Sunday, December 6, 2015
कभी निषपक्ष होकर विचार की जिये
कभी निषपक्ष होकर ठंडे दिमाग से विचार की जिये,,,,,,
धर्म पूर्णत: देवीय होता है जिस का मूल भूत आधार मरनोपरांन्त कर्मफल भोग है,उस के नियम अटूट ईशवरीय अनादी से अनंत तक के लिये होते हैं,वह मानव द्वारा अपनी अपनी सहूलत स्वार्थ के अनुसार बदले नही जाते कि सो पचास साल पहले नियोग एक उपयोगी व्यवस्था थी परन्तु अब समाज उसे पसंद नही करता तो अब वह बुरी हो गई, कल तक वर्ण व्यवस्था से मनुवादियों का काम निकलता था तो वह बहुत उपयोगी थी परन्तु अब समय उस की अनुमती नही देता तो उसे छोडना... मजबूरी है,कल तक महिला पैर की जूती थी इस लिये वह अगर विधवा होजाये तो उस के लिये उचित विकल्प केवल पती की चीता के साथ जल कर मर जाना था परन्तु आज दुनिया भर में महिला अधिकार की संसथाएं गांड में डंडा कर देंगीं तो हम ने सती की बात छोड महिला अधिकार की बात शुरू करदी ,, आदि, आदि, ,,,,
कभी इस पर भी विचार की जियेगा कि हम जिसे धर्म समझ कर उसे दिल से चिमटाए हुए हैं कही मनुवादी धर्म माफियाऔं द्वारा जन्ता का शोशण करने का हथियार तो नही था , क्या आप को नही लगता कि, लिंग, योणी,कृष्ण की कामवासना युक्क रास लीलाएं,धर्म के बडे बडे पर्वरतकों द्वारा कुंवारियों से वयभिचार, देवताऔं का अपसराऔं को देखना और कामवासना मे उत्तेजित हो कर स्खलित होजाना ,अपना वीरय कहीं घडे मे कही सरकंडे में कहीं पानी मे छोडना,इन बातों का धर्म पुस्तकों मे होना धर्म माफियाऔं द्वारा अपनी काम त्रापती की प्राप्ती का हथियार तो नही था, और उन्हों ने ही यह डोज दे कर कि अपना गुण रहित धर्म भी उत्तम है,कही हमें बली का बकरा तो नही बनाना चाहा है
,जरा निष्पक्ष हो कर कभी सोचियेगा तो, कि, एक वयक्ति कहता है अपना गलत सी सही क्यों कि वह अपना है और दूसरे का सही भी गलत, जब कि, दूसरा व्यक्ति कहता है, अपना वही है,कि जो सही है,चाहे वह कही भी किसी के पास भी हो, ,,,,इन में से किस की बात सही है, ,,इस पर विचार कीजिये,,,,
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