आप के ब्लोग पर आपका लेख अल्लामा इकबाल की नज़्म के हवाले से पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ ,ठीक हे की सर इक़बाल ने राम को इमाम ए हिंद कहा हे ,ग़ालिब अगर शराब की तारीफ करे तो शराब कोई अच्छी चीज़ नहीं बन जा एगी , इक़बाल का कलाम एक शायर की लफ्फाजी हे तो आप की बातें केवल चापलोसीऔर तुष्टिकरण के सिवा कुछ नहीं ,अल्लामा इक़बाल ने राम को इमाम ए हिंद कहा हे तो आज बहुत से तताकथित राम भक्त राम को आदर्श बतलाते हैं ,लेकिन इन में से कोई यह नहीं बतलाता की राम आदर्श केसे हें ? उनकी कोनसी बात को आज यह लोग आदर्श बना सकते हें? क्या यह लोग बता सकते हें की राम राज्य में जो वर्ण व्यवस्था थी और एक शूद्र को धर्म कार्य करने की भी अनुमति नहीं थी ,क्या यह व्यवस्था आज के समय में आदर्श हो सकती हे ? या राम ने अपनी पत्नी की अग्नि परीक्षा लेने के बाद भी उसे घर से निकाल दिया था ,यह बात आदर्श हो सकती हे ? यह वह शिकार खेलते और हर्द्याविनोद की खातिर भी हिरन आदि को मारते फिरते थे यह बात आदर्श हो सकती हे ?या जब शूर्पनखा उनके पास शादी का प्रस्ताव लेकर आई और उन्हों ने झूट बोलते हुए कहा कि मेरे छोटे भाई की शादी नहीं हुई हे तुम उन से शादी का प्रस्ताव रखो ,जब कि उनके इस छोटे भाई कि शादी भी राम के विवाह के साथ ही हो गई थी , तो क्या यह झूट आदर्श हो सकता हे ? या उस भाई को एक मामूली बात पर घर से निकाल देना आदर्श हो सकता हे जिसने जीवन भर अपना सुख त्याग कर राम की सेवा की ,,,,,,,,सोचो आखिर कब सोचोगे ,,,
Wednesday, October 20, 2010
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ज्यादा मत सोचो ब्रेन हेमरेज का खतरा बड जाता है
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ReplyDeleteइक़बाल का कलाम एक शायर की लफ्फाजी हे
ReplyDeleteडाक्टर क़ासमी साहब सलाम मसनून!
अल्लामा इकबाल ने शुरू में नाजानकारी की बिना पर कादियानियों के हक में कुछ लिखा लेकिन जब सही जानकारी होने पर उनके खिलाफ लिखा तो किसी ने उनसे पूछा कि पहले आपने जो लिखा था अब उसके खिलाफ क्यों लिखा है तो इसके जवाब में इकबाल साहब ने फ़रमाया, ''सिर्फ पत्थर ही नहीं बदलते हैं.'' यह बात कहने का मकसद था कि अज्ञान वश अगर कुछ लिख दिया गया तो सही मालूमात होने पर उस भूल को सुधारने में कोई बुराई नहीं है. राम को इमामे हिंद कहना भी अज्ञानता वश है. 1934 से १९३८ में इंतक़ाल फरमाने तक के तकरीबन ४ साल में कि गयी शायरी कुरान और हदीस के मुताबिक ही है.
गांधीजी से किसी ने कहा कि फुलां शख्स आपको गाली दे रहा था तो उसके जवाब में गांधीजी ने कहा कि जो गाली दे रहा है वो मैं नहीं लेता और उसी को लौटा रहा हूँ. यह हर आदमी का हक है कि उसको अगर कोई चीज़ दे तो वह उसको न लेकर वापस लौटा सकता है. इसलिए आपको गाली देने वाले साहब को अपनी ही गालियों के बोझ तले दबने दीजिये.
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ReplyDeleteanonimouse bhai
ReplyDeletetumhari sari gaalian tuhe hi mubarak
आप एक blog "munazara" नाम से बनाये !
ReplyDeleteham munazra nahi karte sach ko sach kahte hain aql wale maante hain aql ke andhe thukrate hain
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