भंडा जी ... यह लो भांडे... और इन्हें शोक से फोड़ो
यह हैं इनके आदर्श
जो घर से मक्खन चुराए ,नदी में नहाती हुयी महिलाओं के कपडे उठा कर पेड़ पर चढ़ जाए ,वे कपडे मांगें तो कहे पहले बाहर निकलो ,वे हाथों से अपने अशलील अंगों को छुपा कर बाहर
आएं ओर अपने कपडे मांगे तो वह कहे कि पहले हाथ जोड़ कर मुझे नमस्कार करो, एसा व्यक्ति धर्म गुरु केसे हो सकता हे,? ब्रह्मा शिव की शादी में प्रोहित का कार्य करे तो पार्वती का पैर खुल जाए तो बरह्मा उसका सुन्दर पैर देखकर अस्खलित होजा
आएं ओर अपने कपडे मांगे तो वह कहे कि पहले हाथ जोड़ कर मुझे नमस्कार करो, एसा व्यक्ति धर्म गुरु केसे हो सकता हे,? ब्रह्मा शिव की शादी में प्रोहित का कार्य करे तो पार्वती का पैर खुल जाए तो बरह्मा उसका सुन्दर पैर देखकर अस्खलित होजा
,तो वह धर्मए
केसे हो सकता हे, वेद व्यास जंगल से आए ओर कोरों व् पाडुओं की माताओं को गर्भवती कर जाए तो वह धर्म गुरु केसे हो सकता हे ? पवन देवता हनुमान जी , की माता के पास आएं ओर उन्हें देख कर उन पर मोहित होजाएं ,ओर ज़बर दस्ती व्यभिचार कर के उन्हें गर्भवती बनादें तो वह धर्म गुरु केसे हो सकता हे पांच पुरुष एक पतनी रखें ,ओर जुआं खेलें ओर जुवे में पतनी को भी दाँव पर लगाएँ ओर मदिरा का सेवन करे तो वह धर्म गुरु केसे हो सकते हैं ,? ,,, पिता ओर पुत्र एक ही पतनी से सम्भोग करे तो धर्म गुरु केसे हो सकते हैं ? बरह्मा जब अपनी बेटी पर ही मोहित होजाए ओर उस के पीछे भागे ओर अस्खलित होजाए तो धर्मगुरु केसे हो सकता हे ,? मुनि गोतम जानकी अप्सरा को नग्न देख कर अस्खलित होजाएं ओर अपना वीर्य सरकंडों में रख दें जिस से वेद शास्त्र्रों के ज्ञाता गुरु किर्पचारी पैदा हों तो वह धर्मगुरु केसे हो सकता हे ?,,, जब इंद्र गोतम की पत्नी अहल्लिया से व्यभिचार करें तो धर्म गुरु केसे होसकता हे ,,?बरहम ऋषि शिवामित्र मेनका के साथ,,,,,,,? संपर्क ,,,,,,,,,,,करें तो धर्म गुरु केसे हो सकता हे ,?,,,, मित्रा मुनि उर्वशी अप्सरा को देख कर काम वासना से पीड़ित हों ओर अपना वीर्य घड़े में छोड़ दें जिस से म्र्म्गमुनिव्शिष्ट पैदा हों तो वह धर्म
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ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDelete--
प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
--
आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!
असलम जी,
ReplyDeleteक्यों पागलों के साथ पागल बन रहे हो
आओ कुछ काम की बात करें
ReplyDeletena ,,,na ,,, na ,,,, chalne do ,,,chalne do
ReplyDeletehan,, han ,,,han ,, chalne do
ReplyDeletebhanda ki utaro aarti
ReplyDeletemain hun bharat bhaarti
je hind
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ReplyDeleteजिन बातों का ज़िक्र पोस्ट में किया गया है उन्हें बहुत से हिन्दू धर्मावलम्बी लोग कल्पित पौराणिक वर्णन से अधिक नहीं मानते और मेरे जैसे बहुत से लोग तो इन्हें सरासर खारिज कर देते हैं यद्यपि इनका सामाजिक और प्रतीकात्मक विश्लेषण किया जा सकता है. यदि ऐसी बातें ही ढूंढनी हों तो वे सभी धर्मग्रंथों में आसानी से मिल जायेंगीं. पुरानी बाइबिल में भी जिनमें यहूदी, ईसाई और मुस्लिम धर्मावलम्बियों की आस्था है.
ReplyDeleteआपको यह पोस्ट पढ़ लेनी चाहिए.
और मुझे लगता है की बेनामी कमेन्ट का ऑप्शन अब कुछ ब्लौगर जानबूझकर खुला छोड़ रहे हैं.
निशांत जी पहले अपने धर्मग्रंथो का सही प्रकार से अध्यन करिए फिर इसे कहानी या किस्सा बताइयेगा , उअर मुस्लमान का मानना है की बाइबिल और तुरा: को बदल दिया गया है उसमे अधिक बदलाव हो गए हैं ,
ReplyDeletedabirnewws.blogspot.com
ajabgazab.blogspot.com
@ Tausif Hindustani
ReplyDeleteमतलब अभी भी मेरी मुर्गी के डेढ़ टांग ही है! जो कुछ भी गलत है वह सब इतर धर्मों और मतों में ही है, यही कहना चाहते हैं न?
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteपैदा हों तो वह धर्म ....
ReplyDeleteसबसे अच्छा है
सबसे उत्तम है
अपनी पोस्ट पूरी करें या इससे आगे जो आपने माफी मांगी है वह अगली पोस्ट में देंगें?
हमारे ब्लाग पर भी आइये ।
ReplyDelete@निशांत जी
ReplyDeleteये सभी बाते आके वेद पुराण और उपनिषद से ही ली गयी है
जब ये गलत है तो उसी वेद ,उपनिषद, पुराण के बाकी बातों में क्या सच्चाई है , इसका हल आप कैसे निकालोगे की कौन सी बात सच है कौन सी गलत
है कोई पैमाना?
dabirnewws.blogspot.com
ajabgazab.blogspot.com
आपका मोहम्मद आईशा के समय क्या कर रहे थे ! वो भी मरने की आयु मे ?
ReplyDeleteसूअर के मांस खाने वालों हराम खोरों !
सोमनाथ का मतलब पता है कैसे बना
= सु-मनत, और एक बात वो मक्का मे जो काबा की दीवार है उसके अंदर क्या है वो भी देख लो क्या है फिर उसे पत्थर पीटो
हरामखोरों ! हिंदुस्तान मे ही रह कर के हिंदु-स्थान से गद्दारी ?
थू तुम कमीनों पर , सालों बच्चे पैदा करने की फेक्टरियों !
तुम्हारा अंत समय नजदीक आ रहा है बस अब तुम्हारे देश पोर्किस्तान पर बम बरसने वाला है !
जय हिन्दू जय भारत जय हिंदु-स्थान
@जी ये सलीम ख़ान, और सभी गद्दार मुल्ले हिन्दी पढ़ कर के हिंदुओं को ही बरगला रहे है अगर इनकी सिर्फ कुरान का सही रूप से अध्ययन किया जाए तो सबकी नानी याद आ जाएगी !
ReplyDeleteसब जगह औरत और सेक्स ही लिखा है काही अध्यात्मकिता का दूर दूर तक नामोनिशान तक नहीं है और कर्म के बारें मे तो ऐसा है की आप का कर्म ही सेक्स है और बच्चे पैदा करो !
ये सूअर सब ऐसी बातों की तलस मे ही धर्म शष्ट्रों मे आखे खोजे रहते है सिर्फ मकसद यह है की फटीचर इस्लामिक राज्य स्थापना, लेकिन कण मे तैल दल कर सोच लो की ये मंसूबे कभी पूरे होने वाले नहीं है ! जब से इस देश का जन्म हुआ है और अंत तक हिन्दुओ का ही देश रहेगा ! हो ना हो तुम्हारे रगों मे भी उन कायरो का खून दौड़ रहा है जो डर के मरें मुल्ले बन गए थे ! तुम्हारी भी दादियों की दादियों के साथ तुम्हारे पूर्वजो (अफगान के कुत्ते) ने बलात्कार किए और इस्लाम बनाया !
ReplyDeleteधर्म परिवर्तन ऐसे नहीं होता है बलात्कार करके या लव जिहाद से !
सूअर का मांस खाओ और अल्लाह फललाह कराते जाओ मदरचोदों
भांडा जी का भांडा फूट गया कृपया इस ब्लॉग लिंक पर जाये -
ReplyDeletehttp://keedemakode.blogspot.com/2011/09/blog-post.html
भांडा जी का भांडा फूट गया कृपया इस ब्लॉग लिंक पर जाये -
ReplyDeletehttp://keedemakode.blogspot.com/2011/09/blog-post.html
जिससे प्रीति हो उसको जलाना अच्छी बात नहीं है। गाड़ना तो ऐसा है जैसा उसको सुला देना है।
ReplyDeleteएक सामान्य व्यवहार की बात है कि अगर बस्ती के पास कोई बदबूदार गंदगी या कोई जानवर जैसे चूहा, बिल्ली, कुत्ता आदि मरा पड़ा हो तो बदबू से बचने के लिए बस्ती के लोग उसे मिट्टी में दबा देते हैं ताकि बदबू फैलकर मनुष्यों को प्रभावित न करें। मनुष्य की अंतरात्मा कभी यह गवारा न करेगी कि किसी मृत जानवर को जलाया जाए। अगर कोई व्यक्ति किसी मृत जानवर को जलाएगा तो उसे अवश्य घिन आएगी। दूसरी यह बात भी सामान्य सी है कि जब किसी वस्तु आदि को जलाया जाता है तो उससे अवश्य वायु प्रदूषित होती है। मृत मनुष्यों को जलाना तो वस्तु आदि के जलाने से कहीं अधिक हानिकारक और ख़तरनाक है क्योंकि मृत मनुष्य को जलाने से न केवल वायु प्रदूषित होती है बल्कि रोगजनित गैसे भी निकलती हैं, जिनका प्रभाव मानव जीवन पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अवश्य पड़ता है। तीसरा एक मानवीय पहलू यह भी है कि जिस व्यक्ति के साथ हमने जीवन गुजारा है, जो हमारी आदरणीय माँ, बाप, प्रिय पत्नी, पुत्र व पुत्री आदि है, मरने के बाद उसे अपनी आँखों के सामने, अपने ही हाथों से आग में रखना व उसकी हड्डियों तक को भस्मीभूत कर देना कहाँ की मानवता है ?
क्या यह क्रिया दिल दहला देने वाली नहीं है ? इस विषय से जुड़ा एक अनैतिक व अमानवीय पहलू यह भी देखने में आता है कि जब किसी लाश को जलाया जाता है तो कफ़न पहले जलता है और लाश नंगी हो जाती है। यह वाकिया मानवता को ‘शर्मसार करने वाला होता है। लाश अगर माँ अथवा औरत की हो तो इससे अधिक निर्लज्जता की बात क्या कोई और हो सकती है?
यहाँ एक बात यह भी विचारणीय है कि हिंदू समाज में बच्चों, साधु-संन्यासियों को और कुछ वर्गों में आम व्यक्तियों को दफ़न किया जाता है। जब जलाना सर्वोत्तम है तो फिर सर्वोत्तम विधि से बच्चों और साधु-संतों का अंतिम संस्कार क्यों नहीं किया जाता? एक ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि आर्य अपने मुर्दों को दफ़न करते थे, जलाते न थे। माह सितम्बर 2005 में, मेरठ के सिनौली स्थान पर 5 प्राचीनकालीन ‘शवधियाँ मिली थी, जिनमें मानव कंकाल सुरक्षित हालत में प्राप्त हुए थे। सभी ‘शवधियाँ एक विशिष्ट दिक्स्थापन (सिर उत्तर दिशा में और पैर दक्षिण दिशा में) पैर सीधे और मुंह को बांयी बगल की ओर करके लिटाई गई थी। यह एक सबूत इस बात का है कि प्राचीन लोग भारत में अपने मुर्दों को दफ़न करते थे।
अग्नि द्वारा किए जाने वाले अंतिम संस्कार में अनेक रुढ़ियाँ व अनावश्यक अनुष्ठान होने के कारण यह क्रिया अत्यंत जटिल और लम्बी है। ये अनुष्ठान भी सार्वभौमिक नहीं है। अपने-अपने क्षेत्रीय, वर्गीय और जातीय रीति-रिवाज के अनुसार लोग अपने मुर्दों का दाह संस्कार करते हैं। अब तो हिंदू समाज में दाह संस्कार की नई-नई तकनीक आ गई हैं। रुपयों-पैसों की भाग-दौड़ में रिश्ते-नातों का महत्व कम हो गया है। लगता है हमारी मानवीय संवदेना मर सी गई है। अब घी, चंदन और केसर की जगह एल.पी.जी. (घरेलू गैस) और उच्च वोल्टेज की विद्युत ‘शक्ति का प्रयोग होने लगा है। इन आधुनिक ‘शवदाह गृहों में चंद मिनटों में काम तमाम। न घी, न चंदन, न कोई झंझट। क्या आधुनिक ‘शवदाह गृह इस बात का खुला प्रमाण नहीं है कि हमने अपनी सुविधानुसार अपने संस्कारों और जीवन मूल्यों को बदला है।
ReplyDeleteमुर्दे को दफ़न करना एक सार्वभौमिक सत्य है। यह क्रिया सस्ती भी है, आसान भी है और उत्तम भी। साथ-साथ मानवीय मूल्यों के अनुकूल भी है। कब्र को मुर्दे के वहाँ पहुंचने से पहले तैयार कर लिया जाता है। मृत को कब्र में ऐसे लिटा दिया जाता है मानो सुलाकर कमरा बंद कर दिया हो। अब मृत के साथ जो हो रहा है वह कम से कम हमारी आंखों के सामने और स्वयं हमारे द्वारा तो नहीं किया जा रहा है। दफ़नाने में मानवीय मूल्यों का पूरा-पूरा लिहाज़ रखा जाता है। अब रही बात प्रदूषण की तो उचित रूप से दफ़नाए जाने पर वायु प्रदूषण ‘शून्य प्रतिशत होगा। आज विज्ञान का युग है। ‘शोध द्वारा भी हम यह जान सकते हैं कि जलाने और दफ़नाने में कौन-सी विधि प्रदूषण रहित, उत्तम, सस्ती और आसान है। विश्व में ईसाई, यहूदी, मुसलमान, कम्युनिस्ट यानी करीब 85 प्रतिशत लोग अपने मुर्दों को दफ़न करते हैं। पृथ्वी इतनी विशाल है कि मानव जाति कभी उसका पूर्ण प्रयोग न कर सकेगी। दफ़नाने की विधि आज भी ज्यों की ज्यों है जबकि जलाने की विधि बदलती जा रही है।
मृत व्यक्ति को जलाना इसलिए भी उचित नहीं है, क्योंकि अगर किसी व्यक्ति की जानबूझकर किसी “शडयंत्र के तहत हत्या की गई है तो न्यायिक प्रक्रिया में हत्या के साधनों और कारणों को जानना अति आवश्यक है। हत्या के बाद मृत को तुरन्त जलाकर हत्या संबंधी सबूत छिप जाते हैं और अपराधी पर हत्या का केस कमजोर पड़ जाता है। आए दिन सुनने और पढ़ने में आता है कि बहू अथवा किसी अन्य को जलाकर, जहर देकर अथवा गला घोंटकर मार दिया जाता है और लाश को जलाकर अतिशीघ्र ठिकाने लगा दिया जाता है ताकि हत्या के साधनों को छिपाकर कानून से बचा जा सके। इससे न्यायिक प्रक्रिया भी प्रभावित होती है और मृत के संबंधियों को न्याय मिलने की सम्भावना भी कम रह जाती है। दफ़न करने की स्थिति में हत्या संबंधी जांच कई दिन बाद तक की जा सकती है।
स्वामी दयानंद ने दाह संस्कार की जो विधि बताई है वह विधि दफ़नाने की अपेक्षा कहीं अधिक महंगी है। जैसा कि स्वामी जी ने लिखा है कि मुर्दे के दाह संस्कार में ‘शरीर के वज़न के बराबर घी, उसमें एक सेर में रत्ती भर कस्तूरी, माशा भर केसर, कम से कम आधा मन चन्दन, अगर, तगर, कपूर आदि और पलाश आदि की लकड़ी प्रयोग करनी चाहिए। मृत दरिद्र भी हो तो भी बीस सेर से कम घी चिता में न डाले। (13-40,41,42)
स्वामी दयानंद के दाह संस्कार में जो सामग्री उपयोग में लाई गई वह इस प्रकार थी - घी 4 मन यानी 149 कि.ग्रा., चंदन 2 मन यानि 75 कि.ग्रा., कपूर 5 सेर यानी 4.67 कि.ग्रा., केसर 1 सेर यानि 933 ग्राम, कस्तूरी 2 तोला यानि 23.32 ग्राम, लकड़ी 10 मन यानि 373 कि.ग्रा. आदि। (आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित पुस्तक, ‘‘ दयानंद का जीवन चरित्र’’ से) उक्त सामग्री से सिद्ध होता है कि दाह संस्कार की क्रिया कितनी महंगी है। गरीब परिवार का कोई व्यक्ति इस क्रिया को निर्धारित सामग्री के साथ नहीं कर सकता। आज के भौतिकवादी दौर में उपरोक्त किसी भी सामग्री का ‘शुद्ध और स्वच्छ मिलना भी न केवल मुश्किल बल्कि असम्भव है। अतः दाह संस्कार की विधि निर्धारित नियमों व मानकों के आधार पर करना अव्यावहारिक है। दाह संस्कार में मुर्दे के वजन के बराबर घी का सिद्धांत यानी किसी व्यक्ति के दाह संस्कार में 9-10 कनस्तर घी का इस्तेमाल क्या बेतुका-सा नहीं लगता?
मुर्दे को जलाने में जो कनस्तरों घी, केसर, कस्तूरी, चंदन आदि सामग्री के इस्तेमाल का उपदेश और आदेश दयानंद ने दिया है, क्या यह इसलिए नहीं है कि उक्त सामग्री के साथ जलने से मुर्दे की दुर्गन्ध हमें महसूस न हो? वरना इतनी कीमती सामग्री के साथ मुर्दे को जलाने का आखिर औचित्य क्या है ?
ReplyDeleteकोई बताए कि वह कौन-सा विज्ञान है जो कहता है कि जलाने से वायू प्रदूषित नहीं होती ?
ऐसा प्रतीत होता है कि किसी संदेशवाहक की पारलौकिक धारणा की जिद और विरोध में किसी समुदाय विशेष द्वारा जलाने के तरीके को अपनाया गया होगा। बाद में यह तरीका उस समुदाय की मान्यता और परंपरा बन गई होगी। दाह संस्कार धर्म विरूद्ध, विज्ञान विरूद्ध और मानवीय मूल्यों के खि़लाफ़ है। अंत में मैं एक सवाल भी वेद विद्वानों से करूंगा कि कृपया वे बताए कि ‘मनुस्मृति’ के रचयिता महर्षि मनु की लाश को उनके अनुयायियों द्वारा जलाया गया था या दफ़न किया गया था?
एक दक्षिण भारतीय अभिनेत्री रंजीता के साथ सेक्स करते कैमरे में कैद किए गए नित्यानंद के नए कारनामे सामने आ रहे हैं।
ReplyDeleteसूत्रों की मानें, तो ये तथाकथित स्वामी ‘प्राचीन तांत्रिक रहस्यों’ की शिक्षा देने और उनके प्रयोग के लिए अपने आश्रम में आने वाली महिलाओं से ‘सीक्रेट सेक्स एग्रीमेंट’ करता था। इस समझौते के अनुसार, महिलाओं को नग्नता और सेक्स के लिए सहमति जतानी होती थी। अपने अश्लील फोटो खींचने की अनुमति देनी पड़ती थी। साथ ही उन्हें इस बात की सख्त हिदायत दी जाती थी कि इस बात को वे आश्रम से बाहर ने ले जाएं।
32 साल के नित्यानंद को सोलन में चार अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था और उसे बेंगलुरू ले जाया गया था। अपराध जांच विभाग (सीआईडी) ने उससे कुछ घंटे तक पूछताछ की थी, लेकिन विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी।
सीआईडी के सूत्रों ने कहा कि कई महिला कार्यकर्ताओं ने ‘खुलासा नहीं करने वाले’ समझौते पर स्वैच्छिक तौर पर हस्ताक्षर किए थे, जो नित्यानंद के बिदादी आश्रम में अनैतिक सेक्स के कारोबार को दर्शाता है।
सूत्रों ने कहा है कि नित्यानंद को शनिवार को उसके आश्रम ले जाए जाने की संभावना है। मामले की जांच कर रही सीआईडी आश्रम के कंप्यूटर और हार्ड डिस्क जब्त कर चुकी है।
इसी साल मार्च में एक टीवी चैनल द्वारा सेक्स वीडियो दिखाए जाने के बाद विवादों में घिरे कथित धर्मगुरू स्वामी नित्यानंद के राज धीरे-धीरे खुलते जा रहे हैं। साल 2006 में स्वामी के शोषण का शिकार हुई एक युवती ने सीआईडी को दिए बयानों में स्वामी का जो चेहरा उजागर किया है।
यही नहीं अगस्त 2006 से दिसंबर 2006 तक स्वामी के साथ रही इस युवती ने स्वामी की अमेरिका के राज उजागर किए हैं। महिला के अनुसार संस्था के लॉस वेगास आश्रम में यात्रा के दौरान स्वामी जींस टी शर्ट पहनकर स्ट्रिप क्लब जाता था। वहां वो महिलाओं का नंगा नाच देखता था। श्रद्धालुओं के पूछने पर स्वामी कहता था कि उसकी लोकप्रयिता इतनी बढ़ चुकी है कि अगर वो साधु वेश में जाएगा तो पहचान लिया जाएगा।
स्ट्रिप क्लब से लौटने के बाद उसने युवती से कहा था कि वो रेड लिपिस्टिक, स्ट्रिप क्लब की लड़कियों की तरह सेक्सी कपड़े खरीद ले और उसके साथ ऐसा ही करे। स्वामी ने युवती से खास तौर पर लाल रंग की लिपस्टिक लगाने और सेक्सी कपड़े पहनने का आग्रह किया था।
यही नहीं युवती के अनुसार वो बेंगलुरु स्थित ध्यानपीठ आश्रम में उससे शराब लाने के लिए कहता था। ध्यानपीठ में बनाए गए स्वामी के नियमों के मुताबिक आश्रम में शराब लाना मना था। इसलिए उसने युवती से कहा था कि वो इस बारे में किसी को न बताए।
यह हैं इनके आदर्श :
और इसी तरह कुछ और गुरु और भगवान् इन्हें भी हिन्दू धर्म मैं उच्च स्थान प्राप्त है !
ब्रह्मा:
ब्रह्मा शिव की शादी में प्रोहित का कार्य करे तो पार्वती का पैर खुल जाए तो बरह्मा उसका सुन्दर पैर देख कर अस्खलित हो जाए तो वह भगवान् कैसे हो सकता है?
वेद व्यास:
वेद व्यास जंगल से आए ओर कोरों व् पाडुओं की माताओं को गर्भवती कर जाए तो वह धर्म गुरु कैसे हो सकता है?
पवन देवता:
पवन देवता हनुमान जी की माता के पास आएं ओर उन्हें देख कर उन पर मोहित हो जाएं व्यभिचार कर के उन्हें गर्भवती बना दें तो वह भगवान् कैसे हो सकता है?
पांच पुरुष एक पत्नी
पांच पुरुष एक पत्नी रखें, और जुआं खेलें ओर जुवे में पतनी को भी दाँव पर लगाएँ ओर मदिरा का सेवन करे तो यह धर्म कैसे हो सकता है?
पिता ओर पुत्र एक ही पत्नी से सम्भोग करे तो वह भगवान् कैसे हो सकता है?
बरह्मा जब अपनी बेटी पर ही मोहित हो जाए ओर उस के पीछे भागे ओर अस्खलित हो जाए तो वह आदर्श और भगवान् कैसे हो सकता है?
मुनि गोतम:
मुनि गोतम जानकी अप्सरा को नग्न देख कर अस्खलित हो जाएं और अपना वीर्य सरकंडों में रख दें जिस से वेद शास्त्र्रों के ज्ञाता गुरु किर्पचारी पैदा हों तो वह धर्म गुरु कैसे हो सकता है?
जब इंद्र:
जब इंद्र गोतम की पत्नी अहल्लिया से व्यभिचार करें तो वह धर्म गुरु कैसे हो सकता है?
ब्रह्म ऋषि
ब्रह्म ऋषि मेनका के साथ संपर्क करें तो वह धर्म गुरु कैसे हो सकता है?
मित्रा मुनि उर्वशी:
मित्रा मुनि उर्वशी अप्सरा को देख कर काम वासना से पीड़ित हों ओर अपना वीर्य घड़े में छोड़ दें जिस से म्र्म् गमुनिव्शिष्ट पैदा हों तो वह आदर्स या भगवान् कैसे हो सकता है?
Anonymous...allah huro k saath sex karta hain ....wo ishwar kaise hua ..wo to randi baz hua ....6 sal ki bachi k saath sex karne wala mohmmad balatkari kaise nahi hua
Deleteहिन्दुओं के धर्म सुधारक स्वामी दयानंद ऐसे कई सुधारक अब तक भारत मैं सम्मान पाए हुए है
ReplyDeleteजैसे ओशो रजनीश, स्वामी नित्यानंद, सत्य साईं इत्यादि! भारत मैं इनको सम्मान जो दिया गया है!"
इनमे से कुछ स्वामी दयानंद जी के विचार :
अगर किसी स्त्री का पति व्यापार आदि के लिए परदेश गया हो तो तीन वर्ष, विद्या के लिए गया हो तो छह वर्ष और अगर धर्म के लिए गया हो तो आठ वर्ष इंतजार कर वह स्त्री भी नियोग द्वारा संतान उत्पन्न कर सकती है। ऐसे ही कुछ नियम पुरुषों के लिए हैं कि अगर संतान न हो तो आठवें, संतान होकर मर जाए तो दसवें और कन्या ही हो तो ग्यारहवें वर्ष अन्य स्त्री से नियोग द्वारा संतान उत्पन्न कर सकता है। पुरुष अप्रिय बोलने वाली पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री से नियोग का लाभ ले सकता है। ऐसा ही नियम स्त्री के लिए है। (4-145)
प्रश्न सं0 149 में लिखा है कि अगर स्त्री गर्भवती हो और पुरुष से न रहा जाए और पुरुष दीर्घरोगी हो और स्त्री से न रहा जाए तो ऐसी स्थिति में दोनों किसी से नियोग कर पुत्रोत्पत्ति कर ले। (4-149)
लिखा है कि नियोग अपने वर्ण में अथवा उत्तम वर्ण और जाति में होना चाहिए। एक स्त्री 10 पुरुषों तक और एक पुरुष 10 स्त्रियों तक से नियोग कर सकता है। (4-142)
पुनर्विवाह और नियोग से संबंधित कुछ नियम, कानून, ‘शर्ते और सिद्धांत आपने पढ़े जिनका प्रतिपादन स्वामी दयानंद ने किया है और जिनको कथित लेखक ने वेद, मनुस्मृति आदि ग्रंथों से सत्य, प्रमाणित और न्यायोचित भी साबित किया है।
ReplyDeleteव्यावहारिक पुष्टि हेतु कुछ ऐतिहासिक प्रमाण भी कथित लेखक ने प्रस्तुत किए हैं और साथ-साथ नियोग की खूबियां भी बयान की हैं। इस कुप्रथा को धर्मानुकूल और
न्यायोचित साबित करने के लिए लेखक ने बौद्धिकता और तार्किकता का भी सहारा लिया है। कथित सुधारक ने आज के वातावरण में भी पुनर्विवाह को दोषपूर्ण और नियोग को तर्कसंगत और उचित ठहराया है। आइए उक्त धारणा का तथ्यपरक विश्लेषण करते हैं। पुनर्विवाह के जो दोष स्वामी दयानंद ने गिनवाए हैं वे सभी हास्यास्पद, बचकाने और मूर्खतापूर्ण हैं। परन्तु नियोग करने से दोनों का उक्त धर्म सुरक्षित रहता है। क्या यह तर्क मूर्खतापूर्ण नहीं है ? आख़िर वह कैसा पतिव्रत धर्म है जो पुनर्विवाह करने से तो नष्ट और भ्रष्ट हो जाएगा और 10 गैर पुरुषों से यौन संबंध बनाने से सुरक्षित और निर्दोष रहेगा ?
अगर किसी पुरुष की पत्नी जीवित है और किसी कारण पुरुष संतान उत्पन्न करने में असमर्थ है तो इसका मतलब यह तो हरगिज़ नहीं है कि उस पुरुष में काम इच्छा नहीं है। अगर पुरुष के अन्दर काम इच्छा तो है मगर संतान उत्पन्न नहीं हो रही है और उसकी पत्नी संतान के लिए किसी अन्य पुरुष से नियोग करती है तो ऐसी स्थिति में पुरुष अपनी काम तृप्ति कहाँ और कैसे करेगा ? यहाँ यह भी विचारणीय है कि नियोग प्रथा में हर जगह पुत्रोत्पत्ति की बात कही गई है, जबकि जीव विज्ञान के अनुसार 50 प्रतिशत संभावना कन्या जन्म की होती है। कन्या उत्पन्न होने की स्थिति में नियोग के क्या नियम, कानून और ‘शर्ते होंगी, यह स्पष्ट नहीं किया गया है ?
जैसा कि स्वामी जी ने कहा है कि अगर किसी स्त्री के बार-बार कन्या ही उत्पन्न हो तो भी पुरुष नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न कर सकता है। यहाँ यह तथ्य विचारणीय है कि अगर किसी स्त्री के बार-बार कन्या ही उत्पन्न हो तो इसके लिए स्त्री नहीं, पुरुष जिम्मेदार है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि मानव जाति में लिंग का निर्धारण नर द्वारा होता है न कि मादा द्वारा।
यह भी एक तथ्य है कि पुनर्विवाह के दोष और हानियाँ तथा नियोग के गुण और लाभ का उल्लेख केवल द्विज वर्णों, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के लिए किया गया है। चैथे वर्ण ‘शूद्र को छोड़ दिया गया है। क्या ‘शुद्रों के लिए नियोग की अनुमति नहीं है ? क्या ‘शूद्रों के लिए नियोग की व्यवस्था दोषपूर्ण और पाप है ?
जैसा कि लिखा है कि अगर पत्नी अथवा पति अप्रिय बोले तो भी वे नियोग कर सकते हैं। अगर किसी पुरुष की पत्नी गर्भवती हो और पुरुष से न रहा जाए अथवा पति दीर्घरोगी हो और स्त्री से न रहा जाए तो दोनों कहीं उचित साथी देखकर नियोग कर सकते हैं। क्या यहाँ सारे नियमों और नैतिक मान्यताओं को लॉकअप में बन्द नहीं कर दिया गया है ? क्या नियोग का मतलब स्वच्छंद यौन संबंधों से नहीं है ? क्या इससे निम्न और घटिया किसी समाज की कल्पना की जा सकती है?
कथित विद्वान लेखक ने नियोग प्रथा की सत्यता, प्रमाणिकता और व्यावहारिकता की पुष्टि के लिए महाभारत कालीन सभ्यता के दो उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। लिखा है कि व्यास जी ने चित्रांगद और विचित्र वीर्य के मर जाने के बाद उनकी स्त्रियों से नियोग द्वारा संतान उत्पन्न की। अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और एक दासी से विदुर की उत्पत्ति नियोग प्रक्रिया द्वारा हुई। दूसरा उदाहरण पाण्डु राजा की स्त्री कुंती और माद्री का है। पाण्डु के असमर्थ होने के कारण दोनों स्त्रियों ने नियोग विधि से संतान उत्पन्न की।
ReplyDeleteअब पहले तो उस सवाल पर ध्यान दीजिए, जिसमें स्वामी जी से पूछा गया है कि यदि किसी पुरूष की पत्नी गर्भवती हो और पुरूष की युवावस्था ल्वनदह हम हो और उससे न रहा जाए तो वह पुरूष क्या करे? स्वामी जी ने बताया कि वह किसी अन्य की पत्नी से नियोग करके पुत्रोत्पत्ति कर दे। अब यहां सभ्य और बुद्धिजीवी लोग ग़ौरे करें कि अगर किसी गाँव में 10 पुरूष ऐसे है जिनकी स्त्री गर्भवती है और स्त्री एक भी ऐसी नहीं है जिसे पुत्र की इच्छा हो, तो ऐसी स्थिति में वे 10 युवापुरूष कहां जाए? तीसरी बात यह कि युवा गर्भवती स्त्रियों का क्या होगा? क्या गर्भवती होने पर स्त्री की कामेच्छा समाप्त हो जाती हैं? अगर उनके अंदर यौन इच्छा हो, तो वे क्या करें?
महाभारत कालीन सभ्यता में नियोग की तो क्या बात कुंवारी कन्या से संतान उत्पन्न करना भी मान्य और सम्मानीय था। वेद व्यास और भीष्म पितामह दोनों विद्वान महापुरुषों की उत्पत्ति इस बात का ठोस सबूत है। दूसरी बात महाभारत कालीन समाज में एक स्त्री पांच सगे भाईयों की धर्मपत्नी हो सकती थी। पांडव पत्नी द्रौपदी इस बात का ठोस सबूत है। तीसरी बात महाभारत कालीन समाज में तो बिना स्त्री संसर्ग के केवल पुरुष ही बच्चें पैदा करने में समर्थ होता था।
महाभारत का मुख्य पात्र गुरु द्रोणाचार्य की उत्पत्ति उक्त बात का सबूत है।चोथी बात महाभारतकाल में तो चमत्कारिक तरीके से भी बच्चें पैदा होते थे। पांचाली द्रौपदी की उत्पत्ति इस बात का जीता-जागता सबूत है। अतः उक्त समाज में नियोग की क्या आवश्यकता थी? यहाँ यह भी विचारणीय है कि व्यास जी ने किस नियमों के अंतर्गत नियोग किया? दूसरी बात नियोग किया तो एक ही समय में तीन स्त्रियों से क्यों किया? तीसरी बात यह कि एक मुनि ने निम्न वर्ण की दासी के साथ क्यों समागम किया ? चैथी बात यह कि कुंती ने नियम के विपरीत नियोग विधि से चार पुत्रों को जन्म क्यों दिया ? विदित रहे कि कुंती ने कर्ण, युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन चार पुत्रों को जन्म दिया और ये सभी पाण्डु कहलाए। पांचवी बात यह कि जब उस समाज में नियोग प्रथा निर्दोष और मान्य थी तो फिर कुंती ने लोक लाज के डर से कर्ण को नदी में क्यों बहा दिया ? छठी बात यह है कि वे पुरुष कौन थे जिन्होंने कुंती से नियोग द्वारा संतान उत्पन्न की ? स्वामी जी ने बहुविवाह का निषेध किया है जबकि उक्त सभ्यता में बहुविवाह होते थे। अब क्या जिस समाज से स्वामी जी ने नियोग के प्रमाण दिए हैं, उस समाज को एक उच्च और आदर्श वैदिक समाज माना जाए ?
ReplyDelete‘सत्यार्थ प्रकाश’ के ‘शंका-समाधान परिशिष्ट में पं0 ज्वालाप्रसाद शर्मा द्वारा नियोग प्रथा के समर्थन में अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। लिखा है कि प्राचीन वैदिक काल में कुलनाश के भय से ऋषि-मुनि, विद्वान, महापुरुषों से नियोग द्वारा वीर्य ग्रहण कर उच्च कुल की स्त्रियां संतान उत्पन्न करती थी। जो प्रमाण पंडित जी ने प्रस्तुत किए हैं वे सभी महाभारत काल के हैं। क्या महाभारत काल ही प्राचीन वैदिक काल था ? क्या नियोग ही ऋषियों का एक मात्र प्रयोजन था?
यहाँ यह तथ्य भी विचारणीय है कि अगर स्वामी दयानंद सरस्वती नियोग को एक वेद प्रतिपादित और स्थापित व्यवस्था मानते थे तो उन्होंने इस परंपरा का खुद पालन करके अपने अनुयायियों के लिए आदर्श प्रस्तुत क्यों नहीं किया ? इससे स्वामी जी के चरित्र को भी बल मिलता और एक मृत प्रायः हो चुकी वैदिक परंपरा पुनः जीवित हो जाती। यह भी एक अजीब विडंबना है कि जिस वैदिक मंत्र से स्वामी जी ने नियोग परंपरा को प्रतिपादित किया है उसी मंत्र से अन्य वेद विद्वानों और भाष्यकारों ने विधवा पुनर्विवाह का प्रतिपादन किया है। निम्न मंत्र देखिए -
‘‘कुह स्विद्दोषा कुह वस्तोरश्विना कुहाभिपित्वं करतः कुहोषतुः।
को वां ‘ात्रुया विधवेव देवरं मंर्य न योषा कृणुते सधस्य आ।।
(ऋग्वेद, 10-40-2)
‘‘उदीष्र्व नार्यभिजीवलोकं गतासुमेतमुप ‘ोष एहि।
हस्तग्राभस्य दिधिशोस्तवेदं पत्युर्जनित्वमभि सं बभूथ।।’’
(ऋग्वेद, 10-18-8)
उक्त दोनों मंत्रों से जहाँ स्वामी दयानंद सरस्वती ने नियोग प्रथा का भावार्थ निकाला है वहीं ओमप्रकाश पाण्डेय ने इन्हीं मंत्रों का उल्लेख विधवा पुनर्विवाह के समर्थन में किया है। अपनी पुस्तक ‘‘वैदिक साहित्य और संस्कृति का स्वरूप’’ में उन्होंने लिखा है कि वेदकालीन समाज में विधवा स्त्रियों को पुनर्विवाह की अनुमति प्राप्त थी। उक्त मंत्र (10-18-8) का भावार्थ उन्होंने निम्न प्रकार किया है -
ReplyDelete‘‘हे नारी ! इस मृत पति को छोड़कर पुनः जीवितों के समूह में पदार्पण करो। तुमसे विवाह के लिए इच्छुक जो तुम्हारा दूसरा भावी पति है, उसे स्वीकार करो।’’
इसी मंत्र का भावार्थ वैद्यनाथ ‘शास्त्री द्वारा निम्न प्रकार किया गया है -
‘‘जब कोई स्त्री जो संतान आदि करने में समर्थ है, विधवा हो जाती है तब वह नियुक्त पति के साथ संतान उत्पत्ति के लिए नियोग कर सकती है।’’
उक्त मंत्रों में स्वामी दयानंद ने देवर ‘शब्द का अर्थ जहाँ ‘द्वितीय नियुक्त पति’ लिया है वहीं पाण्डेय जी ने देवर ‘शब्द का अर्थ ‘द्वितीय विवाहित पति’ लिया है। निरुक्त के संदर्भ में पाण्डेय जी ने लिखा है कि यास्क ने अपने निरूक्त में देवर ‘शब्द का निर्वचन ‘द्वितीय वर’ के रूप में ही किया है। उक्त मंत्रों के साथ पाण्डेय जी ने अथर्ववेद का भी एक मंत्र विधवा पुनर्विवाह के समर्थन में प्रस्तुत किया है। जो निम्न है -
‘‘या पूर्वं पतिं वित्त्वाथान्यं विन्दते परम्।
पत्र्चैदनं च तावजं ददातो न वि योषतः।।
समानलोको भवति पुनर्भुवापरः पतिः।
योऽजं पत्र्चैदनं दक्षिणाज्योतिषं ददाति।।’’
(अथर्वसंहिता 9-5-27,28)
उक्त से स्पष्ट है कि वेद भाष्यों में इतना अधिक अर्थ भेद और मतभेद पाया जाता है कि सत्य और विश्वसनीय धारणाओं का निर्णय करना अत्यंत मुश्किल काम है? यहाँ यह भी विचारणीय है कि विवाह का उद्देश्य केवल संतानोत्पत्ति करना ही नहीं होता बल्कि स्वच्छंद यौन संबंध को रोकना और भावों को संयमित करना भी है। यहाँ यह भी विचारणीय है कि जो विषय (नारी और सेक्स) एक बाल ब्रह्मचारी के लिए कतई निषिद्ध था, स्वामी जी ने उसे भी अपनी चर्चा और लेखनी का विषय बनाया है।
बेहद अफसोस और दुःख का विषय है कि जहाँ एक विद्वान और समाज सुधारक को पुनर्विवाह और विधवा विवाह का समर्थन करना चाहिए था, वहाँ कथित समाज सुधारक द्वारा नियोग प्रथा की वकालत की गई है और इसे वर्तमान काल के लिए भी उपयुक्त बताया है। क्या यह एक विद्वान की घटिया मनोवृत्ति का प्रतीक नहीं है ? आज की फिल्में जो कतई निम्न स्तर का प्रदर्शन करती हैं, उनमें भी कहीं इस प्रथा का प्रदर्शन और समर्थन देखने को नहीं मिलता। स्वामी दयानंद को छोड़कर नवजागरण के सभी विद्वानों और सुधारकों द्वारा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया गया है।
जब यही समाज के धार्मिक लोग जघन्य नैतिक बुराइयों और बिगाड़ में गर्क हो जाते हैं, तो वह कौम नैतिक पतन की पराकाष्ठा को पहुंच जाती है। नैतिक बुराइयों में निमग्न होने के बावजूद यही लोग अपने बचाव और समाज में अपना स्तर और आदर-सम्मान बनाए रखने के लिए और साथ-साथ अपने को सही और सदाचारी साबित करने के लिए उपाय तलाशते हैं। अपने बचाव के लिए कथित मक्कार लोग अपनी धार्मिक पुस्तकों से नैतिक बुराई को जो उनमें है, अपने देवताओं, अवतारों, ऋषियों, मुनियों और आदर्शों से जोड़ देते हैं और जनसाधारण को यह समझाकर अपने बचाव का रास्ता निकाल लेते हैं कि यह बुराई नहीं है बल्कि धर्मानुकूल है। ऐसा तो हमारे ऋषि-मुनियों और महापुरुषों ने भी किया है। नियोग के विषय में भी मुझे ऐसा ही प्रतीत होता है। जब कौम में स्वच्छंद यौन संबंधों की अधिकता हो गई और जो बुराई थी, वह सामाजिक रस्म और रिवाज बन गई तो मक्कार लोगों ने उस बुराई को अच्छाई बनाकर अपने धार्मिक ग्रंथों में प्रक्षेपित कर दिया। प्राचीन काल में धार्मिक ग्रंथों में परिवर्तन करना आसान था, क्योंकि धार्मिक ग्रंथों पर चन्द लोगों का अधिकार होता था।नियोग एक गर्हित और गंदी परंपरा है, इसे किसी भी काल के लिए उचित नहीं कहा जा सकता।
ReplyDeleteभारतीय चिंतन में नारी की स्थिति अत्यंत दयनीय प्रतीत होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि ऋषि, मुनियों और महापुरुषों द्वारा कुछ ऐसे नियम-कानून बनाए गए, जिन्होंने नारी को भोग की वस्तु और नाश्ते की प्लेट बना दिया। नियोग प्रथा ने विधवा स्त्री को कतई वेश्या ही बना दिया। जैसा कि आप ऊपर पढ़ चुके हैं कि एक विधवा 10 पुरुषों से नियोग कर सकती है। यहाँ विधवा और वेश्या ‘शब्दों को एक अर्थ में ले लिया जाए तो ‘शायद अनुचित न होगा। विधवाओं की दुर्दशा को चित्रित करने वाली एक फिल्म ‘वाटर’ सन् 2000 में विवादों के कारण प्रतिबंधित कर दी गई थी, जिसमें ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर विधवाओं को वेश्याओं के रूप में दिखाया गया था। प्रायः विधवा स्त्रियाँ काशी, वृन्दावन आदि तीर्थस्थानों में आकर मंदिरों में भजन-कीर्तन करके और भीख मांगकर अपनी गुजर बसर करती थी, क्योंकि समाज में उनको अशुभ और अनिष्ट सूचक समझा जाता था।
‘सत्यार्थ प्रकाश’ में स्वामी जी ने भी इस दशा का वर्णन करते हुए लिखा है- ‘‘वृंदावन जब था तब था अब तो वेश्यावनवत्, लल्ला-लल्ली और गुरु-चेली आदि की लीला फैल रही है। (11-159), आज भी काशी में लगभग 16000 विधवाएं रहती हैं।
‘मनुस्मृति’ में विवाह के आठ प्रकार बताए गए हैं। (3-21) इनमें आर्ष, आसुर और गान्धर्व विवाह को निकृष्ट बताया गया है मगर ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों और मर्मज्ञों ने इनका भरपूर फायदा उठाया। ब्रह्मर्षि विश्वामित्र, मुनि पराशर, कौरवों-पांडवों के पूर्वज पाण्डु पुत्र अर्जुन और भीम आदि ने उक्त प्रकार के विवाहों की आड़ में नारी के साथ क्या किया ? इसका वर्णन भारतीय ग्रंथों में मिलता है।
भारतीय ग्रंथों में नारी को किस रूप में दर्शाया गया है आइए अति संक्षेप में इस पर भी एक दृष्टि डाल लेते हैं।
1. ‘‘ढिठाई, अति ढिठाई और कटुवचन कहना, ये स्त्री के रूप हैं। जो जानकार हैं वह इन्हें ‘ाुद्ध करता है।’’ (ऋग्वेद, 10-85-36)
2. ‘‘सर्वगुण सम्पन्न नारी अधम पुरुष से हीन है।’’
(तैत्तिरीय संहिता, 6-5-8-2)
3. नारी जन्म से अपवित्र, पापी और मूर्ख है।’’ (रामचरितमानस)
उक्त तथ्यों के आधार पर भारतीय चिंतन में नारी की स्थिति और दशा का आकलन हम भली-भांति कर सकते हैं। भारतीय ग्रंथों में नारी की स्थिति दमन, दासता और भोग की वस्तु से अधिक दिखाई नहीं पड़ती। यहाँ यह भी विचारणीय है कि क्या आधुनिक भारतीय नारी चिंतकों की सोच अपने ग्रंथों से हटकर हो सकती है ? आइए भारतीय संस्कृति में नारी की दशा का आकलन करने के लिए छांदोग्य उपनिषद् के एक मुख्य प्रसंग पर भी दृष्टि डाल लेते हैं।
नाहमेतद्वेद तात यद्गोत्रस्त्वमसि, बह्वहं चरन्ती
परिचारिणी यौवने त्वामलमे साहमेतन्न वेद यद्
गोत्रत्वमसि, जाबाला तु नामाहमस्मि सत्यकामो नाम
त्वमसि स सत्यकाम एव जाबालो ब्रुवीथा इति।
(छांदोग्य उपनिषद् 4-4-2)
यह प्रसंग सत्यकाम का है। जिसकी माता का नाम जबाला था। सत्यकाम गौतम ऋषि के यहाँ विद्या सीखना चाहता था। जब वह घर से जाने लगा, तब उसने अपनी माँ से पूछा ‘‘माता मैं किस गोत्र का हूँ ?’’ उसकी माँ ने उससे कहा, ‘‘बेटा मैं नहीं जानती तू किस गोत्र का है। अपनी युवावस्था में, जब मैं अपने पिता के घर आए हुए बहुत से अतिथियों की सेवा में रहती थी, उस समय तू मेरे गर्भ में आया था। मैं नहीं जानती तेरा गोत्र क्या है ? मेरा नाम जबाला है, तू सत्यकाम है, अपने को सत्यकाम जबाला बताना।’’
ReplyDeleteक्या उपरोक्त उद्धरणों से तथ्यात्मक रूप से यह बात साबित नहीं होती कि भारतीय चिंतन में नारी को केवल निम्न और भोग की वस्तु समझा गया है ?
आइये मैं आप को कुछ दिखाता हूँ ,कभी उन पर भी विचार करे! यह बात है
भाविश्श्य पुराण ,पर्तिसर्ग० ख०४ अ ० १८
अनुवाद :
जो ज्ञान वाली स्त्री हो वह चाहे किसी शुभ पुरुष को वर ले! वह चाहे उसका पुत्र हो या पिता और या भाई, वही उसका पति बन जाता है ,ii२६ii
ब्रह्मा ने अपनी पुत्री को , विष्णु ने अपनी माँ को , तथा महादेव ने अपनी बहिन को पत्नी ग्रहण करके श्रेष्टता को प्राप्त कियाi i २७ i i
इस देवानुकूल वाणी को सुन कर सूर्य ने भी अपनी भतीजी से विवाह करके सरेष्ट्ता को पराप्त किया!
डॉ. अंबेडकर का चिंतन और दर्शन हिंदुत्व विरोधी रहा है। डॉ. अंबेडकर ने (1891-1956) मे कहा था, ‘‘मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ हूँ, यह मेरे अधिकार में नहीं था, मगर मैं इस धर्म में मरूंगा नहीं।’’
"और अक्सर देखा गया है की कुछ पड़े लिखे हिन्दू समाज के लोग नास्तिक हो जाते है! क्योकि वे इतना साहस नहीं कर पाते जितना की इंसान को करना चाहिये!"
जहा हिन्दू धर्म की नियोग जैसी प्रथा को इस्लाम न केवल नकारता है, बल्कि ऐसे कुकर्म को सजा-ए-मौत सुनाता है! और अक्सर देखा गया है की नकारा किस्म के मुस्लिम अभिनेता जैसे की सलमान खान शाहरुख़ खान को जान भूझकर (नियोग) जैसी घटिया प्रथा की फिल्मों में शामिल किया जाता जो इस्लाम को दूषित करने की नाकामयाब कौशिस है इसलिए इस्लामिक समाज इन अभिनेताओं को इस्लाम में कोई जगह नहीं देता है!
शिवलिंग और पार्वतीभग की पूजा की उत्पत्ति
ReplyDeleteपुराणों में इसकी उत्पत्ति की कथाएं विभिन्न स्थानों पर विभिन्न रूपों में लिखी हुई मिलती हैं , देखिये हम यहां कुछ उदाहरण उन पुराणों से पेश करते हैं , यथा
1- दारू नाम का एक वन था , वहां के निवासियों की स्त्रियां उस वन में लकड़ी लेने गईं , महादेव शंकर जी नंगे कामियों की भांति वहां उन स्त्रियों के पास पहुंच गये ।
यह देखकर कुछ स्त्रियां व्याकुल हो अपने-अपने आश्रमों में वापिस लौट आईं , परन्तु कुछ स्त्रियां उन्हें आलिंगन करने लगीं ।
उसी समय वहां ऋषि लोग आ गये , महादेव जी को नंगी स्थिति में देखकर कहने लगे कि -
‘‘हे वेद मार्ग को लुप्त करने वाले तुम इस वेद विरूद्ध काम को क्यों करते हो ?‘‘
यह सुन शिवजी ने कुछ न कहा , तब ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि - ‘‘तुम्हारा यह लिंग कटकर पृथ्वी पर गिर पड़े‘‘
उनके ऐसा कहते ही शिवजी का लिंग कट कर भूमि पर गिर पड़ा और आगे खड़ा हो अग्नि के समान जलने लगा , वह पृथ्वी पर जहां कहीं भी जाता जलता ही जाता था जिसके कारण सम्पूर्ण आकाश , पाताल और स्वर्गलोक में त्राहिमाम् मच गया , यह देख ऋषियों को बहुत दुख हुआ ।
इस स्थिति से निपटने के लिए ऋषि लोग ब्रह्मा जी के पास गये , उन्हें नमस्ते कर सब वृतान्त कहा , तब - ब्रह्मा जी ने कहा - आप लोग शिव के पास जाइये , शिवजी ने इन ऋषियों को अपनी शरण में आता हुआ देखकर बोले - हे ऋषि लोगों ! आप लोग पार्वती जी की शरण में जाइये । इस ज्योतिर्लिंग को पार्वती के सिवाय अन्य कोई धारण नहीं कर सकता ।
यह सुनकर ऋषियों ने पार्वती की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया , तब पार्वती ने उन ऋषियों की आराधना से प्रसन्न होकर उस ज्योतिर्लिंग को अपनी योनि में धारण किया । तभी से ज्योतिर्लिंग पूजा तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुई तथा उसी समय से शिवलिंग व पार्वतीभग की प्रतिमा या मूर्ति का प्रचलन इस संसार में पूजा के रूप में प्रचलित हुआ ।
- ठाकुर प्रेस शिव पुराण चतुर्थ कोटि रूद्र संहिता अध्याय 12 पृष्ठ 511 से 513
2- शिवजी दारू वन में नग्न ही घूम रहे थे , वहां के ऋषियों ने अपनी-अपनी कुटियाओं को पत्नी विहीन देखकर शिवजी से कहा - आपने इन हमारी पत्नियों का अपहरण क्यों किया ? इस पर शिवजी मौन धारण किये रहे , तब ऋषियों ने उनके लिंग को खण्डित होने का श्राप दे डाला , जिससे उनका लिंग कटकर भूमि पर आ पड़ा और अत्यन्त तेजी से सातों पाताल और अंतरिक्ष की ओर बढ़ने लगा , क्षण भर में देखते ही देखते सारा आकाश और पाताल लिंगमय हो गया । - साधना प्रेस स्कन्द पुराण पृष्ठ 15
3- शिवजी एकदम नंग धड़ंग रूप में ही भिक्षा मांगने के लिए ऋषियों के आश्रम में चले गये , वहां उनके इस देवेश्वर रूप को देखकर ऋषि पत्नियां उन पर मोहित हो गईं और उनकी जंघाओं से लिपट गईं ।
यह दृश्य देख ऋषियों ने शिवजी के लिंग पर काष्ठ और पत्थरों से प्रहार किया , लिंग के पतित हो जाने पर शिवजी कैलाश पर्वत पर चले गये ।
- वामनपुराण खण्ड 1 श्लोक 58,68,70,72,पृष्ठ 412 से 413 तक
4- सूत जी ने बताया कि दारू नाम के वन में मुनि लोग तपस्या कर रहे थे , शिवजी नग्न हो वहां पहुंच गये और कामदेव को पैदा करने वाले मुस्कान-गान कर नारियों में कामवासना वृद्धि कर दी ।
यहां तक कि वृद्ध महिलाएं भी भूविलास करने लगीं , अपनी पत्नियों को ऐसा करते देख मुनियों ने शिव को कठोर वचन कहे । - डायमंड प्रेस , लिंग पुराण पृष्ठ 43
Hindu+Dharm=gandagi sirf gandagi vakvaas
'शिवरात्री' एक ऐसे भगवान की पूजा आराधना का दिन जिसे आदि शक्ति माना जाता है, जिसकी तीन आँखें हैं और जब वह मध्य कपाल में स्थित अपनी तीसरी आँख खोलता है तो दुनिया में प्रलय आ जाता है। इस भगवान का रूप बड़ा विचित्र है। शरीर पर मसान की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटा में गंगा नदी तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को उन्होंने अपना वाहन बना रखा है।
ReplyDeleteभारत में तैतीस करोड़ देवी देवता हैं, मगर यह देव अनोखा है। सभी देवताओं का मस्तक पूजा जाता है, चरण पूजे जाते हैं, परन्तु इस देवता का 'लिंग' पूजा जाता है। बच्चे—बूढ़े—नौजवान, स्त्री—पुरुष, सभी बिना किसी शर्म लिहाज़ के , योनी एवं लिंग की एक अत्यंत गुप्त गतिविधि को याद दिलाते इस मूर्तिशिल्प को पूरी श्रद्धा से पूजते हैं और उपवास भी रखते हैं।
यह भगवान जिसकी बारात में भूत—प्रेत—पिशाचों जैसी काल्पनिक शक्तियाँ शामिल होती हैं, एक ऐसा शक्तिशाली देवता जो अपनी अर्धांगिनी के साथ एक हज़ार वर्षों तक संभोग करता है और जिसके वीर्य स्खलन से हिमालय पर्वत का निर्माण हो जाता है। एक ऐसा भगवान जो चढ़ावे में भाँग—धतूरा पसंद करता है और विष पीकर नीलकण्ठ कहलाता है। ओफ्फो— और भी न जाने क्या—क्या विचित्र बातें इस भगवान के बारे में प्रचलित हैं जिन्हें सुन—जानकर भी हमारे देश के लोग पूरी श्रद्धा से इस तथाकथित शक्ति की उपासना में लगे रहते है।
हमारी पुरा कथाओं में इस तरह के बहुत से अदृभुत चरित्र और उनसे संबधित अदृभुत कहानियाँ है जिन्हें पढ़कर हमारे पुरखों की कल्पना शक्ति पर आश्चर्य होता है। सारी दुनिया ही में एक समय विशेष में ऐसी फेंटेसियाँ लिखी गईं जिनमें वैज्ञानिक तथ्यों से परे कल्पनातीत पात्रों, घटनाओं के साथ रोचक कथाओं का तानाबाना बुना गया है। सभी देशों में लोग सामंती युग की इन कथाओं को सुन—सुनकर ही बड़े हुए हैं जो वैज्ञानिक चिंतन के अभाव में बेसिर पैर की मगर रोचक हैं। परन्तु, कथा—कहानियों के पात्रों को जिस तरह से हमारे देश में देवत्व प्रदान किया गया है, अतीत के कल्पना संसार को ईश्वर की माया के रूप में अपना अंधविश्वास बनाया गया है, वैसा दुनिया के दूसरे किसी देश में नहीं देखा जाता। अंधविश्वास किसी न किसी रूप में हर देश में मौजूद है मगर भारत में जिस तरह से विज्ञान को ताक पर रखकर अंधविश्वासों को पारायण, जप—तप, व्रत—त्योहारों के रूप में किया जाता है यह बेहद दयनीय और क्षोभनीय है।
देश की आज़ादी के समय गाँधी के तथाकथित 'सत्य' का ध्यान इस तरफ बिल्कुल नहीं गया। नेहरू से लेकर देश की प्रत्येक सरकार ने विज्ञान के प्रचार-प्रसार, शिक्षा और भारतीय जनमानस के बौद्धिक विकास में किस भयानक स्तर की लापरवाही बरती है, वह इन सब कर्मकांडों में जनमानस की, दिमाग ताक पर रखकर की जा रही गंभीरतापूर्ण भागीदारी से पता चलता है। आम जनसाधारण ही नहीं पढ़े लिखे शिक्षित दीक्षित लोग भी जिस तरह से आँख मूँदकर 'शिवलिंग' को भगवान मानकर उसकी आराधना में लीन दिखाई देते हैं, वह सब देखकर इस देश की हालत पर बहुत तरस आता है।
abe bina sir pair ki bat likhta hain kahan likha hain .....aurte tumhari kheti hain ....kheti me koi bhi hal chala leta hain quran kahti ahin to tu apni maa se sex kar sakta hain ulle quran k anusar kyo ki teri maa kheti hui
Deleteयह भारतीय संस्कृति है! अंधविश्वासों का पारायण भारतीय संस्कृति है ! वे तथाकथित शक्तियाँ, जिन्होंने तथाकथित रूप से विश्व रचा, जो वस्तुगत रूप से अस्तित्व में ही नहीं हैं, उनकी पूजा-उपासना भारतीय संस्कृति है! जो लिंग 'मूत्रोत्तसर्जन' अथवा 'कामवासना' एवं 'संतानोत्पत्ति' के अलावा किसी काम का नही, उसकी आराधना, पूजन, नमन भारतीय संस्कृति है?
ReplyDeleteचिंता का विषय है !! कब भारतीय जनमानस सही वैज्ञानिक चिंतन दृष्टि सम्पन्न होगा !! कब वह सृष्टी में अपने अस्तित्व के सही कारण जान पाएगा!! कब वह इस सृष्टि से काल्पनिक शक्तियों को पदच्यूत कर वास्तविक शक्ति से संवार पाएगा ?
गणपति बप्पा :
भारतीयों की उदारता का कोई जवाब नहीं है। वे प्रत्येक असंभव बात पर आँख बंदकर विश्वास कर लेते हैं यदि उसमें ईश्वर की महिमा मौजूद हो। पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और नहाने की क्रिया के दौरान कोई ताकाझांकी ना करे इसलिए उस पुतले में प्राण फूँक कर उसे पहरे पर बिठा दिया। ऐसा कितना मैल पार्वती जी के शरीर से निकला होगा, लेकिन चूँकि वे भगवान शिव की पत्नी थीं सो उनके लिए सब संभव था। दूसरा प्रश्न, भगवान की पत्नी को भी ताकाझांकी का डर ! बात कुछ पचती नहीं। किसकी हिम्मत थी जो इतने क्रोधी भगवान की पत्नी की ओर नहाते हुए ताकझांक करता !
खैर, ज़ाहिर है कि चूँकि पुतला तत्काल ही बनाया गया था सो वह शिवजी को कैसे पहचानता ! पिता होने का कोई भी फर्ज़ उन्होंने उस वक्त तक तो निभाया नहीं था ! माता के आज्ञाकारी पुतले ने शिवजी को घर के अन्दर घुसने नहीं दिया तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदन उड़ा दी। पार्वती जी को पता चला तो उन्होंने बड़ा हंगामा मचाया और ज़िद पकड़ ली की अभी तत्काल पुतले को ज़िदा किया जाए, वह मेरा पुत्र है। शिवजी को पार्वती जी की ज़िद के आगे झुकना पड़ा परन्तु भगवान होने के बावजूद भी वे सिर वापस जोड़ने में सक्षम नहीं थे। उन्होंने हाल ही में जनी एक हथिनी के बच्चे का सिर काटकर उस पुतले के धड़ से जोड़ दिया। ना ब्लड ग्रुप देखने की जरूरत पड़ी ना ही रक्त शिराओं, पृथ्वी पर प्रथम देवता गजानन का अविर्भाव हो गया।
प्रथम देवता की उपाधि की भी एक कहानी बुज़र्गों के मुँह से सुनी है। देवताओं में रेस हुई। जो सबसे पहले पृथ्वी के तीन चक्कर लगाकर वापस आएगा उसे प्रथम देवता का खिताब दिया जाएगा। उस वक्त पृथ्वी का आकार यदि देवताओं को पता होता तो वे ऐसी मूर्खता कभी नहीं करते। गणेशजी ने सबको बेवकूफ बनाते हुए पार्वती जी के तीन चक्कर लगा दिए और देवताओं को यह मानना पड़ा कि माँ भी पृथ्वी तुल्य होती है। गणेश जी को उस दिन से प्रथम देवता माना जाने लगा। बुद्धि का देवता भी उन्हें शायद तभी से कहा जाने जाता है, उन्होंने चतुराई से सारे देवताओं को बेवकूफ जो बनाया। आज अगर ओलम्पिक में अपनी मम्मी के तीन चक्कर काटकर कोई कहें कि हमने मेराथन जीत ली तो रेफरी उस धावक को हमेशा के लिए दौड़ने से वंचित कर देगा। आज का समय होता तो मार अदालतबाजी चलती, वकील लोग गणेश जी के जन्म की पूरी कहानी को अदालत में चेलेन्ज करके माँ-बेटे के रिश्ते को ही संदिग्ध घोषित करवा देते।
अगर कोई सचमुच सत्य को खोजना चाहता है तो इस सर्वोन्नत विज्ञान को जानना बहुत ज़रूरी है।
जो वैज्ञानिक सत्यों पर आधारित हों।
यह लेख पर किसी को भी ऐसा लगता है, लोगों की लोगों की भावनाओ को आहत किया गया है तो सूचना दे, लेख हटा दिया जाएगा !
Mohmaad shab ki kartuto ko to batao ki apne dantak putar ki biwi ke sath shadi karte sharam nahi aayi
ReplyDeleteSala logo ko lutne ka kaam kiya
tumhare baap dada bhi salo jabrdasti muslim bane the
gand fattu the isliye gand fatte ban gye agar himmat hoti to apni ma nahi chduwate