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Wednesday, September 14, 2016

बकरीद,या "कुरबानी" पर एतराज क्यों? !......... एक मित्र ने सोशल मीडिया के माध्यम से कुरबानी पर एतराज करते हुए आमिर खान को संबोधित व्यंग भरा मेसेज भेजा है, वह लिखते है " डियर आमिर तुम कहां हो," पी के फिल्म में हिन्दू देवी देवताओं की मजाक उडाने वाले को कुरबानी मे जानवरों पर अत्याचार क्यों नजर नहीं आता,? बकरईद के मोके पर मीडिया के माध्यम से यह सूचना भी मिली थी कि सुप्रीम कोर्ट के सात जजों ने न्यायालय में रिट डाल कर कुरबानी पर प्रतिबंद लगाने की प्रार्थना की है,इस के अलावा भी समय समय पर देश मे बहुसंख्यकों का एक विशेष वर्ग कुरबानी को ले कर मुसलमानो को निर्दयी,अत्याचारी,और करूर साबित करता रहा है,और मुसलमानों को निशाना बनाते हुए वह कुरबानी पर पर्तिबन्ध लगाने की मांग कर ता आ रहा है,उच्चतम न्यायालय के जिन अधिवक्ताओं ने जानवरों पर अत्याचार की दुहाई देते हुए कुरबानी के दिन पशू हत्या पर रोक लगाने की मांग की है क्या वह बकताएंगे कि 365 दिन में एक विशेष दिन (बकरीद का दिन)में उन की मांग को स्वीकार करते हुए अगर पशुहत्या पर प्रतिबन्ध लगा ही दिया जाए तो क्या एक दिन के प्रतीबन्द से देश या दुनिया से पशुहत्या का खात्मा होजाएगा, भारत में एक अन्दाजे के अनुसार प्रतिदिन दो लाख से अधिक( मुर्गा और मछली को छोड कर) पशुऔं की हत्या मीट खाने के लिए की जाती है,इस में मुसलमानों का हिस्सा बीस प्रतीशत से अधिक नही है, यकीन न आए तो आप अपने शहर या क्षेत्र में मीट की दुकानों एंव नॉन वेज होटलों का जायजा लें और देखें कि इस प्रकार की दुकानें या होटल्स मुसलमानों के अधिक हैं या गैर मुस्लिमों के, यह भी खयाल रहे कि मुसलमान झटके का मीट नही खाता इस लिए वह गैर मुसलिम होटल या मीट शॉप्स पर मीट खाने या खरीदने नही जाता जब कि मुस्लिम मीट शॉप और होटलो पर गैर मुस्लिम बडी संख्या में मीट खाने और खरीदने आता है ,मुर्गा ,बकरा,और मछली की मुस्लिम दुकानों के तो सत्तर प्रतीशत ग्राहक ही गैर मुस्लिम होते हैं,प्रश्न यह है कि पशुओं पर अत्याचार को रोकने के लिए एक बकरीद के दिन पशु हत्या पर प्रतीबन्द क्या मसले का हल है, अगर बकरीद के दिन की कुरबानी ही इस की जिम्मेदार है तो क्या मुल्क भर में मोजूद गैर मुस्लिमों की मीट शापों पर बकरीद के दिन भी पशु हत्या नही होती, सुअर पालन देश मे,एक बडा उद्योग हे उस की पेैदावार ही मीट प्राप्ती के लिए की जाती है,इस के अलावा वह कोई हल में नही चलता,एक मुसलमान उस को छू भी नही सकता वह केवल गैर मुस्लिमों की ही खूराक बनता है,उस की हत्या पर प्रतिबन्ध की बात कोई क्यों नही करता? जब कि उस की तो हत्या भी बहुत ही निर्मम तोर पर की जाती है,उस की गर्दन पर छुरी काम नही करती अत:उस की गर्दन के नीचे दोनों बाजुओं के बीच से उस के ह्रदय में छुरा घोंप कर उस की हत्या की जाती है, इसी के साथ वह हिन्दु मिथ्यालोजी मे विषणु का पर्थम अवतार भी है, फिर भी उस का ख्याल न तो किसी हिन्दु संस्था को आया और न किसी उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता को,जिसका अर्थ यह है कि कुरबानी पर प्रतिबन्ध की मांग का आधार पशु प्यार नही है अपितु निशाने पर मुसलमान हैं,जिन्हें मुसलमानों से ही खुदा वासते का बैर है वह किसी न किसी बहाने से विरोध की जवाला जलाए रखना चाहते हैं, पशुप्यार में कुरबानी पर प्रतिबन्ध की मांग करने वालों को क्या यह पता नहीं है कि मानव जगत की 98% आबादी मासाहारी है,और मांस व उस के अवशेषों से जुडी वस्तुओं का कारोबार भारत का एक शीर्ष उद्योग है जो 95% हिन्दुओं के हाथ में है,भारत के 21 बडे मीट पलान्टों में से 20 हिन्दुओं के हैं इस देश की सब से बडी मीट एक्सपोर्ट कम्पनी " अलकबीर" के चार शियर होल्डरों में सब के सब हिन्दू हैं, भारत में प्रती दिन दस लाख से अधिक मुर्गे काटे जाते हैं, मुर्गा पालन एक मेजर उद्योग है,उत्तरी भारत मे पंजाब उसकी बडी मंडी है जहां से यूपी, उत्राखण्ड, हरयाणा, दिल्ली, और हिमाचल तक मुर्गा सपलाई होता है ,यहां पर यह उद्योग पूर्णत: गैर मुस्लिमों के हाथ में है,अगर पशुमित्रों की बात मानते हुए पशुहत्या पर पर्तिबनध लगा दिया जाए तो कितने लोग बेरोजगार होंगे और देश के राज कोष मे आने वाले रिवेनयु पर जो असर पडेगा पशुमित्रों को उस का अनदाजा नही है, बात दर असल यह है कि हिन्दुवादी गिरोह कुरबानी की तुलना अपने यहां की जाने वाली " बली" से करता है जिसे वह छोडता जा रहा है, जब कि कुरबानी उस से एक दम इतर है, देवी देवताओं के चरनों में किसी पशू को काट कर केवल खूं बहाने से उस का कोई संबन्ध है और न ही वह पत्थर की मूर्ती पर व्यर्थ दूध बहाने जैसा है, स्वंय कुरआन में कहा गया है कि, न तो अल्लाह को खून पहुचता और न गोश्त,हां उसे तकवा पहुचता है, (सूरह हज आयत 37) तकवा क्या है? जिसके तहत कुरबानी की जाती है जो एक अत्यन्त उपयोगी एंव लाभकारी कृत्य है,वह कैसे? इस का वर्णन हम अपने अगले लेख मे करेगें साथ ही यह भी बताएगें कि पशु हत्या एक सवभाविक क्रिया है उस मे न तो किसी जीव को पीडा दी जाती और किसी पर जुल्म किया जाता, यह सब कैसे? यह जान ने के लिए इन्तिजारकी जिए हमारी अगली पोस्ट का ..................................

 एतराज क्यों? !.........

      एक मित्र ने सोशल मीडिया के माध्यम से कुरबानी पर एतराज करते हुए आमिर खान को संबोधित व्यंग भरा मेसेज भेजा है, वह लिखते है " डियर आमिर तुम कहां हो," पी के फिल्म में हिन्दू देवी देवताओं की मजाक उडाने वाले को कुरबानी मे जानवरों पर अत्याचार क्यों नजर नहीं आता,? बकरईद के मोके पर मीडिया के माध्यम से यह सूचना भी मिली थी कि सुप्रीम कोर्ट के सात जजों ने न्यायालय में रिट डाल कर कुरबानी पर प्रतिबंद लगाने की प्रार्थना की है,इस के अलावा भी समय समय पर देश मे बहुसंख्यकों का एक विशेष वर्ग कुरबानी को ले कर मुसलमानो को निर्दयी,अत्याचारी,और करूर साबित करता रहा है,और मुसलमानों को निशाना बनाते हुए वह कुरबानी पर पर्तिबन्ध लगाने की मांग कर ता आ रहा है,उच्चतम न्यायालय के जिन अधिवक्ताओं ने जानवरों पर अत्याचार की दुहाई देते हुए कुरबानी के दिन पशू हत्या पर रोक लगाने की मांग की है क्या वह बकताएंगे कि 365 दिन में एक विशेष  दिन (बकरीद का दिन)में उन की मांग को स्वीकार करते हुए अगर पशुहत्या पर प्रतिबन्ध लगा ही दिया जाए तो क्या एक दिन के प्रतीबन्द से देश या दुनिया से पशुहत्या का खात्मा होजाएगा, भारत में एक अन्दाजे के अनुसार प्रतिदिन दो लाख से अधिक( मुर्गा और मछली को छोड कर) पशुऔं की हत्या मीट खाने के लिए की जाती है,इस में मुसलमानों का हिस्सा बीस प्रतीशत से अधिक नही है, यकीन न आए तो आप अपने शहर या क्षेत्र में मीट की दुकानों एंव नॉन वेज होटलों का जायजा लें और देखें कि इस प्रकार की दुकानें या होटल्स मुसलमानों के अधिक हैं या गैर मुस्लिमों के, यह भी खयाल रहे कि मुसलमान झटके का मीट नही खाता इस लिए वह गैर मुसलिम होटल या मीट शॉप्स पर मीट खाने या खरीदने नही जाता जब कि मुस्लिम मीट शॉप और होटलो पर गैर मुस्लिम बडी संख्या में मीट खाने और खरीदने आता है ,मुर्गा ,बकरा,और मछली की मुस्लिम दुकानों के तो सत्तर प्रतीशत ग्राहक ही गैर मुस्लिम होते हैं,प्रश्न यह है कि पशुओं पर अत्याचार को रोकने के लिए एक बकरीद के दिन पशु हत्या पर प्रतीबन्द क्या मसले का हल है,  अगर बकरीद के दिन की कुरबानी ही इस की जिम्मेदार है तो क्या मुल्क भर में मोजूद गैर मुस्लिमों की मीट शापों पर बकरीद के दिन भी पशु हत्या नही होती,         सुअर पालन देश मे,एक बडा उद्योग हे उस की पेैदावार ही मीट प्राप्ती के लिए की जाती है,इस के अलावा वह कोई हल में नही चलता,एक मुसलमान उस को छू भी नही सकता वह केवल गैर मुस्लिमों की ही खूराक बनता है,उस की हत्या पर प्रतिबन्ध की बात कोई क्यों नही करता? जब कि उस की तो हत्या भी बहुत ही निर्मम तोर पर की जाती है,उस की गर्दन पर छुरी काम नही करती अत:उस की गर्दन के नीचे दोनों बाजुओं के बीच से उस के ह्रदय में छुरा घोंप कर उस की हत्या की जाती है, इसी के साथ वह हिन्दु मिथ्यालोजी मे विषणु का पर्थम अवतार भी है, फिर भी उस का ख्याल न तो किसी हिन्दु संस्था को आया और न किसी उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता को,जिसका अर्थ यह है कि कुरबानी पर प्रतिबन्ध की मांग का आधार पशु प्यार नही है अपितु निशाने पर मुसलमान हैं,जिन्हें मुसलमानों से ही खुदा वासते का बैर है वह किसी न किसी बहाने से विरोध की जवाला जलाए रखना  चाहते हैं, पशुप्यार में कुरबानी पर प्रतिबन्ध की मांग करने वालों को क्या यह पता नहीं है कि मानव जगत की 98% आबादी मासाहारी है,और मांस व उस के अवशेषों से जुडी वस्तुओं का कारोबार भारत का एक शीर्ष उद्योग है जो 95% हिन्दुओं के हाथ में है,भारत के 21 बडे मीट पलान्टों में से 20 हिन्दुओं के हैं इस देश की सब से बडी मीट एक्सपोर्ट कम्पनी " अलकबीर" के चार शियर होल्डरों में सब के सब हिन्दू हैं,
     भारत में प्रती दिन दस लाख से अधिक मुर्गे काटे जाते हैं, मुर्गा पालन एक मेजर उद्योग है,उत्तरी भारत मे पंजाब उसकी बडी मंडी है जहां से यूपी, उत्राखण्ड, हरयाणा, दिल्ली, और हिमाचल तक मुर्गा सपलाई होता है ,यहां पर यह उद्योग पूर्णत: गैर मुस्लिमों के हाथ में है,अगर पशुमित्रों की बात मानते हुए पशुहत्या पर पर्तिबनध लगा दिया जाए तो कितने लोग बेरोजगार होंगे और देश के राज कोष मे आने वाले रिवेनयु पर जो असर पडेगा पशुमित्रों को उस का अनदाजा नही है,
       बात दर असल यह है कि हिन्दुवादी गिरोह कुरबानी की तुलना अपने यहां की जाने वाली " बली" से करता है जिसे वह छोडता जा रहा है, जब कि कुरबानी उस से एक दम इतर है, देवी देवताओं के चरनों में किसी पशू को काट कर केवल खूं बहाने से उस का कोई संबन्ध है और न ही वह पत्थर की मूर्ती पर व्यर्थ दूध बहाने जैसा है, स्वंय कुरआन में कहा गया है कि, न तो अल्लाह को खून पहुचता और न गोश्त,हां उसे तकवा पहुचता है, (सूरह हज आयत 37) तकवा क्या है? जिसके तहत कुरबानी की जाती है जो  एक अत्यन्त उपयोगी एंव लाभकारी कृत्य है,वह कैसे?  इस का वर्णन हम अपने अगले लेख मे करेगें साथ ही यह भी बताएगें कि पशु हत्या एक सवभाविक क्रिया है उस मे न तो किसी जीव को पीडा दी जाती और न किसी पर जुल्म किया जाता, यह सब कैसे?  यह जान ने के लिए इन्तिजारकी जिए हमारी अगली पोस्ट का ..................................