न्याय का दोहरा पैमाना क्यों है?
हेदराबाद के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी को इस आरोप में गिरफ्तार किया गया है कि उन्होंने बढ़काउ भाषण दिया , उन पर सांप्रदायिक बयान देने और राज्य से युद्ध छेड़ने जैसे आरोपों के तहत मामला दर्ज किया गया, देश का कोई भी मुसलमान इस बात का समर्थन नहीं करता कि कोई भी सांप्रदायिक बयान दे या समूह की भावनाओं को उत्तेजित करने वाला भाषण करे, लेकिन क्या यह देश में पहली बार हुआ है क्या केवल अ कबरुददीन ने इस तरह का दुर्लभ बयान दिया उनसे पहले किसी ने ऐसी जुरअत नहींकी थी, अगर इस देश में पहले भी इस तरह के बयानों बल्कि इससे भी बढ़कर देश को तोड़ ने वाले या एक विशेष समुदाय को निशाना बनाकर उसके खिलाफ बहुल वर्ग को भड़काने वाले बयान दिए जा ते हैं तो क्या वजह है कि किसी पर कभी कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी और अकबरुददीन ओवैसी को चार दिन की मोहलत भी न मिली, क्या सिर्फ इसलिए कि बाकी सब बहुल समुदाय से संबंध रखते हैं और ओवैसी मुसलमान हैं और उनका संबंध देश के अल्पसंख्यक समुदाय से है जो जूदा भारत में अत्यंत पिछड़े और कमजोर है जिसे न्यायाधीश सच्चर समिति ने दलितों से भी पिछड़े बताया, ऐसे पिछड़े समाज का कोई सदस्य या कोई नेता चाहे वह एमएलए ही क्यों न हो अगर किसी तरह का भड़काउ बयान देता है तो उसके बयान से आफत खड़ी होने वाली नहीं होती क्योंकि यह समुदाय सिद्धांत है कि अल्पसंख्यक की सांप्रदायिकता की तुलना बहुल वर्ग की सांप्रदायिकता कई गुना अधिक नुकसान का कारण है, लेकिन जिस देश में बहुसंख्यक वर्ग के नेता अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर वर्षा करते फिरें और कुछ नहीं कहा जा हुए, जिसमें न केवल धार्मिक आधार पर घृणा फैलाने वाले हों बल्कि क्षेत्रीय आधार पर सांप्रदायिकता के बीज बोए जाते हों , विशेष क्षेत्र के रहने वालों के खिलाफ न केवल बयान जारी करके बल्कि स्थानीय लोगों से उन पर हमले तक करवा कर देश को बांटने की कोशिश की जाती हो लेकन फिर भी यह सब करने वाले स्वतंत्र घूमें सिर्फ इसलिए कि वे बहुसंख्यक समुदाय से है जबकि सैम मामले में दूसरे को इसलिए गिरफ्तार कर लिया जाए कि अल्पसंख्यक वर्ग से सम्बन्ध रखता है न्याय का यह दोहरा स्तर क्यों है?
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