वाले भी सचमुच के आदमी ही हैं।

    भारत एक धर्म प्रधान देश है धर्म और न्याय एक दूसरे के पूरक है धर्म ही सही न्याय कर सकता है।

    भारत धर्मप्रधान है यह मानता हूँ परंतु धर्म और न्याय एक दूसरे के कभी पूरक नहीं रहे और न ही धर्म सही न्याय कर सकता है... इस मामले में मैंने कभी यहाँ पर... लिखा भी था...

    भगवा पक्ष:-
    १-विवादित धर्मस्थल के मामले में अदालत का आदेश यदि हमारे पक्ष में आया तो हम उसे मानेंगे अन्यथा नहीं क्योंकि आस्था के फैसले अदालतों द्वारा नहीं दिये जा सकते।

    हरा पक्ष:-
    १-विवादित धर्मस्थल मामले में यदि अदालत का फैसला हमारे पक्ष में है तो मानेंगे अन्यथा नहीं क्योंकि हमारे धर्मग्रंथ के अनुसार जो जगह एक बार हमारा पूजास्थल बन गई वह सृष्टि के अंत तक पूजास्थल ही रहेगी।

    अब आप बताइये निर्णय कैसे होगा ?


    आभार!


    ...

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  12. waise paigambar saheb ka hi kaun sa birth record hai ?

    kankar pathar jor ke mamjid layi banay
    ta char mulla bang de ka bahara huwa khuday ?

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  13. ye to ayaj saheb ka apane bolg ko sasti lok-priyata hasil karane ka pras bhar hai .

    inke jaise isi agent agar honge to is desh me sadbhavana nahi hi panap ssakati

    gaur farmayiyega ........ taja likha

    apane ghar me sadiyon se andera hai ,
    aur wo dusaron ko chirag dikhane chale....

    wah wah...... illa billa chilla

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  14. सैय्यद हुसैनAugust 3, 2010 at 12:46 PM

    तुम साले इस देश के साथ साथ इन्सानियत के नाम पर भी कलंक हो/ जब तुम लोगों के सामने कोई सवाल रखा जाता है तब तुम लोगों की माँ क्यूं मर जाती है/तब क्यूं पिछवाडा दिखा के भाग खडे होते हो/ आए हैं साले सवाल उठाने/ जिस माँ के पेट से तुमने जन्म लिया तुम तो उसको भी कलंकित कर रहे हो/ सवालों के जवाब ढूंढने का गर इतना ही शौक है तो बताओ तुम्हारे पास क्या प्रमाण है कि पैगम्बर नाम के किसी शख्स नें इस दुनिया में कभी जन्म लिया था ?
    गर सचमुच अपने सगे बाप की औलाद हो तो इस सवाल का जवाब जरूर देना/हाँ अगर अपने बाप के बारे में न मालूम हो तो फिर बेशक पिछवाडा दिखा के भाग खडे होना/
    पाकिस्तान के एजेन्ट साले सूअर की औलाद

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    1. 10-आयशा ने लकड़बग्घा खाया

      अभी तक तो हदीसों से साबित हो गया कि रसूल और उनके साथी लकड़बग्घा खाया करते थे , लेकिन मलिकी फिरके के सुन्नी इमाम "अबू अल वलीद मुहम्मद बिन अहमद बिन रशद - أبو الوليد محمد بن احمد بن رشد‎" ने अपनी इतिहासिक किताब( textbook of Maliki doctrine in a comparative framework) "बिदायतुल मुजतहिद वल निहायतुल मुक्तहिद - بداية المجتهد و نهاية المقتصد" में इस रहस्य का भंडा फोड़ दिया कि , मुहम्मद साहब की पत्नी आयशा न केवल लकड़बग्घा खाने को हलाल बताती थी , बल्कि खुद भी खाया करती थी ,इमाम बताते हैं कि ,भले आजकल के अधिकाँश विद्वान गधे और लकड़बग्घे को खाना हराम कहते हैं ,सिवाय इब्ने अब्बास और आयशा के , क्योंकि यह दौनों इन्हें खाने को हराम नही मानते थे ,
      "The majority of scholars deem the meat of donkey and hyena to be Haram ,except ibn Abbas and Ayesha as it has narrated that both of them deemed it Halal "

      فإن جمهور العلماء على تحريم لحوم الحمر الإنسية الا ما روي عن ابن عباس وعائشة انهما كانا يبيحانهما وعن مالك انه كان يكرهها

      ""इब्ने अब्बास और आयशा ने कहा वह ( गधा और लकड़बग्घा ) हराम बिलकुल नही हैं "

      Ibn Abbas and aisha said that it’s not Haram "

      " قال ابن عباس وعائشة أنه ليس من الحرم. "

      Bidayat al-Mujtahid by Ibn Rushd, Volume 1 page 387:

      सब जानत हैं कि जैसे गधा अपनी मूर्खता और अड़ियल स्वभाव के लिए बदनाम है , उसी तरह लकड़ बग्घा अपनी मक्कारी और धोखे से हमला करने के लिए कुख्यात है , तो बताइए जो रसूल , उसके सहाबा और पत्नी इन जानवरों को खाया करते हों उनका स्वभाव कैसा रहा होगा ?और जो लोग इनको अपना आदर्श मानते हों उनको क्या कहना चाहिए ?


      http://www.shiapen.com/concise/is-eating-flesh-of-domestic-donkey-allowed-or-prohibited.html

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    2. सैय्यद हुसैन....aap ke sare swalo ka javab me dunga per aap ko quran ko shidh karna hoga saath me farzi khuda ko aur randi baz rasul ko bhi ...

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  15. This comment has been removed by the author.

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  16. एक साहब ने टिपण्णी करते हुए एक मशहूद दोहा पेश किया हे ,
    कंकर पत्थर जोड़ कर मस्जिद ली बनाए
    tachad मुल्ला बांग दे किया भरा हुआ खुदाए
    इन लोगों हे हल पर हंसी आती हे , जैसी नकटी देवी वैसे ऊत पुजारी
    दोहे के निर्माता को यह तक मालूम नहीं कि ताचड मुल्ला बांग इस लिए नहीं देता कि वह खुदा को सुनाना चाहता हे ,परन्तु वह लोगों को सुनाना चाहता हे ताकि वे सुन कर जान जाएँ कि नमाज़ का समय हो गया हे , एक हिन्दू भाई कह रहे थे कि अज़ान में जब अल्लाहू अकबर कहा जा ता हेर तो यह अकबर बादशाह का ज़िक्र होता हे , मैंने सोचा कि कितने भोले लोग हैं बेचारे , जिन्हें इतना भी ज्ञान नहीं अकबर के मन बड़ा के होते हें और अल्लाह हु अकबर में अल्लाह की महानता ब्यान की जा ती हे ,
    एक दुसरे साहब सय्यद हुसैन हें ,इन की कहानी यह हे की कव्वा चला हंस की चल तो अपनी भी भूला , इन बेचारों ने मुस्लिन नाम रखना चाहा परन्तु किसी की मदद नहीं ली , और एसा नाम रखा जो खुद चुगली खा रहा हे की यह छद्म नाम हे ,रही बात तर्कों की , तो वह इनके पास हे नहीं , अब बेचारे गली देकर अपने मन की भडास नीकाल लेते हें , खेर ब्लोग की दुन्या से एक बड़ा फाइदा हुआ हे , वह यह कि कितनी ही मानसिकताएं खुल कर सामने आगयी ,खास तोर पर भारत के कुछ हिन्दुओं की मानसिकता यहा के मुसलामानों के ताल्लुक से ,वेसे जिस ज़हनियत का पता चल रहा हे वह कोई अच्छा संकेत नहीं , बहरहाल यह बात खुल कर सामने आ रही हे कि कुछ भारतियों को यहाँ का मुसलमान एक नजर नहीं भाता ,

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  17. एक साहब ने टिपण्णी करते हुए एक मशहूद दोहा पेश किया हे ,
    कंकर पत्थर जोड़ कर मस्जिद ली बनाए
    tachad मुल्ला बांग दे किया भरा हुआ खुदाए
    इन लोगों हे हल पर हंसी आती हे , जैसी नकटी देवी वैसे ऊत पुजारी
    दोहे के निर्माता को यह तक मालूम नहीं कि ताचड मुल्ला बांग इस लिए नहीं देता कि वह खुदा को सुनाना चाहता हे ,परन्तु वह लोगों को सुनाना चाहता हे ताकि वे सुन कर जान जाएँ कि नमाज़ का समय हो गया हे , एक हिन्दू भाई कह रहे थे कि अज़ान में जब अल्लाहू अकबर कहा जा ता हेर तो यह अकबर बादशाह का ज़िक्र होता हे , मैंने सोचा कि कितने भोले लोग हैं बेचारे , जिन्हें इतना भी ज्ञान नहीं अकबर के मन बड़ा के होते हें और अल्लाह हु अकबर में अल्लाह की महानता ब्यान की जा ती हे ,
    एक दुसरे साहब सय्यद हुसैन हें ,इन की कहानी यह हे की कव्वा चला हंस की चल तो अपनी भी भूला , इन बेचारों ने मुस्लिन नाम रखना चाहा परन्तु किसी की मदद नहीं ली , और एसा नाम रखा जो खुद चुगली खा रहा हे की यह छद्म नाम हे ,रही बात तर्कों की , तो वह इनके पास हे नहीं , अब बेचारे गली देकर अपने मन की भडास नीकाल लेते हें , खेर ब्लोग की दुन्या से एक बड़ा फाइदा हुआ हे , वह यह कि कितनी ही मानसिकताएं खुल कर सामने आगयी ,खास तोर पर भारत के कुछ हिन्दुओं की मानसिकता यहा के मुसलामानों के ताल्लुक से ,वेसे जिस ज़हनियत का पता चल रहा हे वह कोई अच्छा संकेत नहीं , बहरहाल यह बात खुल कर सामने आ रही हे कि कुछ भारतियों को यहाँ का मुसलमान एक नजर नहीं भाता ,

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  18. एक साहब ने टिपण्णी करते हुए एक मशहूद दोहा पेश किया हे ,
    कंकर पत्थर जोड़ कर मस्जिद ली बनाए
    tachad मुल्ला बांग दे किया भरा हुआ खुदाए
    इन लोगों हे हल पर हंसी आती हे , जैसी नकटी देवी वैसे ऊत पुजारी
    दोहे के निर्माता को यह तक मालूम नहीं कि ताचड मुल्ला बांग इस लिए नहीं देता कि वह खुदा को सुनाना चाहता हे ,परन्तु वह लोगों को सुनाना चाहता हे ताकि वे सुन कर जान जाएँ कि नमाज़ का समय हो गया हे , एक हिन्दू भाई कह रहे थे कि अज़ान में जब अल्लाहू अकबर कहा जा ता हेर तो यह अकबर बादशाह का ज़िक्र होता हे , मैंने सोचा कि कितने भोले लोग हैं बेचारे , जिन्हें इतना भी ज्ञान नहीं अकबर के मन बड़ा के होते हें और अल्लाह हु अकबर में अल्लाह की महानता ब्यान की जा ती हे ,
    एक दुसरे साहब सय्यद हुसैन हें ,इन की कहानी यह हे की कव्वा चला हंस की चल तो अपनी भी भूला , इन बेचारों ने मुस्लिन नाम रखना चाहा परन्तु किसी की मदद नहीं ली , और एसा नाम रखा जो खुद चुगली खा रहा हे की यह छद्म नाम हे ,रही बात तर्कों की , तो वह इनके पास हे नहीं , अब बेचारे गली देकर अपने मन की भडास नीकाल लेते हें , खेर ब्लोग की दुन्या से एक बड़ा फाइदा हुआ हे , वह यह कि कितनी ही मानसिकताएं खुल कर सामने आगयी ,खास तोर पर भारत के कुछ हिन्दुओं की मानसिकता यहा के मुसलामानों के ताल्लुक से ,वेसे जिस ज़हनियत का पता चल रहा हे वह कोई अच्छा संकेत नहीं , बहरहाल यह बात खुल कर सामने आ रही हे कि कुछ भारतियों को यहाँ का मुसलमान एक नजर नहीं भाता ,

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  19. एक साहब ने टिपण्णी करते हुए एक मशहूद दोहा पेश किया हे ,
    कंकर पत्थर जोड़ कर मस्जिद ली बनाए
    tachad मुल्ला बांग दे किया भरा हुआ खुदाए
    इन लोगों हे हल पर हंसी आती हे , जैसी नकटी देवी वैसे ऊत पुजारी
    दोहे के निर्माता को यह तक मालूम नहीं कि ताचड मुल्ला बांग इस लिए नहीं देता कि वह खुदा को सुनाना चाहता हे ,परन्तु वह लोगों को सुनाना चाहता हे ताकि वे सुन कर जान जाएँ कि नमाज़ का समय हो गया हे , एक हिन्दू भाई कह रहे थे कि अज़ान में जब अल्लाहू अकबर कहा जा ता हेर तो यह अकबर बादशाह का ज़िक्र होता हे , मैंने सोचा कि कितने भोले लोग हैं बेचारे , जिन्हें इतना भी ज्ञान नहीं अकबर के मन बड़ा के होते हें और अल्लाह हु अकबर में अल्लाह की महानता ब्यान की जा ती हे ,
    एक दुसरे साहब सय्यद हुसैन हें ,इन की कहानी यह हे की कव्वा चला हंस की चल तो अपनी भी भूला , इन बेचारों ने मुस्लिन नाम रखना चाहा परन्तु किसी की मदद नहीं ली , और एसा नाम रखा जो खुद चुगली खा रहा हे की यह छद्म नाम हे ,रही बात तर्कों की , तो वह इनके पास हे नहीं , अब बेचारे गली देकर अपने मन की भडास नीकाल लेते हें , खेर ब्लोग की दुन्या से एक बड़ा फाइदा हुआ हे , वह यह कि कितनी ही मानसिकताएं खुल कर सामने आगयी ,खास तोर पर भारत के कुछ हिन्दुओं की मानसिकता यहा के मुसलामानों के ताल्लुक से ,वेसे जिस ज़हनियत का पता चल रहा हे वह कोई अच्छा संकेत नहीं , बहरहाल यह बात खुल कर सामने आ रही हे कि कुछ भारतियों को यहाँ का मुसलमान एक नजर नहीं भाता ,

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  20. असलम साहब आपने हिंदु महापुरुषो के कथन दिए लेकिन मेरा प्रश्न तो बौद्धिक दृष्टि वाले महान ब्लागरो से था मगर वे भी जवाब नही दे पाए और दूसरे तरीके से गालियां दे गए जैसे आपको दे रहे है ।

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  21. असलम साहेब बहुत ही अच्छा कहा हैं आपने, हम तो उस समय थे ही नहीं जब भगवान राम पैदा हुए थे और ना ही आप उस समय थे जब मुहम्मद साहेब पैदा हुए थे. लेकिन इतना जरुर हैं कि मक्का और मदीना ये चिल्ला - चिल्ला के कहते हैं कि मुहम्मद साहेब थे. ठीक उसी तरह हिंदुस्तान में अयोध्या , चित्रकूट, पंचवटी, नेपाल में जनक पुर और श्री लंका भी ये चिल्ला - चिल्ला के कहते हैं कि भगवान श्री राम का अस्तित्व था. अगर बाल्मीकि रामायण को आप झूठा मानते हैं तो रामचरित मानस तो तुलसी दास जी ने १५०० शताब्दी में लिख था. उस समय इतने साधन नहीं थे कि समुन्द्र के अन्दर जा कर के ये देखा जाय कि भगवान राम ने पुल कंहा बनवाया था.

    रही बात भारत सरकार कि तो आज भारतीय कम और इटालियन सरकार ज्यादा दिखती हैं.

    चलिए छोडिये इतना तो पता होगा कि बाबर से पहले राम का मंदिर विवादित नहीं था. और बाबर को क्या जरुरत पड़ी थी मंदिर को मस्जिद के रूप में ढालने कि . और अगर आप ये मानते हैं कि किसी भी मुस्लिम राजा ने किसी भी हिन्दू मंदिर को कभी भी नहीं तोडा था , तो मेरे पास उसी दिल्ली सरकार का बोर्ड हैं आपको दिखाने के लिए आप कभी जाइये और देखिये महरौली के पास कुब्बत -उल - इस्लाम मस्जिद हैं उसकी दिवालो पर आज भी हिन्दू और जैन देवी देवतावो कि तस्वीर नजर आ जाएगी.

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  22. जरा एक नजर इधर भी निगाह मार लीजिएगा, आप लोगों के लिए ही लिखा है :- जो राम के अस्तित्व पर सवाल उठाए, वो किसी भी सूरत में "मुसलमान" तो हरगिज नहीं हो सकता...

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  23. कहते हैं मक्का में जों स्तम्भ है वह विराट शिवलिंग हैं -आप इसे तो मांगें ?
    तब हिन्दू कैसे मान लें राम नहीं थे -आपका यह लेख धार्मिक विद्वेष फैलाने वाला माना जा सकता है !
    धर्म पर बात न करें !

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  24. क्षमा के साथ आदरणीय मिश्रा जी से पूछना चाहता हूँ कि धर्म पर जब कोई मुसलमान पूरे साजो सामान, सच्चाई और सबूत के साथ बातचीत करता है तो लोग (शांति शांति चिल्लाकर) शांत करवा देते हैं या उन्हें कट्टर कहने लगते हैं... ऐसा क्यूँ होता है? क्यूँ नहीं लोग इस विषय पर खुल के बात करते हैं?? क्यूँ नहीं, क्यूँ नहीं, क्यूँ नहीं???

    वैसे आपने भी उस सवाल का जवाब नहीं दिया???

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  25. जिस तरह से खुल के सेक्स के बारे में बातें होती हैं, खुल के समलैंगिकता की बात करते हैं, खुल के महिला नंगीकरण ...सॉरी सशक्तिकरण की बात करते हैं उसी तरह एक सार्थक बहस क्यूँ नहीं करते हैं...? और वैसे भी यहाँ पर एक छोटा सा सवाल है, उसका जवाब देना है बस?

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  26. @Mishra Sir, जहाँ तक मुझे मालूम है अभी तक एक भी ऐसा साक्ष्य नहीं मिले जिससे यह तस्दीक हो कि वहाँ कोई मंदिर थी. दुसरा राम की ऐतिहासिकता पर देश के प्रधानमंत्री जी का बयान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. वही अगर हम वास्तविक रूप से पूर्वाग्रह को अलमारी में बंद करके ये जान लें कि रामकथा को हिंदी भाषा क्षेत्र में हालांकि रामचरितमानस ने लोकप्रिय बनाया, तथापि अवधी भाषा का यह महाकाव्य वाल्मीकि के संस्कृत महाकाव्य रामायण पर आधारित है. मूल राम महाकाव्य कोई समरूप रचना नहीं है. मूल रूप से इसमें 6,000 श्लोक थे, जिन्हें बाद से बढ़ा कर 12,000 और अंतत: 24,000 कर दिया गया. विषयवस्तु के आधार पर इस ग्रंथ के आलोचनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि यह चार अवस्थाओं से होकर गुजरा था. इसकी अंतिम अवस्था 12वीं शताब्दी के आसपास की बतायी जाती है और सबसे आरंभिक अवस्था ईपू 400 के आसपास की हो सकती है. किंतु यह महाकाव्य इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वर्ग विभक्त, पितृसतात्मक और राज्यसत्ता आधारित समाज के व्यवस्थित कार्यचालन के लिए कतिपय आदर्श निर्धारित करता है. यह शिक्षा देता है कि पूत्र को पिता की, छोटे भाई को बड़े भाई की और पत्नी को पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए. यह इस बात पर बल देता है कि विभिन्न वर्णों के लिए जो कर्तव्य निर्धारित किये गये हैं, उन्हें उनका पालन अवश्य करना चाहिए और वर्ण-जाति संबंधी कर्तव्यों से भटक जानेवालों को जब भी जरूरी हो निर्मम दंड दिया जाना चाहिए और अंत में यह राजा सहित सभी को आदेशि करता है कि धर्म के जो आदर्श राज्य, वर्ण और परिवार के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए निर्दिष्ट किये गये हैं, उन्हीं के अनुसार चलें. विभीषण अपने कुल, जो गोत्र आधारित समाज के सदस्यों को एक साथ बांधे रखने के लिए सर्वाधिक आवश्यक था, के प्रति निष्ठा की बलि देकर भी धर्म नाम की विचारधारा में शामिल हुआ. वाल्मीकि द्वारा निर्दिष्ट सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंड जैन, बौद्ध और अन्य ब्राह्मण महाकाव्यों और लोक कथाओं में भी दृष्टिगोचर होते हैं, महाकाव्य और लोक कथाएं भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास में मानदंडों, अवस्थाओं और प्रक्रियाओं को समझने के लिए निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं, पर उनमें उल्लिखित कुछ ही राजाओं व अन्य महान विभूतियों की ऐतिहासिकता को पुरातत्व, शिलालेखों, प्रतिमाओं और अन्य स्त्रोतों के आधार पर सत्यापित किया जा सकता है.
    दुर्भाग्य से हमारे पास इस तरह का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है, जो ईसा पूर्व 2000 से ईसा पूर्व 1800 के बीच एक ऐसी अवधि, जिसे पुराणों की परंपरा पर काम करनेवाले कुछ विद्वानों ने राम का काल बताया है, अयोध्या में राम की ऐतिहासिकता को सिद्ध कर सके.

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  27. और हाँ 'इसलाम' अथवा मुसलामानों ने हिंदू संस्कृति को लगभग पूरी तरह से विनष्ट कर दिया था, यह इतिहास और इस्लाम-विरोधी लोगों का एक और मिथ्याकरण है. अगर हम आंतरिक और बाहरी कारकों की अनुक्रिया में भारतीय संस्कृति के विकास और संश्लेषण की प्रक्रिया को देखें तो पता चलता है कि मध्यकाल में संस्कृति की निश्चित तौर पर प्रगति हुई. यहां हम भारतीय इसलामी कला, वास्तु, साहित्य आदि के विकास की, जिससे हम ब्लॉगर्स तो कम लेकिन इतिहास के विद्यार्थी भली-भांति परिचित हैं, अधिक चर्चा नहीं करेंगे. पर यदि हम केवल ब्राह्मण संस्कृति और संस्कृत साहित्य के अध्ययन की प्रगति तथा भारतीय आर्य और द्रविड़ भाषाओं के विकास की समीक्षा करें, तब भी मध्यकाल भारतीय इतिहास का निर्विवाद रूप से महान रचनात्मक काल सिद्ध होगा. सुलतानों और मुगल राजाओं के शासनकाल में ही बंगाल सहित भारत के प्रत्येक महत्वपूर्ण क्षेत्र ने अपनी सांस्कृतिक पहचान विकसित की और इस तरह भारतीय संस्कृति के बहुरंगी वितान में अपना योगदान किया. असल में क्षेत्रीय भाषाओं और साहित्य के विकास की दृष्टि से मध्यकाल सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय था. हिंदू संस्कृति केवल दो अलग-अलग द्वीपवत क्षेत्रों में, उत्तर में मिथिला में और दक्षिण में विजयनगर में पुष्पित-पल्लवित हुई. पर संस्कृत की सबसे अधिक पांडुलिपियां हमें'मुसलिम' शासित राज्य कश्मीर से प्राप्त हुई हैं, जहां के पंडितों को फारसी और संस्कृत दोनों में समान रूप से प्रवीणता प्राप्त थी. अगर तर्क यह है कि नालंदा की समस्त बौद्ध पांडुलिपियां मुसलमानों द्वारा नष्ट कर दी गयी थीं, तब गुजरात के सुलतानों के समय क्यों जैन पांडुलिपियों को भली-भांति संरक्षित रखा गया? ऐसी अधिकतर पांडुलिपियां, जिनके आधार पर प्राचीन भारतीय विरासत का उद्धार हुआ खास कर कश्मीर, पश्चिमी और दक्षिणी भारत तथा मिथिला और पूर्वी भारत में सुलतानों और मुगलों के शासन के दौरान, लिखी गयीं और संरिक्षत की गयीं. जिसे आधुनिक 'हिंदू नवजागरण' कहा जाता है, वह इन मध्यकालीन पांडुलिपियों के बिना संभव ही न हुआ होता.

    तुर्क सुल्तानों और मुगल बादशाहों के शासनकाल में, मूल रचनाओं के अलावा न केवल महाकाव्यों, काव्यों, धर्मसूत्रों और स्मृतियां पर बल्कि श्रोतसूत्रों और गुह्यसूत्रों, दर्शन, तर्क शास्त्र, व्याकरण, खगोल विज्ञान, गणित आदि सहित वैदिक ग्रंथों पर भी अनेकानेक विद्वत्तापूर्ण टीकाएं लिखी गयीं. प्राचीन पाठों पर टीकाएं लिखने की प्रक्रिया में टीकाकारों ने काफी कुछ मौलिक योगदान किया. यही नहीं, तर्क शास्त्र की नव्यन्याय प्रणाली, जिसके लिए भारत प्रसिद्ध है न केवल मिथिला में विकसित हुई, बल्कि सुलतानों के शासन के अंतर्गत बंगाल में भी उसका विकास हुआ. धर्मशास्त्र के टीकाकारों ने समाज में हो चुके परिवर्तनों को यथोचित लक्षित किया और धर्मशास्त्र के प्रावधानों की तदनुसार व्याख्या करने का प्रयास किया. निश्चय ही भारत में उत्तर मध्यकाल के दौरान ठीक उस तरह की सामाजिक और आर्थिक प्रगति नहीं हुई, जिस तरह की ग्रति पश्चिमी यूरोप के देशों में हुई थी. किंतु यह बात लगभग संपूर्ण एशिया के बारे में सच है, जिसका कि केवल एक हिस्सा इसलामी शासकों के शासन के अंतर्गत था. फिर भारत में ही मुसलिम शासन को क्यों भला-बुरा कहा जाये?

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  28. मैं केवल एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ -यदि राम नहीं हैं तो फिर अल्लाह भी नहीं हैं -कोई सबूत है ?
    मैं एक नास्तिक हूँ ,अलाह ईश्वर या गाड को नहीं मानता -क्योकि उन्हें प्रयोगशाला में सिद्ध नहीं किया जा सकता !
    अगर तुम अल्लाह के अस्तित्व को नकार दो तो मैं वह पहला व्यक्ति हूँगा जो राम को के वजूद को इनकार कर दूंगा .
    तुम सभी लोग मिल कर केवल वैमनस्य बढ़ने का काम कर रहे हो ....साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ रहे हो ...
    मैं एक सच्चा मुसलमान होता तो हिन्दुओं को आमंत्रित करता भाई आओ मक्का मदीना में एक शिव मंदिर बना लो ! मुसलमान भाईयों के यह कहते ही अयोध्या ,वाराणसी और मथुरा विवाद तुरंत खत्म हो जाते ..मगर अभी तो कितना रक्तपात होना है ....
    धर्म को लेकर क्या लड़ना ? धर्म को लेकर मूर्ख कौमे और बेवकूफ लड़ते आये हैं ..
    मूरख ह्रदय न चेत जो गुरु मिले विरंचि सम ..
    राम हिन्दुओं के प्राण हैं -ऐसा घृणित खेल मत खेलो -बहुत भारी पड जाएगा ! ब्लॉग जगत को गन्दा मत करो -ऐसा मत करो की हर रोज अल्लाह मियाँ और राम जी को सौ सौ गालियों का कुफ्र हो ....और बात ब्लॉग जगत के बहार चली जाय ...
    सलीम बंद करो यह सब ....मुझे पसंद नहीं ....

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  29. नकली नास्तिक श्री अरविन्द मिश्रा जी ! ये बात बाहर से ही ब्लॉगजगत में आई है। ये लोग पूछ रहे हैं कुछ तो आप बता दीजिये। नहीं जानते तो जानने वाले बता दें, लफ़ड़ा खल्लास, लड़ना कायकू रे।

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  30. @ नकली नास्तिक श्री अरविन्द मिश्रा जी ! ये बात बाहर से ही ब्लॉगजगत में आई है। ये लोग पूछ रहे हैं कुछ तो आप बता दीजिये। नहीं जानते तो जानने वाले बता दें, लफ़ड़ा खल्लास, लड़ना कायकू रे।
    फर्जी नास्तिक प्रवीण शाह भैया! हिन्दू कहते हैं कि रामचन्द्र पैदा हुए , विवाह किया ,राज किया , युद्ध किया , बच्चे पैदा किये, पुत्र-पति आदि के संबंध निबाहे और भाई के गम में आत्महत्या कर ली । ये सब बातें तो मुसलमान नहीं कह रहे हैं, ज्ञानी और महाज्ञानी कह रहे हैं, उन्हें धमकाइये न जाकर। इन बेचारों ने सारी बात जानकर भी कुछ नहीं लिखा वर्ना पंडों ने यह भी लिख रखा है कि रामचन्द्र जी नेचुरली पैदा नहीं हुए थे। अगर एक आस्था दूसरी आस्था से न टकराये तो कोई कुछ भी माने परंतु अयोध्या की मस्जिद तो यह कहकर मांगी जा रही है कि यह जन्मभूमि है रामजी की तो फिर इस सवाल पर क्यों आपे से बाहर हुआ जाये कि वे पैदा कब हुए थे ?
    ‘ज्ञान से ज्ञान लड़ै सो सवाया होय‘ उक्ति को चरितार्थ कीजिये न ?

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  31. फर्जी नास्तिक प्रवीण शाह भैया! हिन्दू कहते हैं कि रामचन्द्र पैदा हुए , विवाह किया ,राज किया , युद्ध किया , बच्चे पैदा किये, पुत्र-पति आदि के संबंध निबाहे और भाई के गम में आत्महत्या कर ली । ये सब बातें तो मुसलमान नहीं कह रहे हैं, ज्ञानी और महाज्ञानी कह रहे हैं, उन्हें धमकाइये न जाकर। इन बेचारों ने सारी बात जानकर भी कुछ नहीं लिखा वर्ना पंडों ने यह भी लिख रखा है कि रामचन्द्र जी नेचुरली पैदा नहीं हुए थे। अगर एक आस्था दूसरी आस्था से न टकराये तो कोई कुछ भी माने परंतु अयोध्या की मस्जिद तो यह कहकर मांगी जा रही है कि यह जन्मभूमि है रामजी की तो फिर इस सवाल पर क्यों आपे से बाहर हुआ जाये कि वे पैदा कब हुए थे ?
    ‘ज्ञान से ज्ञान लड़ै सो सवाया होय‘ उक्ति को चरितार्थ कीजिये न ?

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  32. @गिरी भ्राता ! आपने मेरे ब्लॉग का नाम क्यों चुरा लिया है , बताओ न ? आप मेरे प्रिय विषय ‘काम‘ पर कलम क्यों उठा बैठे ?

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  33. मेरे प्यारे अरविन्द मिश्रा
    आप नास्तिक हें तो श्री राम में आस्था क्यों ? ,, दर असल आप जैसे लोगो की कहानी शुत्रमुर्ग की सी हे जिस से कहाजाए कि तुम पक्षी हो तो उड़ते क्यों नहीं तो वः कहता हे कि मैं पक्षी नहीं ऊँट हूँ ,, और जब उस से कहा जाए की तुम ऊँट हो तो बोझ उठाओ तो वः कहता हे कि मैं तो पक्षी हूँ ..
    आइये अब इस पर विचार करे कि अल्लाह को पर्योगशाला में सिद्ध किया जा सकता हे या नहीं ,
    मेरे प्यारे यह सारा ब्रह्मांड इश्वर की प्रयोगशाला हे , यह धरती यह आकाश और यह चाँद सितारे चीख चीख कर कह रहे हें कि यह सब स्वयं से नहीं ,, इस बोलते मानव का अपना वजूद खामोश जुबान से गवाही दे रहा हे कि कोई हे जो इस के पैदा होने से पहले माँ कि छाती में दूध उतार देता हे ,,, हजारों महान गेलक्सीज़ और उन के अथाह राज़ मजबूर करते हें कि इन के पीछे कोई सत्ता मानी जाए जो इस बर्हमांड को भली भांति चला रही हे ,,
    आज इस शक्ति का वजूद तो हर कस व् न कस स्वीकार करता हे , ख्याल रहे कि अल्लाह/गोड़ कोई मानव जेसी वास्तु नहीं ,जो इंसानी शक्ल में ही आप के सामने आए तो आप मानेंगे वर्ना नहीं ,, वेसे आप मोत को तो मानते ही होंगे ,, और जहाँ इंसान बेबस और लाचार नज़र आए , अर्थात जैसे वः मोत के सामने बेबस हो जाता हे तो फिर उसे मान लेना चाहिए कि कोई हे , जो उस के ऊपर हे ,जो उसके जीवन व् म्रत्यु को कंट्रोल कर रहा हे ,, और अगर अब आप नहीं मानते तो उस समय ,अर्थात म्रत्यु के पश्चात् देख कर मानेंगें जब मानने से कोई लाभ नहीं होगा , कुरान में हे ,,
    और लोगों को उस दिन से डराइये जब अज़ाब आएगा , उस समयं ज़ालिम
    लोग (इंकार करनेवाले) कहेंगे .हे ईश्वर हमें थोड़ी मोहलत देदे ,अब की बार हम
    तेरे पैगाम को स्वीकार करेंगे , और संदेष्ठा के बताए मार्ग पर चलेंगे , ( १४/४४)

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    1. 6-रसूल ने सबको गधा खिलाया

      और जब पाबंदी हट गयी तो रसूल खुद गधा खाने लगे और साथियों को भी खिलाने लगे , यह इस हदीस से पता चलता है ,
      "तल्हा बिन अब्दुल्लाह ने बताया कि रसूल ने गधे का गोश्त पकाया , और हम लोगों में वितरित करके सब के साथ खाया "
      "Prophet gave us some donkey meat, and told him to distribute it among his Companions "

      ، عَنْ عِيسَى بْنِ طَلْحَةَ، عَنْ طَلْحَةَ بْنِ عُبَيْدِ اللَّهِ، أَنَّ النَّبِيَّ ـ صلى الله عليه وسلم ـ أَعْطَاهُ حِمَارَ وَحْشٍ وَأَمَرَهُ أَنْ يُفَرِّقَهُ فِي الرِّفَاقِ وَهُمْ مُحْرِمُونَ ‏.‏

      सुन्नन इब्ने माजा - किताब 25 हदीस 3211

      7-घी और पनीर के साथ गधा

      "सलमान फ़ारसी ने बताया कि रसूल ने घी और पनीर के साथ गधा खाया , और कहा इसका खाना हलाल है ,क्योंकि केवल वही जानवर हराम हैं , जिनके नाम अल्लाह की किताब में दिए गए हैं , और गधे के बारे में अल्लाह की किताब में कुछ नहीं कहा है , इसलिए इसका खाना माफ़ है "
      "Messenger of Allah was asked about ghee, cheese and donkeys. He said: ‘What is lawful is that which Allah has permitted, in His Book and what is unlawful is that which Allah has forbidden in His Book. What He remained silent about is what is pardoned.’”

      ، عَنْ سَلْمَانَ الْفَارِسِيِّ، قَالَ سُئِلَ رَسُولُ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ عَنِ السَّمْنِ وَالْجُبْنِ وَالْفِرَاءِ قَالَ ‏ "‏ الْحَلاَلُ مَا أَحَلَّ اللَّهُ فِي كِتَابِهِ وَالْحَرَامُ مَا حَرَّمَ اللَّهُ فِي كِتَابِهِ وَمَا سَكَتَ عَنْهُ فَهُوَ مِمَّا عَفَا عَنْهُ ‏"‏ ‏.‏

      सुन्नन इब्ने माजा - किताब 29 हदीस 3492

      जब गधा खाने के बाद भी रसूल और उनके साथियों का दिल भर गया तो , वह लकड़बग्घा भी खाने लगे , और रसूल ने जिस कुतर्क के सहारे गधा खाने को हलाल बता दिया था ,उसी कुतर्क के सहारे लकड़बग्घा खाने को जायज सिद्ध कर दिया , इसके बारे में दो हदीसें मौजूद है ,

      8-लकड़बग्घा भी खाया

      "इब्ने अबी अम्मार ने कहा कि जब जाबिर बिन अब्दुल्लाह ने मुझ से लकड़बग्घा खाने को कहा ,तो मैंने उस से पूछ कि क्या यह हलाल है ? उसने कहा हाँ ,फिर मैंने पूछा कि क्या तुमने यह बात रसूल से सुनी है ? तो वह बोला हाँ .

      "I asked Jabir bin Abdulla about hyenas, and he told me to eat them. I said: "Is it lawfull ? He said: 'Yes' I said: 'Did you hear that from the Messenger of Allah?' He said: 'Yes.'" (Sahih)

      ، عَنِ ابْنِ أَبِي عَمَّارٍ، قَالَ سَأَلْتُ جَابِرَ بْنَ عَبْدِ اللَّهِ عَنِ الضَّبُعِ، فَأَمَرَنِي بِأَكْلِهَا ‏.‏ قُلْتُ أَصَيْدٌ هِيَ قَالَ نَعَمْ ‏.‏ قُلْتُ أَسَمِعْتَهُ مِنْ رَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم قَالَ نَعَمْ ‏.‏

      सुन्नन अन नसाई - जिल्द 3 किताब 24 हदीस2839

      9-लकड़ बग्घा का शिकार

      "इब्ने अबी अम्मार ने कहा कि जब जाबिर बिन अब्दुल्लाह ने मुझ से लकड़बग्घा खाने को कहा ,तो मैंने उस से पूछ कि क्या यह शिकार करने योग्य जानवर है ? उसने कहा हाँ ,फिर मैंने पूछा कि क्या तुमने यह बात रसूल से सुनी है ? तो वह बोला हाँ . "I asked Jabir bin 'Abdullah about hyenas and he told me to eat them. I said: 'Are they game that can be hunted)? He said: 'Yes,' I said: 'Did you hear that form the Messenger of Allah He said: 'Yes," (Sahih)

      ، عَنِ ابْنِ أَبِي عَمَّارٍ، قَالَ سَأَلْتُ جَابِرَ بْنَ عَبْدِ اللَّهِ عَنِ الضَّبُعِ، فَأَمَرَنِي بِأَكْلِهَا فَقُلْتُ أَصَيْدٌ هِيَ قَالَ نَعَمْ ‏.‏ قُلْتُ أَسَمِعْتَهُ مِنْ رَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم قَالَ نَعَمْ ‏.‏

      सुन्नन अन नसाई - जिल्द 5 किताब 42 हदीस 4328

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    2. 10-आयशा ने लकड़बग्घा खाया

      अभी तक तो हदीसों से साबित हो गया कि रसूल और उनके साथी लकड़बग्घा खाया करते थे , लेकिन मलिकी फिरके के सुन्नी इमाम "अबू अल वलीद मुहम्मद बिन अहमद बिन रशद - أبو الوليد محمد بن احمد بن رشد‎" ने अपनी इतिहासिक किताब( textbook of Maliki doctrine in a comparative framework) "बिदायतुल मुजतहिद वल निहायतुल मुक्तहिद - بداية المجتهد و نهاية المقتصد" में इस रहस्य का भंडा फोड़ दिया कि , मुहम्मद साहब की पत्नी आयशा न केवल लकड़बग्घा खाने को हलाल बताती थी , बल्कि खुद भी खाया करती थी ,इमाम बताते हैं कि ,भले आजकल के अधिकाँश विद्वान गधे और लकड़बग्घे को खाना हराम कहते हैं ,सिवाय इब्ने अब्बास और आयशा के , क्योंकि यह दौनों इन्हें खाने को हराम नही मानते थे ,
      "The majority of scholars deem the meat of donkey and hyena to be Haram ,except ibn Abbas and Ayesha as it has narrated that both of them deemed it Halal "

      فإن جمهور العلماء على تحريم لحوم الحمر الإنسية الا ما روي عن ابن عباس وعائشة انهما كانا يبيحانهما وعن مالك انه كان يكرهها

      ""इब्ने अब्बास और आयशा ने कहा वह ( गधा और लकड़बग्घा ) हराम बिलकुल नही हैं "

      Ibn Abbas and aisha said that it’s not Haram "

      " قال ابن عباس وعائشة أنه ليس من الحرم. "

      Bidayat al-Mujtahid by Ibn Rushd, Volume 1 page 387:

      सब जानत हैं कि जैसे गधा अपनी मूर्खता और अड़ियल स्वभाव के लिए बदनाम है , उसी तरह लकड़ बग्घा अपनी मक्कारी और धोखे से हमला करने के लिए कुख्यात है , तो बताइए जो रसूल , उसके सहाबा और पत्नी इन जानवरों को खाया करते हों उनका स्वभाव कैसा रहा होगा ?और जो लोग इनको अपना आदर्श मानते हों उनको क्या कहना चाहिए ?


      http://www.shiapen.com/concise/is-eating-flesh-of-domestic-donkey-allowed-or-prohibited.html

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  34. मेरे प्यारे अरविन्द मिश्रा
    आप नास्तिक हें तो श्री राम में आस्था क्यों ? ,, दर असल आप जैसे लोगो की कहानी शुत्रमुर्ग की सी हे जिस से कहाजाए कि तुम पक्षी हो तो उड़ते क्यों नहीं तो वः कहता हे कि मैं पक्षी नहीं ऊँट हूँ ,, और जब उस से कहा जाए की तुम ऊँट हो तो बोझ उठाओ तो वः कहता हे कि मैं तो पक्षी हूँ ..
    आइये अब इस पर विचार करे कि अल्लाह को पर्योगशाला में सिद्ध किया जा सकता हे या नहीं ,
    मेरे प्यारे यह सारा ब्रह्मांड इश्वर की प्रयोगशाला हे , यह धरती यह आकाश और यह चाँद सितारे चीख चीख कर कह रहे हें कि यह सब स्वयं से नहीं ,, इस बोलते मानव का अपना वजूद खामोश जुबान से गवाही दे रहा हे कि कोई हे जो इस के पैदा होने से पहले माँ कि छाती में दूध उतार देता हे ,,, हजारों महान गेलक्सीज़ और उन के अथाह राज़ मजबूर करते हें कि इन के पीछे कोई सत्ता मानी जाए जो इस बर्हमांड को भली भांति चला रही हे ,,
    आज इस शक्ति का वजूद तो हर कस व् न कस स्वीकार करता हे , ख्याल रहे कि अल्लाह/गोड़ कोई मानव जेसी वास्तु नहीं ,जो इंसानी शक्ल में ही आप के सामने आए तो आप मानेंगे वर्ना नहीं ,, वेसे आप मोत को तो मानते ही होंगे ,, और जहाँ इंसान बेबस और लाचार नज़र आए , अर्थात जैसे वः मोत के सामने बेबस हो जाता हे तो फिर उसे मान लेना चाहिए कि कोई हे , जो उस के ऊपर हे ,जो उसके जीवन व् म्रत्यु को कंट्रोल कर रहा हे ,, और अगर अब आप नहीं मानते तो उस समय ,अर्थात म्रत्यु के पश्चात् देख कर मानेंगें जब मानने से कोई लाभ नहीं होगा , कुरान में हे ,,
    और लोगों को उस दिन से डराइये जब अज़ाब आएगा , उस समयं ज़ालिम
    लोग (इंकार करनेवाले) कहेंगे .हे ईश्वर हमें थोड़ी मोहलत देदे ,अब की बार हम
    तेरे पैगाम को स्वीकार करेंगे , और संदेष्ठा के बताए मार्ग पर चलेंगे , ( १४/४४)

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    1. 1-खैबर की लड़ाई
      खैबर की लड़ाई को अरबी में " गजवये खैबर - غزوة خيبر " यानी Battle of Khaybar कहा जाता है , यह लड़ाई सन 629 में मुसलमानों और यहूदियों के बीच मदीना से 150 कि . मी . दूर खैबर नामके एक नखलिस्तान ( Oasis ) में हुई थी . इसीदौरान मुहम्मद साहब ने गधे का गोश्त खाया था , और उसे सदा के लिए जायज ठहरा दिया था , यह सभी हदीसें उसी प्रष्ठभूमि में कही गयी हैं ,

      लेख का दूसरा भाग लकड़बग्घा के बारे में है जिसका विवरण इस प्रकार है ,

      2-लकड़बग्घा-यह एक लोमड़ी , भेड़िया , और कुत्ते की प्रजाति का जानवर है , जोसर्वभक्षी है . यहाँ तक मरे हुए जानवरो की हड्डिया भी हजम कर जाता है . इसलिए इसके शरीर से अजीब सी दुर्गन्ध निकलती रहती है . अरबी में " जबअ --ضبع- " कहते हैं , जिसका बहुवचन "अल जबयात - الضبعيات " है . अंगेरजी में इसे Hyena और फ़ारसी में " कफ्तार - کفتار "
      कहते है . बदबू के कारण लोग इसे नही खाते , लकिन मुहम्मद साहब और उनके साथी इसका शिकार करके शौक से खाया करते थे , यही नहीं मुहम्मद साहब की पत्नी इसके खाने को जायज मान कर खुद खाती थी , जो इन हदीसों और इस्लाम की किताबों से सिद्ध होता है ,


      1-गधा नही घोड़ा खाओ
      "जबीर बिन अब्दुल्लाह ने कहा कि खैबर की लड़ाई के समय रसूल ने कहा था किई गधे का गोश्त खाना हराम है , तुम घोड़े का गोश्त खा सकते हो "
      The Prophet prohibited the eating of donkey's meat on the day of the battle of Khaibar, and allowed the eating of horse flesh.

      ، عَنْ جَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ، قَالَ نَهَى النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم يَوْمَ خَيْبَرَ عَنْ لُحُومِ الْحُمُرِ، وَرَخَّصَ فِي لُحُومِ الْخَيْلِ‏.‏

      सही बुखारी - जिल्द 7 किताब 67 हदीस 433

      2-गधा नही घोड़ा खाओ

      "जबीर बिन अब्दुल्लाह ने कहा कि खैबर की लड़ाई के समय रसूल ने कहा था किई गधे का गोश्त खाना गैर कानूनी है इसलिए तुम घोड़े का गोश्त खाया करो "
      "Allah's Messenger made donkey's meat unlawful and allowed the eating of horse flesh "

      ، عَنْ جَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ ـ رضى الله عنهم ـ قَالَ نَهَى النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم يَوْمَ خَيْبَرَ عَنْ لُحُومِ الْحُمُرِ، وَرَخَّصَ فِي لُحُومِ الْخَيْلِ‏.‏

      सही बुखारी - जिल्द 7 किताब 67 हदीस 429

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  35. श्री राम आदि के अस्तित्व के बारे में बहस करने का औचित्य समझ में नही आता क्योंकि मूर्ती पूजक को तो मूर्ति दिखाई देती है जिसका अस्तित्व बेशक है.

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    1. 1-खैबर की लड़ाई
      खैबर की लड़ाई को अरबी में " गजवये खैबर - غزوة خيبر " यानी Battle of Khaybar कहा जाता है , यह लड़ाई सन 629 में मुसलमानों और यहूदियों के बीच मदीना से 150 कि . मी . दूर खैबर नामके एक नखलिस्तान ( Oasis ) में हुई थी . इसीदौरान मुहम्मद साहब ने गधे का गोश्त खाया था , और उसे सदा के लिए जायज ठहरा दिया था , यह सभी हदीसें उसी प्रष्ठभूमि में कही गयी हैं ,

      लेख का दूसरा भाग लकड़बग्घा के बारे में है जिसका विवरण इस प्रकार है ,

      2-लकड़बग्घा-यह एक लोमड़ी , भेड़िया , और कुत्ते की प्रजाति का जानवर है , जोसर्वभक्षी है . यहाँ तक मरे हुए जानवरो की हड्डिया भी हजम कर जाता है . इसलिए इसके शरीर से अजीब सी दुर्गन्ध निकलती रहती है . अरबी में " जबअ --ضبع- " कहते हैं , जिसका बहुवचन "अल जबयात - الضبعيات " है . अंगेरजी में इसे Hyena और फ़ारसी में " कफ्तार - کفتار "
      कहते है . बदबू के कारण लोग इसे नही खाते , लकिन मुहम्मद साहब और उनके साथी इसका शिकार करके शौक से खाया करते थे , यही नहीं मुहम्मद साहब की पत्नी इसके खाने को जायज मान कर खुद खाती थी , जो इन हदीसों और इस्लाम की किताबों से सिद्ध होता है ,


      1-गधा नही घोड़ा खाओ
      "जबीर बिन अब्दुल्लाह ने कहा कि खैबर की लड़ाई के समय रसूल ने कहा था किई गधे का गोश्त खाना हराम है , तुम घोड़े का गोश्त खा सकते हो "
      The Prophet prohibited the eating of donkey's meat on the day of the battle of Khaibar, and allowed the eating of horse flesh.

      ، عَنْ جَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ، قَالَ نَهَى النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم يَوْمَ خَيْبَرَ عَنْ لُحُومِ الْحُمُرِ، وَرَخَّصَ فِي لُحُومِ الْخَيْلِ‏.‏

      सही बुखारी - जिल्द 7 किताब 67 हदीस 433

      2-गधा नही घोड़ा खाओ

      "जबीर बिन अब्दुल्लाह ने कहा कि खैबर की लड़ाई के समय रसूल ने कहा था किई गधे का गोश्त खाना गैर कानूनी है इसलिए तुम घोड़े का गोश्त खाया करो "
      "Allah's Messenger made donkey's meat unlawful and allowed the eating of horse flesh "

      ، عَنْ جَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ ـ رضى الله عنهم ـ قَالَ نَهَى النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم يَوْمَ خَيْبَرَ عَنْ لُحُومِ الْحُمُرِ، وَرَخَّصَ فِي لُحُومِ الْخَيْلِ‏.‏

      सही बुखारी - जिल्द 7 किताब 67 हदीस 429

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    2. 3-गधा मार कर खाया

      "अब्दुल्लाह बिन अबू कतदा ने कहा कि खैबर के समय हम लोग इहराम की हालत में , और दुश्मन छुपे हुए थे तभी हमारी नजर एक गधे पर पड़ी हमने उसे भाले से मार दिया और काट कर उसका गोश्त पका कर रसूल के साथ मिल कर खा लिया "
      " we saw a ass. and attacked It with a spear and we ate its meat."

      حَدَّثَنِي عَبْدُ اللَّهِ بْنُ أَبِي قَتَادَةَ، قَالَ انْطَلَقَ أَبِي مَعَ رَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم عَامَ الْحُدَيْبِيَةِ فَأَحْرَمَ أَصْحَابُهُ وَلَمْ يُحْرِمْ وَحُدِّثَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم أَنَّ عَدُوًّا بِغَيْقَةَ فَانْطَلَقَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم - قَالَ - فَبَيْنَمَا أَنَا مَعَ أَصْحَابِهِ يَضْحَكُ بَعْضُهُمْ إِلَى بَعْضٍ إِذْ نَظَرْتُ فَإِذَا أَنَا بِحِمَارِ وَحْشٍ فَحَمَلْتُ عَلَيْهِ فَطَعَنْتُهُ فَأَثْبَتُّهُ فَاسْتَعَنْتُهُمْ فَأَبَوْ

      सही मुस्लिम - किताब 7 हदीस 2710

      4-गधे के साथ घोड़ा भी खाया

      "अबू जुबैर और जबीर बिन अब्दुल्लाह ने बताया कि खैबर में हमने गधे के साथ घोड़े का गोश्त भी खाया था "

      “At the time of Khaibar we ate horses and donkeys.”

      ، حَدَّثَنَا ابْنُ جُرَيْجٍ، أَخْبَرَنِي أَبُو الزُّبَيْرِ، أَنَّهُ سَمِعَ جَابِرَ بْنَ عَبْدِ اللَّهِ، يَقُولُ أَكَلْنَا زَمَنَ خَيْبَرَ الْخَيْلَ وَحُمُرَ الْوَحْشِ ‏.‏

      सुन्नन इब्ने माजा - किताब 27 हदीस 3312

      5-गधे के गोश्त पर अस्थायी पाबंदी

      "इब्ने अब्बास ने कहा कि रसूल ने अस्थायी ( temporarily) रूप से गधे का गोश्त खाने से मना किया था . क्योंकि उस समय लोग गधों पर सामान ले जाने का काम लेते थे "
      " Prophet forbade the eating of donkey-meat temporarily because they were means of transportation "

      ، عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ ـ رضى الله عنهما ـ قَالَ لاَ أَدْرِي أَنَهَى عَنْهُ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم مِنْ أَجْلِ أَنَّهُ كَانَ حَمُولَةَ النَّاسِ، فَكَرِهَ أَنْ تَذْهَبَ حَمُولَتُهُمْ، أَوْ حَرَّمَهُ فِي يَوْمِ خَيْبَرَ، لَحْمَ الْحُمُرِ الأَهْلِيَّةِ‏.‏

      सुन्नन इब्ने माजा -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 536

      6-रसूल ने सबको गधा खिलाया

      और जब पाबंदी हट गयी तो रसूल खुद गधा खाने लगे और साथियों को भी खिलाने लगे , यह इस हदीस से पता चलता है ,
      "तल्हा बिन अब्दुल्लाह ने बताया कि रसूल ने गधे का गोश्त पकाया , और हम लोगों में वितरित करके सब के साथ खाया "
      "Prophet gave us some donkey meat, and told him to distribute it among his Companions "

      ، عَنْ عِيسَى بْنِ طَلْحَةَ، عَنْ طَلْحَةَ بْنِ عُبَيْدِ اللَّهِ، أَنَّ النَّبِيَّ ـ صلى الله عليه وسلم ـ أَعْطَاهُ حِمَارَ وَحْشٍ وَأَمَرَهُ أَنْ يُفَرِّقَهُ فِي الرِّفَاقِ وَهُمْ مُحْرِمُونَ ‏.‏

      सुन्नन इब्ने माजा - किताब 25 हदीस 3211

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  36. आप सभी मुस्लीम ब्लोगरों के भारत में होने के सबूत आप स्वयं है।
    लेकिन यदि आप सभी के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगा दिया जाय तो कैसा रहे?
    कौन है आप लोग ?
    नाम तो अरबी लगते है?
    अरब से किस तारीख को आये थे?
    अरब आदि से आने वाला हरेक का मूल पुर्वज कौन था?
    अगर मूल पुर्वज भारतिय था तो उसका नाम क्या था?
    उसने किस तिथि को इसलाम स्वीकार किया ?
    आप सभी के पास अपने अपने उत्तर नहिं है तो आप्का अस्तित्व भी संदेह के घेरे में है।

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  37. कृपया मेरा नया लेख पढ़ें , (ज्ञान की रौशनी तक पहुँचने के लिए भ्रम के अंधेरों से निकलना पड़ता है । )
    http://siratalmustaqueem.blogspot.com/2010/09/blog-post_08.html

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  38. क्यों भाइयो क्या कररहे हो ? बहस ! वो भी धर्म पर - जब भी बहस किसी चीज़ पर की जाती है तो उस चीज़ के गुण छुप जाते है, और बै वजह की बुराइयाँ निकल जाती है, और जिस मकसद से बहस की जा रही थी बात उससे हट जाती है और फिर किसी की समझ मेंकुछ नहीं आता, डा0 मु0 असलम कासमी बताना चाहते हैं कि स्लाम धर्म ही सत्य है और इस धर्म में जो अल्लाह का स्थान हे उसकी तुलना श्री राम या किसी से भी नहीं की जासकती
    रान का अस्तित्व है न होता तो इतनी लम्बी चोडी कहानी कहाँ से बन जाती, परन्तु राम को पूज्य नहीं कह सकते, यदि वह उसी इश्वेर के अवतार हैं जिसने समस्त ब्रहम्मांड का निर्माण किया है तो उन्हें मालूम होना चाहिए की सीता का उपहरण किसने किया है, भगवन थे तो बलि और सुग्रीव में समझोता करा देते छुप कर हत्या क्यों की फिर अगले जन्म में कृष्ण बन कर उसका बदला क्यों चुकाया जिसमे एक बहिलिये ने झाड़ियो की आड़ में पानी पी रहे श्री कृष्ण पर हिरन समझ कर बांड चला दिया था जिस पर उन्होंने बताया कि पिछले जन्म में मैंराम और तुम बलि थे और इश्वेर बदला दिलवा दिया है भला भगवान से केसा बदला भगवान जो करेगा सही करेगा उधर शिव जी

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  39. को ये नहीं पता कि भस्मासुर उनकी पत्नी का आशिक हे और उन्ही से वरदान प्राप्त करके उन्ही कि हत्या करना चाहता है अगर भगवाना थे तो मौत केसी भस्मासुर से डरना नहीं चाहिए था और जभी भस्मासुर के प्राण खींच लेते बल्कि वरदान देते ही न अगर ज्ञानी थे तो, इस बात से तो ये पता चलता हे कि उनको ज्ञान था ही नहीं इस बात का, उधर श्री कृष्ण मक्खन चुरा के खाते हैं भगवान को चोरी कि किया ज़रूरत जबकि एक मुस्लमान बच्चा अपनी आस्तीन फाडकर डाकुओ को अशर्फी देदेता है, क्युकी इस्लाम ने उसे यही तालीम दी है, के झूट मत बोलना चाहे कुछ भी हो जाए उधर श्री इंद्र देव हवास के इतने मारे हैं कि उन्होंने ऋषि कि गैर मोजुदगी में उनकी पत्नी से शारीरिक सम्बह्न्ध स्थापित किये, तो कही श्री कृष्ण गोपियों के कपडे ले केर भाग जाते हैं जब वो तालाब मैं नहा रही हैं क्यों कि घर मैं तो बाथरूम होता नहीं इनके यहाँ , छी: ये सब बातें आपको अच्छी लगती हैं जो इसनियत से परे हैं ज़रा सोचो जब भगवान ही ऐसे करेंगे तो उनके मानने वाले कीया करेन्गे

    बात ये है कि सच एक ऐसा दिया है जिसे कोई तूफान भी नहीं बुझा सकता इसलिए एक व्यक्ति से चला सलाम धर्म आज पूरी दुन्या मैं फैल चूका है और सिर्फ भारत में मोजूद हिन्दू धर्म आज सिमट कर मुट्ठी भर रह गया है और एक दिन वो भी होगा कि ये धर्म दुन्या से मिट जायेगा और वो दिन ज्यादा दूर भी नहीं है श्री सुज्ञ जी कहते हैं कि तुम्हारा(मुसलमानों का) क्या अस्तित्व है अरे भैया जो तुम्हारा अस्तित्व है वो ही हमारा है हम भी मूल भारती है जो तुम्हारे पूर्वज हैं वो ही हमारे हैं आपकी तरह फर्क सिर्फ इतना है कि हमें सत्य का ज्ञान हुआ तो हमने सत्य कबूल किया और मुस्लमान कहलाय तुम तो जान बूझकर सच को झुटला रहे हो किसका अस्तित्व है और किसका नहीं इस बहस मैं कुछ नहीं रक्खा

    आओ मैं तुम्हें तुम्हारे और हमारे फायदे कि बात बात बताऊ स्लाम धर्म केवल मुसलमानों कि ओर नहीं आया बल्कि पूरी दुन्या के लोगो कि तरफ आया है कुरान मुसलमानों के पढने के लिए ही नहीं आया हे बल्कि ये सारे इंसानों कि तरफ आया है मेरे भाइयो इस्लाम धर्म ही सत्य है इसे पढो इसे जानो अगर तुम अपने को बुद्धिमान समझते हो तो ये नहीं कि किसी ने इस्लामी नाम रख लिया तो वो मुसलमान हो गया मुसलमान कहते है अपने पैदा करने वाले मालिक के वफादार को जिसमे ये खूबी पायी जाए वोही ओर वो अपने पैदा करने वाले कि पूजा उसी तरीके पर करता है जो पैगम्बर मोहम्मद साहब लाये है इस्लाम को सब पढ़ें वो भी पढ़े जो अपने को मुसलमान कहते है ओर हिन्दू भी, ये धर्म मरते दम तक हर इन्सान के लिए रहमत ओर एक सच्चा दोस्त है आजमाइए इसे अभी तो आप जिंदा हैं मरने के बाद ये मोका हाथ से निकल जायगा फिर आप पछताओगे अकल्मन्द वो नहीं जो पछताए तो सोच लीजिये अपने लिए न सही अपने बच्चो व अपने परिवार के लिए सोचें यदि उनसे कुछ मुहब्बत है तो,

    हम सब इम्तिहान के लिए कुछ दिनों के लिए दुन्या मैं आये हैं फिर बुलालिये जायेंगे अगर अल्लाह का कहना मन होगा तो जन्नत,बाग़, नहरें ऐश हमेशा-हमेशा के लिए फिर कोई दुन्या इस तरह कि नहीं होगी ओर अगर कहना नहीं माना होगा तो ज़िल्लत अजाब दर्दनाक अजाब तुम्हारे लिए तुम्हारे परिवार के लिए ओर याद रखो फिर किसी को मोत माहि आएगी बताना हमारा काम है मान्ना ना मान्ना तुम्हारा काम है यहाँ हमें अल्लाह ने हसी मजाक तफरी करने के लिए नहीं भेजा है यह बहुत ही अहम् मसला हे इस बारे मैं सोचे असलम साहब हमदर्दी रखें इन बेचारे अज्ञानियों से जो वक़्त है इनके पास बस यही जीवन है ये बेचारे इसे तो चैन से गुज़ार लें फिर तो इनके सामने गम ही गम है तबाही ही तबाही है बर्बादी ही बर्बादी है कुछ तो दया करो इन पर जीने दो इन्हें वो भी चैन से, अरे अक्ल वालो अक्ल जगाहसिर लगालो,

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    1. 2-उम्मे जारा की नंगी हदीस
      अरबी में फूहड़ को Slutty ,وقحة और निर्लज्ज को صفيق ,shameless कहा जाता है .इस हदीस को उम्मे जरा की हदीस कहा जाता है .और यह हदीस इसलिए महत्वपूर्ण है कि इस हदीस में द्विअर्थी ( Double Meanings ) शब्दों का प्रयोग किया गया है . और इस से मुहम्मद साहब चारित्रिक स्तर का सही पता चलता है .पूरी हदीस इस प्रकार है ,
      " आयशा ने कहा कि अक्सर मुझ से मिलने के लिए पडौस की औरतें आया करती थी . एक बार मी अपने घर ग्यारह औरतों को बुलवाया , और उन से कहा कि वह अपने पतियों के बारे में और उनके साथ दाम्पत्य संबंधों की सभी बातें बिना शर्म के खुल कर बताएं .जिस को सुन कर रसूल थोड़े में ही सारी बात समझ जाएँ .और अपना निर्णय सबको बता सकें .
      1 . पहली औरत - बोली मेरा पति एक ऐसे ऊंट कि तरह है , लगता है उस पर मांस का थैला लदा हो . जो देखने में तो अच्छा लगता है , लेकिन ऊपर नहीं चढ़ सकता .
      2 . दूसरी औरत - बोली मेरा पति इतना ख़राब है कि उसका वर्णन नहीं कर सकती , उसके आगे और पीछे की सभी चीजें किसी भी तरह नहीं छुप सकती है .
      3 .तीसरी औरत - ने कहा , मेरा पति भोंदू है ,वह मुझे ठीक से संतुष्ट नहीं कर पाता,यदि मैं टोकती हूँ तो तलाक की बात करता है . और चुप रहती हूँ तो मेरे चरित्र पर शक करता है .क्योंकि उसे अपनी औरत को खुश करना नहीं आता है .
      4 . चौथी औरत -बोली , मेरा पति मक्का की सर्द रात की तरह ठंडा है .इसलिए न तो मुझे उस से कोई डर है और न मैं उसकी परवाह करती हूँ .
      5 .पांचवीं औरत - ने बताया , मेरा पति बाहर तो चीता बना रहता है , और घर आते ही मुझ पर शेर की तरह हमला कर देता है . लेकिन जरा सी देर में ठंडा हो जाता है .और जैसे ही मैं उसको जाने को कहती हूँ फ़ौरन भाग जाता है .
      6 . छठवीं औरत - बोली , मेरा पति भुक्खड़ है . उसे सिर्फ खाने से मतलब रहता है . वह खाने की कोई चीज नहीं छोड़ता . और खाते ही चादर ओढ़ कर सो जाता है .लेकिन मेरे शरीर को हाथ भी नहीं लगाता. यही मेरी परेशानी है .
      7 . सातवीं औरत . ने बताया , देखने में तो मेरा पति काफी उत्साही लगाता है , लेकिन वह नामर्द है . फिर भी मुझे गर्भवती करने के लिए असभ्य तरीके अपना कर मुझे दौनों तरफ से इस्तेमाल करता है . जिस से मेरा शरीर घायल हो जाता है .
      8 .आठवीं औरत -बोली मेरा पति एक फल की तरह है . जिसकी सिर्फ सुगंध ही अच्छी लगती है . लेकिन उसे जहाँ से भी टटोल कर दबाओ वह नर्म और पिलपिला प्रतीत होता है .
      9 . नौवीं औरत . ने कहा . मेरा पति ऐसी बुलंद ईमारत की तरह है , जिसके अन्दर राख भरी हो .और मेरा छोटा सा घर अन्दर से मजबूत है . फिर भी मेरा पति घर के सामने ही बैठ जाता है . कभी अन्दर नहीं घुसता .
      10 .दसवीं औरत - ने बताया ,मेरे पति का नाम " मालिक " है , और वह सचमुच का मालिक है . वह मुझे सजा कर उस ऊंट की तरह तारीफ करता है . जिसे चराने के लिए छोड़ दिया जाता है .फिर गले में घंटियाँ बांध कर हलाल करने की जगह भेज दिया जाता है .
      11 . ग्यारहवीं औरत - उम्मे जारा ने कहा , मेरा पति अबू जरा , खूब खाता है और मुझे भी खिलाता है . उसने मुझे जेवर भी पहिनाए है . लेकिन खाने में बाद अनाज की बोरी की तरह पडा रहता है . एक दिन उसे रस्ते में एक सुन्दर गुलाम औरत दिखी , जो दूध दुह रही थी .साथ में ही दो बच्चे भी खेल रहे थे. और मेरे पति ने उस औरत से शादी कर ली .मेरे घर में जगह की तंगी है , और जब मेरा पति उस औरत को घर में लाया तो मैंने विरोध किया . इस पर मेरे पति ने मुझे खजूर की टहनी से खूब मारा .और मुझे तलाक दे दी . बाद मैं मैंने एक दूसरे आदमी से शादी कर ली , जो एक घुड सवार और तीरंदाज है .अब मुझे डर है कि कहीं यह व्यक्ति भी मुझे तलाक न दे दे .
      आयशा ने कहा कि रसूल ने उम्मे जारा और सभी औरतों की सभी बातों को ध्यान से सुना .और उनका असली अर्थ भी समझ लिया .फिर उन से कहा
      " आज से मेरे लिए आयशा और तुम में कोई अंतर नहीं है ,यानि तुम मेरे लिए आयशा की तरह और आयशा मेरे लिए तुम्हारी तरह है "

      इसी हदीस को " हिशाम बिन उर्वा" ने भी दूसरे शब्दों में बयान किया है . लेकिन रसूल का निर्णय दौनों जगह एक ही है .

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    2. 3 -हदीस की प्रमाणिकता
      यह हदीस सहीह मुस्लिम की किताब 31 में हदीस नंबर 5998 पर मौजूद है .जिसे इमाम मुस्लिम ने अपनी किताब में जमा किया था. इमाम मुस्लिम का जन्म हि० 202 यानि सन 821 में ईरान के शहर निशापुर में हुआ था .और मृत्यु हि ० 261 यानी सन 875 में हुई थी .इमाम मुस्लिम ने सारे अरब , सीरिया , इराक और मिस्र में घूम घूम कर लोगों से सहबियों के वंशजों का पता किया . और उन से पूछ पूछ कर तीन लाख हदीसें इकट्ठी कर लीं . और उन में से करीब 4 हदीसों को सही मन कर अपनी किताब में शामिल कर लिया . इमाम मुस्लिम का पूरा नाम "أبو الحسين مسلم بن الحجاج القشيري النيسابوري‎अबुल हुसैन इब्न हज्जाज इब्न मुस्लिम इब्न वरात अल कुशैरी निशापुरी " है इसलिए मुसलमान इस हदीस को सही मानते हैं .और ऐसी फूहड़ बातों में भी अध्यात्म यानि रूहानियत की बात साबित करने को कोशिश करते रहते हैं .

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  40. aaaaj muze pata chal gayya ki musalmaaaannnnnnn gaddar hi hota hian sale kitna bhe hindustana ka namak kyu na khale gaddar hi hota hian

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  41. Aslam Qasmi saheb - aap yeh keh rahe hai ke Allah pura brehmaand ek prayogshala hai...phir say aap dershan ke baat bolne lage...mai yeh nahi keh raha hoon,ke kya sahi hai or kya galat per is tarah ke baten naa kare..

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  42. aslam qasmi hrami ki aoulad, snatan dharam sabse purana dharam h , aur rhi ram ya ram mandhi ki baat to tum kon hote ho unke bare me puchne wale , ynha hmare deh me ake mandhiro ko todkar , hinduo pe atyachar krke ynha ke basinde bnte ho,jis thali me khate ho usi me ched krte ho jllad

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  43. hrami zaidi bhsmasur teri maa ka ashik tha aur tera najayaz baap , islm sari duniya me apne aap phaila hai ya tumne felaya hai ,pir pegmber ek pagal insan tha jisne itne crode logo ko pagal bna diya , kuran ek gandhi mansikta walo ki kitab duniya me sabse jyada vhsi kon-------muslman duniya me sabse jyada antakwadi kon---muslman sabse jyada dusre dharam walo pe atyachar krne wala kon ---islam , na khud chain se rhte hai na dusro ko rhne dete hai , gvar ,jahil , hrami muslman

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  44. Tere Baap ne to jaroor Allah ki shakal dekhi hogi na. tab hi to us per vishvaas karta he

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  45. Sale chirkut...ye to bata ye allah kaun hai bey...?

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  46. Sale chirkut...ye to bata ye allah kaun hai bey...?

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  47. चलिए मुसलिम ब्लॉगरो मान लेते है कि हमारे राम नही थे. पर आप की कुरान के मुताबिक उसको लिखने वाला अल्ला है जबकि सच्चाई यह है कि वह मुहम्मद द्वारा ही लिखा गया है. और हां सबसे बड़ी बात आप के घटीया कानुन शरिया अगर सही है तो जब कोई मस्लिम पंचायत उसे लागु करती है तो वह क्या सही है. रही बात धर्म की तो धर्म के नाम पर जितना खुन आप के शाति प्रिय लोगो ने बहाया है उतना किसी ने नही बहाया. कुल मिलाकर आप का धर्म दुनिया में एक गंदगी है जो हटाई तो नही जा सकती पर इसे सबक जरूर सिखाया जा सकता है. अगर आप को भारत से ज्यादा अरब देश अच्छे लगते तो अभी बोरिया बिस्तर बाँध कर गोल हो जाऔ जहा से.

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  48. तुम अपना इतिहास नहीं जानते |
    तो राम को कैसे समज़गे |

    तुम बाप दादा (तुम्हरे पूरवज ) भी कभी हिन्दू रहे है |
    और राम नाम के सहारे ही जिये |

    तुम्हारी माँ और बेटी की चूत में सारे अरब का पेट्रोल डाल कर आग लगा देनी चाहिये |
    तभी तुम्हरे जैसे सुअर पैदा होने बंद होंगे |



    || जय सियाराम ||

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  49. Aslam Qasmi...kya aap chutiya hain ya ...rishi visrva k naam per bisrakh gav hain noida me...ravan ki janam bhumi....lanka hain ...jo jo ramayan me hain sare sakshay aaj k time me mahjud hain ....bharat me .....humare pass humara itihas hain ....aap batao islam k pass kya hain ....quran kun faya kun kahne se ...matlab ho ja ja ...ho gya farzi khuda ne kise kaha kisne suna koi pramad hain ..farzi quran ka ...ek sawal ka javab nahi dete mulla ..bus suno aur mano quran per sawal mat puccho allah ne quran me kaha hain kya farzi wada hain.......allah ka pahla aaviskar aadam usko saitan ne bahka diya allah ko pata nahi chala ....kya farzi khuda hain aap ka mohmmad kalki avtar hain ......mullah kahte nahi thakte ram aur krishan ko avatar kon tumara baap mane ga pichle avatar ko kyo nahi mante .....kalki puran me kalki ek patni rakhte ga koi randi baz nahi hoga mohmmad ki tarah ....14 patni nahi rakhte ha aurto ki ijjat nahi lute ga ....lutera nahi hoga .....yeh sab gun mohmmad me mahjud the ....40 sal ka jab hua mohmmad tab quran nazil honi start hui ..use pahel kya allah bhul gya tha ....farizte kutto se darte hain to fariste bhi kutte hoge kyo ki kutto se kutta darta hain aap ki hadisho me likha hain....allah ko koi bhasha thik se nahi aati bakar shabd sanskrit shabd hain na ki arabi ..quran ki dusri surah hain surah baqar ..bakar ka matlab gay hota hai english me the cow...gay k chapter me allah aadam aur saitna ki kahani suna raha hain ..kya chutiyapa hain aap k khuda ka ..kasme bhi aap ka farzi khuda he khata hain ....aaj k time me science bhi kahta hain same blood me shaadi karne se bhudhi ka vikas nahi hoga jo janwar he rahta hain wahi haal muslimo ka hain bhai bhen ki aulad .....asalm qasami history padh jab khadhiza se mohmmad ka nikah hua tha tab mohmmad khud sarab pita tha ....nahi to hadise padh kar dekh apni ...to paigamber kaise hua ..jab use khud kuch pata nahi tha....bhudhi virudh bat kuran hadisho me hain .......asalm qasmi jab islam me punar janam nahi hota hian to .....yahudi pichle janam me chuhe kaise the ..bata ..........hadisho me likha hain teri kah to pamad du .....taqqiya mullo ka dhandha hain.....

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