Wednesday, November 24, 2010
इन बे शर्म और बे हया नकटों को अपनी नाक तो नज़र आती नहीं
Monday, November 22, 2010
Saturday, November 20, 2010
Friday, November 5, 2010
इस्लाम की शिक्षा के कारण कई देश बर्बाद हो गए
पवित्र कुरान २/२६ में कहा गया है कि इस कुरान के द्वारा बहुत से लोग गुमराही तलाश करते हैं और बहुत से इसी के द्वारा हिदायत पाते हैं ,भंडा जी ने पहला विकल्प चुना हे ,उन्हें कुरान में गुमराही ही गुमराही दिखाई पड़ती हे , असल बात यह हे कि आँखों पर जब हरा चश्मा लगा हो तो सब कुछ हरा ही दिखाई देता है ,वः लिखते है कि इस्लाम की शिक्षा के कारण कई देश बर्बाद हो गए और करोंड़ों लोग मारे गए ,भंडा भाई तुम जो लिखदो ,व्ही इतिहास हो ,एसा नहीं है ,आइए इस सम्बन्ध में आप को कुछ जानकारी दी जाए ,
मुहम्मद साहब के जीवन काल में उनके कुछ आप जैसे शुत्रुओं ने भारी सेना लेकर और दूर दूर से आ आ कर उन पर और उनके साथियों पर मदीने में युध्धात्मक हमले किये हें ,मुहम्मद साहब ऐसे मोकों पर ऐसी जंगी रणनीति अपनाते थे ,जिस से कम से कम इंसानी जानों का नुकसान हो ,जेसे शहर के चारों ओर खंदक खुद्वादेना जिस से शत्रु फोज अन्दर न आ सके ,आदि ,आदि , इस का परिणाम यह हुआ कि आप के पूरे जीवन काल में जितने भी युद्ध हुए ,उन सब में एक हज़ार से भी कम जाने गईं ,असल में आप का इतिहास कमज़ोर हे वर्ना आप ऐसे बातें न करते ,अगर आप इतिहास पढ़ते तो आप को पता चलता कि कई देश कहाँ बर्बाद हुए और करोड़ों लोग कहा मारे गए , परन्तु आप को नहीं पता तो चलिए मैं बताता हूँ ,
यह तो आप को पता ही होगा कि रामायण और महाभारत दोनों युद्ध इतिहास हें , क्या आप जानते हें कि इन युद्धों में कितने योद्धा शरीक थे और उनमें से कितने मारे गए ,शायद नहीं , चलिए मैं बताता हूँ ,केवल महाभारत के युद्ध में अट्ठारह (१८) अक्श्वनी शरीक थी ,ग्यारह (११) कोरों की और सात७ पांडों की,और से और एक अक्श्वनी में ३१८७० रथ सावर २१८७० हाथी सावर ६५६१० घोड़े सवार और १०९३५० पैदल सिपाही होते हें ,
जोड़ लिजीए कितने देशों को बर्बाद किया होगा इस युद्ध ने ,
और अब यह बात कि इस युद्ध में कितने लोग मारे गए .
सुनीए भंडा जी ,महाभारत के अनुसार
यह युद्ध १८ दिन चला था और एक दिन का इंसानी जानों के नुकसान का ओसत सवा नो करोड़ प्रति दिन था ,भीष्म के हाथों से रोजाना 10000आदमी मारे जाते थे ..,,
तो काहिए भंडा जी किसने करोड़ों को मरवाया? ,,हमने या आपने ,,, किसने कई देशों को बर्बाद करवाया ? हमने या आपने ,,,,
Wednesday, November 3, 2010
भंडा जी ... यह लो भांडे... और इन्हें शोक से फोड़ो
आएं ओर अपने कपडे मांगे तो वह कहे कि पहले हाथ जोड़ कर मुझे नमस्कार करो, एसा व्यक्ति धर्म गुरु केसे हो सकता हे,? ब्रह्मा शिव की शादी में प्रोहित का कार्य करे तो पार्वती का पैर खुल जाए तो बरह्मा उसका सुन्दर पैर देखकर अस्खलित होजा
Tuesday, November 2, 2010
राम आदर्श हे या रावन
"इलाह एक ऊंचे सिंहासन पर बैठता है "सूरा -अल मोमिन 40 :१५
ख्याल रहे कि यह जो कुछ इन महाशय ने अपनी और से लिख कर इस पर तुच टिपण्णी की हे यह कही भी पवित्र कुरान में नहीं हे ,और इन्हों ने जो हवाला दिया हे ,अब उसको ध्यान से देखए और भण्डा जी की घटया मानसिकता पर अपना सर धुन्ये, इन्हों ने सूरा अलमोमिनीन की ३३ ,११६ का हवाला दिया हे ,इस सूरा की ३३वी आयत क्या हे उसे देखें ,
Monday, October 25, 2010
पागलों की कमी नहीं ग़ालिब < > एक ढूँढो हज़ार मिलते हैं
Wednesday, October 20, 2010
इक़बाल का कलाम एक शायर की लफ्फाजी हे
Sunday, September 5, 2010
यह हे इन की भाषाशैली
Friday, August 6, 2010
छद्म नाम धारी सय्यद हुसैन जी
आज दो दिन बाद कम्प्युटर खोला तो आप की गाल्यों का तोहफा नज़र नवाज़ हुआ , आप गलियां दीजिये और जी भर कर दीजिये , मैं भी आप के हक मैं हिदायत की दुआ करने से थका नहीं हूँ ,
दूसरी बात जो बड़े तम तराक से आप ने कही हे , की अरविन्द मिश्रा आदि के सवाल सुन कर माँ क्यों मर गयी , तो मेरे प्यारे उस की वजह यह थी कि ,,,,,, गम और भी हें ज़माने में मुहब्बत के सिवा ,,,मैं दो दिन के लिये दिल्ली चला गया था ,,जहा ५ अगस्त को इंडिया इंटरनेश्नल कल्चरल सेंटर में होने वाली एक कांफ्रेंस में मुझे सम्मलित होना था , वापस हुआ तो आप की गलियों के पत्थर नज़र आये और साथ में उक्त चेलेंज भी,,,,,
प्यारे छद्म नाम धारी ,,,,
यह कोन बड़ी बात अरविन्द भाई ने कहदी ,,मैंने अल्लाह के अस्तित्व पर कुछ बोद्धिक तर्क दिए थे ,, जब कि उन्हों ने बिना तर्क दिए ही ,,, प्रश्न कर डाला कि ,,, अब बोलो , राम हे कि नहीं ,, उन्हों ने कहा हे कि जैसे करोंड़ों मुसलमानों के लिए अल्लाह मियां हे वैसे ही ,,,,करोंड़ों के लिए राम हे ,, यह आस्था की बात हे ,, क्या यह कोई तर्क हुआ,,, ?,,, क्या बुद्धि धारी प्राणी ,हज़रत ए इन्सान इश्वर और अपने पालनहार के सम्बन्ध में इतना गैर जिम्मे दार हे कि बिना सोचे समझे , और यह देखे बिना ही कि जिस वस्तु से मैं आस्था जोड़ रहा हूँ ,,उस का अस्तित्व भी हे कि नहीं , ? ,, ऐसे ही कहीं भी अपनी आस्था को कुर्बान कर देता हे ,,, ?,,
अरविन्द जी कहते हें कि जेसे अल्लाह हे वेसे राम हे ,, यानि,,,, चे निस्बते खाक ब आसमान ए पाक ,,,,हमने अल्लाह से आस्था सोच समझ कर जोड़ी हे ,,अल्लाह से मुराद हम इंसानों जैसा कोई वजूद नहीं ,, अपितो वः सर्व शक्तिमान अस्तित्व हे जो यूनिक हे , जो सर्वत्र , निरपेक्ष और सर्वधार हे ,जो न पैदा होता हे और न ही मरता हे ,,जो न कसी से जना जाता हे और न कसी को जनता हे ,,और सारी बातों की एक बात कि ,,,, उस के जैसा कुछ भी नहीं ,, देखें ,,, (कुरान , सूरह इखलास )
आइये अब इस का जायजा लें कि आपने बिना सोचे समझे अपनी आस्था को कहाँ जोड़ लिया ,,,
सर्व्पर्थम हम आप की बात बड़ी करते हें,, और मानते हें कि राम का अस्तित्व हे ,(यों भी हमें कोई जिद नहीं हे राम को नकारने की ,यह बिंदु आपका पर्सनल हे , हम ने जो कुछ लिखा था ,,वः हमारी नहीं कुछ हिन्दू (क्रोनानिधि आदि) विद्द्वानों का मत था) ,,,
राम थे , ५ ,६ लाख वर्ष पहले अयोद्ध्या के राजा दशरथ के घर में श्रंग्गी ऋषि द्वारा पुत्रोष्टि yag करने पर ( जब दशरथं अपनी तीनों पत्नियों को गर्भवती करने में नाकाम रहे उक्त ऋषि दुवारा गर्भ धारण करके पैदा हुए थे , अर्थात वः दशरथ की पारम्परिक संतान नहीं थे, उनको उनके पिता ने अपनी एक पत्नी के कहने पर देश नीकला दे दिया था , कहते हें की उन्हों ने अपना प्रण पूरा किया था , ( यहाँ में आप को इस्लामी सिद्धांत बताता चलूं ,,वः यह की अगर कहीं पर किसी की हक तलफी हो रही हो तो एसा प्रण पूरा नहीं किया जाएगा ,, और गलत प्रण लेने का कफ्फारा (प्रायश्चित) अदा किया जाएगा ) खैर ,, राम बाप के आदेशानुसार जंगल को चले गए , वहाँ उन पर रावण की बहिन सूर्पनखा मोहित हो गयी , और उसने राम से शादी का प्रस्ताव रख दिया ,,राम ने कहा की मैं तो शादी शुदा हूँ , तुम मेरे छोटे भाई लक्ष्मण से पूछ लो उस की शादी नहीं हुयी हे , जब की राम के साथ ही सीता की बहिन से लक्ष्मण की भी शादी हो गयी थी ,, अर्थात एक ओर तो राम ने झूट बोला , दूसरी ओर लक्ष्मण को कहला भेजा कि जब सूर्पनखा तुम्हारे पास आए तो उस के नाक कान काटले ,, यह प्यार का कैसा बदला था , ? , आप लोग कहते हें कि हर किर्या की प्रति किर्या होती हे , जैसे गोधराकांड में हुयी थी,, तो वेसे ही राम की किर्या पर भी हुयी,, और जब रावण ने अपनी बहिन का यह हल देखा तो वःभिक्षु के भेस में आकर सीता को उठा ले गया , उस समय राम शिकार पर थे , यानि एक ओर जीव हत्या की मनाही,, दूसरी ओर राम भी शिकार करते थे , केवल राम ही नहीं राम के माने हुए पिता दशरथ ने तो हिरन सकझ्कर आज्ञाकारी शरवन को ही क़त्ल कर डाला था ,,
खैर सीताजी चोरी हो गयी तो राम का परेशान होजाना स्वभाविक था बेचारे परेशान हो गये और जंगल गंगल पेड़ पोदों से , आकाश और सितारों से और जंगल की हर्नियों से सीता का पता पूछते फिरे ,, आखिर कार उन्हें पता चल ही गया कि उनकी पत्नी को रावण दुष्ट उठा ले गया हे , तो अब सीता माता को छुडाने की फ़िक्र हुयी , सब से पहले उन्हों ने सुग्रीव से दोस्ती की और उसके भाई बाली का धोके से वध करके उक का राज्य और उसकी पत्नी सुग्रीव के हवाले कर दिया , और सुग्रीव के सेना पति हनुमान को साथ लेकर ( जो असल सुग्रीव के सेना पति थे और अपने स्वामी सुग्रीव की सुरक्षा करने में असमर्थ रहे थे )लंका पर चढाई करदी , और रावण को मार कर ( वः भी उसके भाई कुम्भकरण की गद्दारी से उसे राज काज देने का लालच देकर सीता जी को छुड़ा लाए ,, और उस बेचारी की अग्नि परीक्षा ली , इस के बावजूद एक धोबी के ताना देने पर उसे घर से निकाल दिया , और उसे गर्भवती होने के बजूद जंगल में छुडवा दिया , फिर लक्ष्मण जो पग पग पर भाई के सामने हाथ जोड़े खड़ा रहा उस के साथ क्या सलूक किया ,उसे आप जानते ही होंगे ,, आखिर कार सीता बेचारी तो जमीन से निकली थी उसी में समां गयी ,, श्री राम ने भी अपने तईं सजू नदी के हवाले करके अपनी जान देदी ,,
यह थे श्री राम जिन में छद्मनाम धारी जी आप की एसी ही आस्था हे जैसे करोड़ों मुसलमानों की उस ईश्वर , सर्वशक्तिमान अल्लाह में जो यूनिक हे ,जिसे किसी ने न तो जना हे ,और न वः किसी से जना गया हे ,, और उस के जैसा कुछ भी नहीं ,,
अंत में अनवर जमाल के उस सवाल का जवाब भी ज़रूरी हे जिस में उन हों ने कहा हे कि राम , और दशरत के पुत्र राम चन्द्र को गुड मुड़ न करें , मुझे बताइए कि यह अलग से केवल राम कहाँ से आ गया , ? ,, जिस राम की राम लीला मनाई जाती हे जो बाल्मीकि के द्वारा रामायण में वर्णित हे ,, क्या उस के आलावा भी कोई राम हे ? ,,अगर हे तो वः केवल आप कि घडी मढ़ी आस्था से नहीं होगा उस का हवाला दीजिये ,,यह तो ऐसी ही बात हुयी जैसे आज कल कुछ लोग शिर्डी वाले बाबा का मंदिर बना कर उन की मूर्ती को पूज रहे हें, अब अगर उन को कोई यह कहने लगे कि भाई ,,, शिर्डी वाले की मूर्ती को मत पूजो ,इस में कुछ नहीं ,, तो वः कहे कि ,, शिर्डी वाले पीर और उन की मूर्ती को गुड मुड मत करये,, शिर्डी वाले पीर एक व्यक्ति थे और उनकी मूर्ती ईश्वर हे ,, तो छद्मनाम धारी भाई,, इस फलसफे को तो बस आप सझेंऔर या फिर अनवर जमाल समझे ,, हम तो आप के लिए अल्लाह से दुआ करते हें कि वः आप को और हम सब को सीधी और सच्ची राह दिखाए
Wednesday, August 4, 2010
मेरे प्यारे अरविन्द मिश्रा
आप नास्तिक हें तो श्री राम में आस्था क्यों ? ,, दर असल आप जैसे लोगो की कहानी शुत्रमुर्ग की सी हे जिस से कहाजाए कि तुम पक्षी हो तो उड़ते क्यों नहीं तो वः कहता हे कि मैं पक्षी नहीं ऊँट हूँ ,, और जब उस से कहा जाए की तुम ऊँट हो तो बोझ उठाओ तो वः कहता हे कि मैं तो पक्षी हूँ ..
आइये अब इस पर विचार करे कि अल्लाह को पर्योगशाला में सिद्ध किया जा सकता हे या नहीं ,
मेरे प्यारे यह सारा ब्रह्मांड इश्वर की प्रयोगशाला हे , यह धरती यह आकाश और यह चाँद सितारे चीख चीख कर कह रहे हें कि यह सब स्वयं से नहीं ,, इस बोलते मानव का अपना वजूद खामोश जुबान से गवाही दे रहा हे कि कोई हे जो इस के पैदा होने से पहले माँ कि छाती में दूध उतार देता हे ,,, हजारों महान गेलक्सीज़ और उन के अथाह राज़ मजबूर करते हें कि इन के पीछे कोई सत्ता मानी जाए जो इस बर्हमांड को भली भांति चला रही हे ,,
आज इस शक्ति का वजूद तो हर कस व् न कस स्वीकार करता हे , ख्याल रहे कि अल्लाह/गोड़ कोई मानव जेसी वास्तु नहीं ,जो इंसानी शक्ल में ही आप के सामने आए तो आप मानेंगे वर्ना नहीं ,, वेसे आप मोत को तो मानते ही होंगे ,, और जहाँ इंसान बेबस और लाचार नज़र आए , अर्थात जैसे वः मोत के सामने बेबस हो जाता हे तो फिर उसे मान लेना चाहिए कि कोई हे , जो उस के ऊपर हे ,जो उसके जीवन व् म्रत्यु को कंट्रोल कर रहा हे ,, और अगर अब आप नहीं मानते तो उस समय ,अर्थात म्रत्यु के पश्चात् देख कर मानेंगें जब मानने से कोई लाभ नहीं होगा , कुरान में हे ,,
और लोगों को उस दिन से डराइये जब अज़ाब आएगा , उस समयं ज़ालिम
लोग (इंकार करनेवाले) कहेंगे .हे ईश्वर हमें थोड़ी मोहलत देदे ,अब की बार हम
तेरे पैगाम को स्वीकार करेंगे , और संदेष्ठा के बताए मार्ग पर चलेंगे , ( १४/४४)
Tuesday, August 3, 2010
राम का अस्तित्व और राम जन्मभूमि
ऐसे मैं सवाल खड़ा होता हे कि जब राम ही नहीं हुए तो जन्म भूमि कैसी ? परन्तु कौन मानता हे और कौन सुनता हे , यहाँ तो जिसका डंडा उस की भेंस हे , लेकिन सच बहरहाल सच हे ,
खून आखिर खून हे टपकेगा तो जम जाएगा
Saturday, July 24, 2010
छुवा छूत का रोग
हालिया दिनों मैं चर्चा का विषय रहा ,यह छुवा छूत का समाचार था, खबर है कि किसी सरकारी स्कूल के बच्चों ने एक दलित महिला के हाथ का बना खाना खाने से इनकार कर दिया ,इस पर कुछ विचारकों ने अपनी अपनी टिपण्णी प्रस्तुत की , हिंदी के जाने माने लेखक डाक्टर महीप सिंह ने २२ जोलाई २०१० को ,,देनिक जागरण,, में एक गंभीर लेएतराज लेख लिखा ,उन्हों ने कई ऐसी जगहों की निशानदही की,जहाँ यह बीमारी खूब फल फूल रही हे ,और इसे रोक ने वाला कोई नहीं ,
१७ जनवरी २००९ को ,, दैनिक जागरण ,,में एक समाचार में बताया गया था कि, भूनेश्वर में परदेश की एक दलित मंत्री मंदिर से पूजा करके निकली तो ,मंदिर का शुद्धिकरण किया गया ,
इस परकार के समाचार कोई नयी बात नहीं ,यह हम आए दिन देखते और सुनते रहते हें ,और इनके विरुद्ध विद्द्वानगाणों के विचार भी पढ़ने को मिलते रहते हें ,परन्तु क्या आपने सोचा हे कि, इक्कीसवी सदी के इस आधुनिक युग में भी यह वबा हमारा पीछा क्यों नहीं छोढ़ रही हे ,तो आइये मैं आप को बताता हूँ ,,,बात असल यह हे कि यह मुद्दा उन तत्त्वों के लिए विचारणीय हे ,जो सीना तान कर कहते हें ,,, गर्व से कहो हम हिन्दू हें ,, हिन्दू होने का मतलब क्या हे , यही न कि आप उस कि विचारधारा को मानेंगे ,, और उस की विचारधारा की बुनीयाद है वर्ण व्यवस्था और यह व्यवस्था टिकी हुयी ही छुवाछूत पर हे ,,आप हिन्दू धर्म की कोई भी धर्म पुस्तक उठालें ,इतनी सफाई के साथ उस में छुवाछूत आप को मिलेगी की जिस का इंकार संभव नहीं ,मसलन ,,मनुस्मार्ती,, को लें,, उस का आरम्भ ही चार वर्णों की बात से होता हे ,फिर दूसरे अद्ध्याय के १७५ वें श्लोक में शूद्र के लिए वेद पाठ वर्जित किया गया हे ,चोथे अद्ध्याय के १८० वें श्लोक में ब्रह्मन को कहा गया हे की वः शूद्र को कोई परामर्श भी न दे ,यहाँ तक कि उसे हवन के बाद का परसाद तक देने कि मनाही हे ,पांचवे अद्ध्याय के ९५ वें श्लोक में उसकी अर्थी उस रस्ते से भी लेजाने की अनुमति नहीं हे जिस से ब्रह्मन की जाती हे ,
इस पारकर के दर्जन भर श्लोक आप को इस ,,स्मर्ति,, में मिलेंगे , जो दलित को नीच साबित कर रहे होंगे ,,
केवल म्नुस्मारती ही की बात नहीं , महाभारत, हो या ,,रामायण,,छुवाछूत और ऊँच नीच की बात सब में हे ,रामायण के नायक श्री राम ने तो शम्बूक नामी दलित का वध ही इस कारन से कर दिया था कि उस ने दलित हो कर भी जपतप करने का साहस किया था ,और राम चरित्र मानस के रचयता ने तो यहाँ तक लिख दिया कि ,,, ढोल गंवार शूद्र और नारी
यह सब हें ताडन के अधिकारी
ऐसे में प्रश्न यह हे कि आखिर छुवाछूत का यह रोग कैसे ख़त्म हो सकता हे ,,
मैं जानता हूँ कि आज कल कुछ लोग धर्म के इन आदेशों ,उपदेशों को तोड़मरोड़ कर कुछ का कुछ अर्थ बताने का पर्यास करते हें , परन्तु कोन नहीं जानता कि सच्चाई क्या हे ,,इस सच्चाई को साबित करने के लिए केवल वर्तमान की स्थिति ही पर्याप्त हे ,,,
Sunday, July 11, 2010
उजाड़ ,बंजर ,रेतीली सोच
Wednesday, June 30, 2010
,, क्या प्रथ्वी पर इस्लाम का समय अब पूरा हो चूका ,,?
इस शीर्षक का एक लेख ,,हमारी वाणी ,,और ,,चिटठा जगत,,पर घंटों स्थिर रहा, दूसरी ओर मै ने ,,महिला स्वतंत्रता का फरेब,, के नाम से एक लेख अपने ब्लोग पर पर्काशित किया ,जिस पर किसी बेनाम ने टिपण्णी करते हुए इस्लाम धर्म और उसके पर्वर्तक को गालियाँ देते हुए मुझे बाबर और औरंगजेब की औलाद की उपाधि पर्दान की ,और मुझे और इस्लाम धर्म को जी भर कर कौसा ,
इन दौनों घटनाओं पर ग़ौर करने से पता चलता हे कि इस्लाम और मुसलमानों के सम्बन्ध से ,,बिरादरान ऐ वतन,, किस पारकर की सोच रखते हैं,
जिन साहब को प्रथ्वी पर इस्लाम का समयं पूरा होता नज़र आ रहा है ,उन्हों ने अपने दावे पर कोई दलील परस्तुत न करते हुए कुछ अलग तरह कि बातें कि हैं ,मसलन वह लिखते हैं ,कि ,यह सही हे कि हर मुस्लमान आतंकवादी नहीं परन्तु यह भी सच है कि अस्सी पर्तिशत आतंकवादी मुस्लमान हैं ,मुझे यह पढ़ कर ख़ुशी हुयी ,कि कम से कम बीस पर्तिशत अपना बोझ हल्का हो गया, जो आपने अपने कन्धों पर ले लिया हे ,और बड़ी बात यह कि स्वीकार भी कर लिया,और लोगों को बता भी दिया, वर्ना हम तो भारी मन से आज तक यही सुनते आ रहे थे ,कि यह माना कि हर मुस्लमान आतंकवादी नहीं परन्तु हर आतंवादी मुस्लमान हे ,
दूसरी बात ,,,जिन साहब ने मेरे ब्लोग पर मुझ को गालीयों से नवाज़ा हे मैं उन के हक मैं हिदायत की दुआ करते हुए उन कि नज़र यह शेर करता हूँ ,,,,,,,,
कितने शीरीं हैं तेरे लब ,कि , रकीब ,
गलियां खा के भी बे मज़ा न हुआ ,
Tuesday, June 29, 2010
महिला स्वतंतरता का फरेब
श्रीमती जी, इस्लामी कानून दोनों के लिये बराबर है, जैसे बहुत सी मुस्लिम महिलाएं बुर्का पहनती हैं ऐसै ही बहुत से मुस्लिम मर्द दाढी भी रखते हैं परन्तु बहुत सी महिलाएं पर्दे के कानून का उलन्घन करती हैं ऐसे बहुत से मर्द भी दाढी के बारे में ‘
शरीआ का कानून तोडते हैं जैसे आप बुर्का नहीं पहनती और मैं दाढी नहीं रखता न आप पर किसी ने फतवा लगाया न मुझ से किसी ने स्पष्टिकरण मांगा, हाँ यह बात जरूर है कि पर्दे या बुर्के पर दुनिया भर में वाविला अधिक है। उसका कारण यह है कि मीडिया जिस पर इस्लाम मुखालिफों का कन्ट्रोल है वह इस्लाम को बदनाम करने के लिये इस्लामी पर्दे की बात को अधिक उछालता है और मर्द की दाढी के सम्बधं में वह प्रश्न ही नहीं करता, और आप जैसी महिलायें उनके "शडयन्त्र का शिकार होकर उनके सुर में सुर मिला कर कह देती है कि ‘शरीआ कानून केवल महिलाओं के लिये ही क्यों है, हासिल यह कि यह सवाल बचकाना है।फिरदौस जी ने अपने लेख में मुजफ्फरनगर की इमराना का वर्णन करते हुए पूछा है कि ‘
शरीआ कानून में बलात्कारी ससुर को सजा क्यों नहीं।यहाँ भी मुझे महोदया के ज्ञान भंडार में वृद्वि करनी होगी कृप्या नोट करें कि बलात्कारी ससुर की सजा मौत है। और जब बलात्कारी को मौत की सजा दे दी गई तो यह प्रश्न स्वतः ही समाप्त हो गया कि क्या अब पीडित महिला को बलात्कारी की पत्नी बनकर रहना होगा,असल बात यह है कि ‘
शरीअत के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति ने किसी महिला से ‘शारीरिक सम्बन्ध स्थापित कर लिये तो वह उस मर्द की औलाद पर हराम हो जायेगी, और यह मसअला रिश्तों की हुरमत के लिये है कि बाप और बेटे एक ही गंगा में न नहायें, न कि रिश्तों को तोडने के लिये, इमराना जैसे केस में जैसा कि लिखा गया है कि बलात्कारी मृत्यु दण्ड का पात्र है, परन्तु फिर वही मीडिया का रवय्या देखें ! कि उसने बलात्कारी के पुत्र पर पीडित के हराम होने का तो ‘शोर मचाया परन्तु बलात्कारी की सजा क्या है उसका जिक्र तक न कियामीडिया की नीयत को समझने के लिये यहाँ एक घटना का वर्णन उचित होगा -
तीन नवम्बर 2009 के रोजनामा राष्ट्रीय सहारा के अनुसार राजकोट में इमराना जैसी एक घटना हिन्दू परिवार में घटी, पुलिस रिपोर्ट के अनुसार राजकोट के धर्मेश की पत्नी ने अपने ससुर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करायी कि उसके ससुर ने उसका जबरदस्ती बलात्कार किया जिसमें उसका पति धर्मेश भी ‘
शामिल था कारण यह था कि धर्मेश अपनी पत्नी से सन्तान उत्पन्न करने में नाकाम रहा, अतः वह भी इस अपराध में ‘शामिल हो गया ताकि सन्तान प्राप्त कर सके, और विरोध करने पर उन दोनों ने उसे जान से मारने की धमकी दी ।खास बात यह रही कि इतनी बडी घटना मीडिया वालों में कोई हलचल पैदा न कर सकी, जबकि ऐसी ही घटना जब मुस्लिम परिवार में घट जाये तो तथाकथित महिलाधिकार के हजारों संरक्षक इस्लाम में महिलाधिकार हनन की दुहाई देते नहीं थकते ।
फिरदौस ने एक प्रश्न यह किया है कि क्या ‘
शरीआ का कानून ‘शाह बानों को न्याय दिला सका है ?महोदया ! जब कोई पीला चश्मा आँखों पर चढाये तो उसे हर वस्तु पीली ही नज़र आती है । ‘
शाहबानों जैसे मामलों में अगर पत्नी को तलाक हो जाय (इसको तो जाने दीजिए कि तलाक किन परिस्थतियों में होती है ‘शायद आपको इस पर भी एतराज हो, इसके लिये आप सूरह निसा और सुरह बकर की तलाक सम्बन्धि आयते देखें कि कुरआन से बडा मुफ्ती कोई नही होता वहाँ आपको लिखा हुआ मिलेगा कि तलाक ऐसी स्थिति में होगी जब दोनों के दरमियान ये डर पैदा हो जाए कि अब वे अल्लाह की हदूद को कायम नहीं रख पायेंगे )बहरहाल तलाक के बाद अलहैदगी हो जाने के बाद ‘
शरीआ चाहती है कि वह दोनों जो उपरोक्त परिस्थति उत्पन्न होने पर अलग हुए है जहाँ यह डर पैदा हो गया था कि ये अल्लाह की हदों को कायम नहीं रख पायेंगे, अतः इनमें अलहैदगी ही उचित है, ऐसे में अगर अदालत उस महिला का खर्च पहले पति पर डालती है तो यह आपने कैसे मान लिया कि जो आप से इस हद तक नफरत करता है कि अल्लाह की हदे ही टूटने का डर हो गया था, वह दायें हाथ से हर महीने खर्च की रकम को अमानत मानकर विधवा महोदया की सेवा में प्रस्तुत कर दिया करेगा, फिर रोज रोज उसे उदालतों के चक्कर लगाने होंगे, और अदालत केवल फैसला करेगी कोई पुलिस कपतान को आपकी सेवा में नौकर बना कर नहीं छोडेगी जो प्रतिमाह पूर्व पति से खर्च की रकम लेकर विधवा जी की सेवा में प्रस्तुत कर दिया करेगा ।दूसरी बात यह है कि आप विधवा पत्नी को इतना अप
मानित क्यों देखना चाहते हैं कि जो पती आपको साथ रखने पर तैयार नहीं आप उसकी खैरात पर क्यों जिन्दा रहना चाहती हैं, अब प्रश्न यह आता है कि विधवा की गुजर अवकात कैसे होगी तो मैं आपकी जानकारी के लिये बता दूं कि ‘शरीआ ने बाप की जायदाद में महिला को पुरूष की भांति ही हिस्सेदार बनाया है। बाप की विरासत में मिला हुआ धन उस के लिये खैरात नहीं उसका मूल अधिकार है ।अफसोस है कि जो शरीआ आप को मान सम्मान की धन दौलत का मालिक बनाना चाहती है । आप के नज़दीक उसकी अपेक्षा खैरात के टुकडे वह भी उस व्यक्ति के जो आप के साथ नहीं रहना चाहता अधिक पसन्द है। दूसरी मिलकियत जिसका ‘
शरीआ ने महिला को मालिक बनाया है वह उसका महर है। किसने कहा कि आप दो सौ चार सौ रूपये की रकम के मेहर बांधे ? सऊदिया अरेबिया में एक लाख रियाल अर्थात 14 लाख हिन्दुस्तानी रूपये से कम के मेहर बांधने का रिवाज़ नहीं, यह रकम पूर्णतः महिला की होती है जिसकी व जब चाहे पति से प्राप्त कर सकती है ।असल यह है कि हम जीवन भर हिन्दुवानी रस्म व रिवाज को फॉलो करते हैं और जब कोई पेरशानी खडी होती है तो ‘
शरीआ को दोष देते हैं ।लेख का आरम्भ हमने पर्दे से किया था आइये इस पर भी थोडी चर्चा करें । आज कल दुनिया भर में बुर्के का बडा ‘
शोर है अतः हमें यह समझना चाहिए कि वर्तमान का परम्परागत बुर्का ‘शरीआ का हिस्सा नही हैं (हाँ इसे आप मुस्लिम कलचर का हिस्सा जरूर कह सकते हैं ) आप बुर्का पहने या कोई चादर या कुछ और, मकसद पर्दा है, पर्दा उन अंगों का जो आकर्षण का केन्द्र हैं । पर्दे का मतलब यह नहीं कि आप स्वयं को किसी डब्बे या सन्दूक में बन्द करलें या घर को अपने लिये कैदखाना बनाकर उसमें कैद हो कर रह जाए, पुरूष हो या महिला दोनों को इस सम्बन्ध में ‘शरीआ कुछ न कुछ करने को कहती है ताकि समाज मे गंदगी न फैले, उसकी हद क्या है? उसे कुरआन की इन आयतों में देखें -ईमान वाले पुरूषों से कह दो कि अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों को रक्षा करें । यही उनके लिए अधिक अच्छी बात है अल्लाह को उसकी पूरी खबर रहती है, जो कुछ वे किया करते हैं।
और इमानवाली स्त्रियों से कह दो वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें । और अपने श्रृंगार प्रकट न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है। और अपने सीनों (वक्षस्थल) पर अपने दुपट्टे डाले रहें और अपना श्रृंगार किसी पर जाहिर न करें सिवाय अपने पतियों के या अपने बापों के या अपने पतियों के बापों के या अपने बेटों के या अपने पतियों के बेटों के या अपने भाईयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के या अपने मेल-जोल की स्त्रियों के या जो उनकी अपनी मिल्कियत में हों उनके या उन अधीनस्थ पुरूषों के जो उस अवस्था को पार कर चुके हैं जिससे स्त्री की जरूरत होती है या उन बच्चों के जो स्त्रियों के परदे की बातों से परिचित न हों । और स्त्रियां अपने पाँव धरती पर मारकर न चलें कि अपना जो श्रृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए । ऐ इमानवालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो । (कुरआन 24
: 30-31)महोदया ! बुर्का इन आयतों के अन्दर की ही चीज है इनके अलावा कुछ नहीं ।
‘
शायद आपको लगा हो कि महिला पर कुछ ज्यादती कर दी गई। परन्तु थोडा गहरायी में जाकर सोचें ।वास्तव में बात यह है कि कुदरत ने एक विशेष उद्देश्य से महिला के भीतर यह जज़्बा वदीयत किया है कि वह इन्तहाई हसीन दिखना चाहती है स्वयं ईश्वर ने उसके ‘
शरीर में मर्द के लिये ग़ज़ब का आकर्षण रखा है। जैसा कि लिखा गया है कि इसका एक ज्ञात उद्देश्य है अतः पत्नी को अनुमति दी गई है कि वह पति के सामने बन संवर कर रह सकती है वे अपने महरम रिश्तेदारों, बाप, भाई, आदि के सामने भी जीनत अख्तियार कर सकती है कि कुदरत ने उनके बीच पाक़िजा़ प्यार रखा है परन्तु अजनबी मर्दों के लिए एैसा नहीं है अतः उनके अजनबी लोगों के हक़ में कहा गया है कि वे अपने आकर्षण वाले अंगो को छुपा लें, ताकि अजनबी मर्दों के जज़्बात न भडकें और कोई अनहोनी न हो जाए, क्योंकि ‘शरीआ में हर बहिन व बेटी की इज्जत बहुमूल्य है वह नहीं चाहती कि किसी बहिन या बेटी पर कोई बुरी नज़र डाले, या किसी बहिन, बेटी की इज्ज़त लूटे ।आईये अब हम यह देखें कि जहाँ कुरआन के उक्त फरमान को तोडा जाता है वहाँ क्या स्थिति है जैसा कि लिखा गया है कि हर लडकी स्वयं को हसीन और दिल नवाज़ बनाकर पेश करना चाहती है यही कारण है कि हम अधिकतर ‘ाहरों में देखते हैं कि आज की नौजवान युवतियां कम से कम कपडा ‘
शरीर पर रखना चाहती हैं, वह भी इतना चुस्त कि ‘शरीर का एक एक अंग यहां तक कि गुप्तांग भी अलग-अलग दिखाई दें, किसी भी दोशीजा़ की लहलहाती जुल्फें और चुस्त वस्त्रों में सीने का सुडौल उभार और उस पर निसवानी अदायें क्या क्यामत ढाती हैं यह किसी नवयुवक के दिल से पूछिये फिर क्या होता है? वह यह कि आवारा नौजवान मौके की ताक में रहते हैं, और मौका मिलते ही कांड कर देते हैं। याद रहे कि सख्त से सख्त कानून भी इन घटनाओं को नहीं रोक सकता, क्योंकि कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनका अपने जज़बात पर पूर्ण कन्ट्रोल नहीं होता नतीजा यह कि आये दिन अखबारों में हम नव युवतियों के साथ बलात्कार की घटनाएं पढते ही रहते हैं ।इस्लाम महिला को सम्मान देता है इसी कारण वह चाहता है कि किसी की इज्ज़त न लूटे अतः वह महिला को अपनी सुरक्षा के उपाय के तौर उसे वह आदेश देता है जो कुरआन में है।
कुछ मुस्लिम मुखालिफ ताकते मुस्लिम लडकियों को यह कह कर वर्गलाने का प्रयास करती हैं कि इस्लाम महिला को पुरूष के बराबर का दर्जा नहीं देता है। मेरा मानना है कि जो समाज यह दावा करता है कि उन के यहाँ पुरूष महिला समान हैं वे जमीनी सच्चाई के खिलाफ दावा पेश करते हैं क्योंकि जिस अर्थ में यह लोग महिला पुरूष की समानता की बात कर रहे हैं उस अर्थ
में समानता सम्भव नहीं।क्योंकि स्वयं प्रकृति ने दोनों को विभिन्न उद्देश्य से भिन्न भिन्न पैदा किया, और जिसे कुदरत ने ही समान उत्पन्न न किया हो मनुष्य की क्या मजाल जो उसे समान कर दे । ‘
शरीर की बनावट दिल, दिमाग यहॉं तक की खून और हेमोग्लोबिन की स्थिति दोनों में अलग-अलग होती है, ऐसे में ‘शरीआ कानून पर चढ दौड़ने वाले क्या कुदरत को डंडा लेकर मारना चाहेंगे कि उसने पुरूष के मुकाबले महिला के ‘शरीर को फूल सा कोमल क्यों बनाया या उस के सीने पर दिलकश उभार देकर उनमें दूध क्यों पैदा कर दिया, या उसे ही बच्चा जन्ने की जिम्मेदारी क्यों दी या उसे हर माह मंथली कोर्स का अतिरिक्त बोझ क्यों दिया। वास्तव में हमें यह भी जानना और समझना चाहिए कि इस सृष्टी को बनाने और चलाने वाली कोई प्रभू सत्ता है और मानव उस की सृष्टी का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसके दोनों पार्ट (पुरूष :महिला) को सृष्टी रचियता ने एक विशेष उद्देश्य से भिन्न-भिन्न पैदा किया है और इस जो राज़ को न समझे वह स्वयं का ही नुकसान करेगा । ऐसे ही जैसे पहाड़ से सर को टकराने वाला पहाड़ का तो कुछ नहीं बिगाड पाता । परन्तु अपना सर अवश्य फोड लेता है । ऐसे ही प्रकृति से टकराने वाला उस का तो कुछ नहीं बिगाड पाता, ठीक इसी प्रकार पुरूष की बराबरी के धोके में आज की महिला स्वयं का ‘'शोषन करा रही है।यहां यह पुष्टि भी ज़रूरी मालूम होती है कि वर्तमान के तथाकथित आधुनिक मानव समाज ने जिन बिन्दुओं पर इस्लाम से अलग लीक बनाने की कोशिश की है वह कभी उस लीक को पटरी पर लाने में कामयाब नहीं रहा, अपितु ऐसे मामलों में उसे मुँह की खानी पड़ी है। उदाहरण के तौर पर स्त्री पुरूष की समानता की बात को लें, यूं तो इस्लाम ने भी एक दूसरे की तुलना में दोनों को समान अधिकार देते हुए कहा है कि-
महिलाओं के भी पुरूषों पर ऐसे ही अधिकार है जैसे पुरूषों के हैं
(कुरआन सूरह बकर आयत 228)
परन्तु यह वज़ाहत भी की है कि उत्प
त्ति के उद्देश्य एवं शरीर की बनावट के अलग-अलग होने के कारण पुरूष स्त्री से ताकत में एक दर्जा ऊपर है, अतः कुछ विशेष मामलों में दोनों की जिम्मेदारियां अलग-अलग हैं मसलन काम, कारोबार, पढ़ाई-लिखाई, व्यापार, खेल, और उचित मनोंरंजन आदि अर्थात जिन्दगी के हर क्षेत्र में तो दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं परन्तु स्त्री के शरीर को कुदरत ने एक विशेष उद्देश्य के कारण पुरूष के लिए आकर्षणीय बनाया है, अतः उसे इस बात का पाबन्द भी किया है कि वह घर से निकले तो अपने आकर्षण वाले अंगों को छुपा ले।बस यही बात वर्तमान के तथाकथित आधुनिक समाज को पसन्द नहीं आई और उस ने इस्लाम के द्वारा निर्धारित सीमा को लांग कर एक कदम आगे बढ़ाना चाहा। अतः उसने दावा किया कि हम स्त्री और पुरूष दोनों को एक पायदान पर खड़ा करेंगे। स्त्री को भी समाज का यह नारा बहुत लुभावना मालूम हुआ और उसे भी इस में अपनी स्वतन्त्रता नजर आयी। अतः वह भी आँखे बन्द करके इस नारे के पीछे दौड़ने लगी। वह गरीब यह न समझ सकी कि जिसे प्रकृति ने समान नहीं बनाया है, उसे समान पायदान पर लाना इंसान के बस की बात नहीं। यही कारण है कि समानता के नाम पर पुरूष महिला को बाजारों व कार्यालय में तो खींच लाया और अपने हिस्से का काम उसने महिला के कन्धों पर डालकर उसके कन्धों को बोझल तो कर डाला, लेकिन पुरूष ने उसके काम में हाथ नहीं बटाया। नतीजा यह हुआ कि जो महिला आफिसों में काम कर के रोजी कमाती है, घर में खाना भी उसे ही बनाना और परोसना होता है।
इस्लाम ने न तो महिलाओं को काम, कारोबार से रोका है और न नौकरी और व्यापार से, लेकिन आवश्यकता के अनुसार, क्योंकि इस्लाम माँ और बेटियों को इज्जत देता है, वह उन्हें बाजार की जीनत बनने से रोकता है।
आज के समाज ने महिला की जीनत को बाजार में रखकर बेच दिया है। समानता के नाम पर उसके शरीर को नंगा करके उसकी असमत को तार-तार कर दिया है। यह कैसी समानता है? कि टी0वी0 स्क्रीन पर अख्बारात में, फिल्मों के पर्दे पर, पुरूष का पूरा शरीर वस्त्रों में ढ़का नजर आता है, और स्त्री अर्धनग्न देखी जा सकती है। आखिर हसीन दोशीजा़एं अपनी लहलहाती जुल्फों को सीने के दिलकश उभार पर सजा कर शरीर के नाजुक अंगो की नुमाइश करने वाले चुस्त और अल्प वस्त्र धारण करके महिला स्वतंत्रता के नाम पर किसे अपना योबन दिखाने बाजारों में बेजरूरत घूमने निकलती है? फिर जब नौजवान लड़के अपने जज्बात पर काबू न पाकर किसी अनहोनी को अन्जाम देते हैं तो वही कसूरवार ठहरते हैं उन्हें जेल जाना पड़ता है, और सजाएं भुगतनी होती हैं। इस्लाम केवल यह चाहता है कि किसी बहन की असमत न लुटे, किसी बेटी पर किसी की बुरी नज़र न पड़े, उसी के उपाय के तौर पर वह महिलाओं को पाबन्द करते हुए ताकीद करता है कि-
मुसलमान महिलाओं से कह दीजिए कि अपनी निगाहें
नीची रखें और अपनी असमत में फर्क न आने दें,
और अपनी श्रृंगार को ज़ाहिर न करें
(कु़रआन सूरह नूर आयत नः 30)
कु़रआन का यह हुक्म माँ और बेटियों की इज्जत व आबरू की सुरक्षा और उन्हें बुरी निगाहों से बचाए रखने के लिए है। यही वजह है की जब स्त्रि ऐसी आयुवस्था को पहुँच जाए की उस पर आवाराग
र्दों की निगाहें उठने का भय न रहे तो उन्हें छूट देते हुए कु़रआन कहता है-जो स्त्रियां युवावस्था गुजर चुकी हों उन पर कोई
दोष नहीं की वे अपने (पर्दे) के कपड़े उता दें
बशर्ते की वे श्रृंगार का प्रदर्शन करने
वाली न हों। (सूरह नूर 60)
कु़रआन के यह उपदेश बता रहे हैं कि इस्लाम का मकसद माँ और बेटी की सुरक्षा है, उन पर पर्दे का बोझ डालना नहीं।
गृहमंत्री के पद पर रहते हुए श्री एल
. के. आडवाणी ने बलात्कार के मुजरिम को मौत की सजा देने की वकालत की थी (ख्याल रहे कि इस्लाम धर्म में बलात्कारी की यही सजा है) परन्तु इस्लाम वह तदबीर भी बताता है, जिससे ऐसी घटनाएं न हों और वह है महिला का अपने शरीर के नाजुक अंगों को छुपाना, इसके बिना अपराध पर काबू पाने का प्रयास ऐसा ही है जैसे किसी व्यक्ति का पैर गंदी नाली में गिर जाय और वह पैर को नाली में डाले डाले ही धोनां चाहे और वहीं उस पर पानी डालता रहे, जाहिर है जब तक वह पांव को बाहर निकाल कर नहीं धोएगा तब तक उसके पैर की गन्दगी दूर नहीं होगी।यही हाल आज के समाज का है, लड़कियों को तो छूट है वे अपने शरीर को नंगा करके हुस्न-ए-बेपर्दा को हथेली पर रखकर घूमें और लड़को की निगाहों पर पहरे हैं। आखिर यह कैसे संभव है, अतः नतीजा जाहिर है कि स्त्री की असमत तार-तार है वह महज बाजार की जीनत बन कर रह गई है, समानता के नाम पर महज उसके शरीर की नुमाईश हुई है।
पुरूष स्वतन्त्रता के बहाने उसे कार्यालय में खींच लाया, और यहां उसे अपने पहलू में बिठाकर उसने महज अपने जज्बात को शान्त और उसकी असमत का शोषण किया है। इसका ज्यादा भयानक चेहरा पश्चिमी देशों में दिखाई पड़ता है, जहां पचास प्रतिशत आबादी को यह गिनती याद नहीं कि उन्होने कितनी स्त्री व पुरूषों के साथ जिन्सी ताअल्लुक कायम किया है। जहां पर हर तीसरी औलाद नाजायज पैदा होती है। जिनके मजहब में तलाक का तसव्वुर नहीं, फिर भी हर तीसरे जोडे़ में तलाक हो जाती है।
इस लम्बी तफसील का निष्कर्ष यह है कि ये सारी खराबियां इसलिए पैदा हुई कि समाज ने इस्लाम से एक कदम आगे रखना चाहा लिहाजा मुँह की खाई। कहावत है कि आसमान का थूका मुँह पर आता है।
आज भारतीय पार्लियामैन्ट में समानता की बुनियाद पर महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण देने की बात हो रही है, क्या इस से समानता लाई जा सकती है? नहीं बिल्कुल नहीं, स्त्री और पुरूष उस समय तक समान नहीं होंगे जब तक पुरूष स्त्री की तरह बच्चा न जन्ने लगें उसके जुल्फों की स्याही और गालों की सुर्खी आकर्षण का केन्द्र न बन जाय, उसकी आँखों की तिरछी निगाहें दिलों को जख्मीं न करने लगे। उसके अल्लढ़ होंट गुलाब की प
त्तियों में परिवर्तित न हो जायं, उसकी चाल में नजाकत, अन्दाज में शराफत और आवाज में हलावत पैदा न हो जाय, उसकी अंगड़ाई दिल पर बिजली बन कर न गिरने लगे और उसकी छातियों में उभार पैदा होकर उनमें दूध न उतर आए।तात्पर्य यह है कि जिसे प्रकृति ने समान नहीं किया उसे यह इन्सान कैसे समान कर सकता है?
तथाकथित महिला स्वतन्त्रता की यह आवाज सब से पहले पश्चिमी देशों में उठी थी, परन्तु पश्चिमी देशों का अगुआ अमेरिका अपने देश को आज तक(2010)कोई महिला राष्ट्रपति न दे सका, एक विदेश मंत्रालय को छोड़कर जिस पर किसी खास उद्देश्य से वे अपने यहां की किसी महिला को बिठाते हैं, बाकी तमाम महत्वपूर्ण पद पर आज भी वहां पुरूष ही नजर आता है। आप अपने ही देश में देखें कितने ही विभागों में पचास प्रतिशत तक महिलाएं हैं परन्तु रोड वेज बसों में आज तक एक महिला भी बस
ड्राईवर के पद पर नहीं देखी गई, आटो रक्शा और टेम्पो टेक्सी चलाते हमने किसी महिला को नहीं देखा।Monday, June 28, 2010
,मोमिन ,इस्लाम की दुनिया ,उम्मी का कलाम, हर्फ़ ए ग़लत , वगैरा , ज़ाहिर हे कि नाम से स्वयं को मुस्लमान ज़ाहिर करना ओर इस्लाम से शत्रुता की बात करना ,जो उधा
में कहना चाहता हूँ कि गलियां देलेना ,तरह तरह से बद ज़ुबानी कर लेना ,कोई कमाल नहीं होता , यह कोई बड़ी बात नहीं कि आप कोई विषय या तर्कों के न होते हुए भी भरपूर लफ्फाजी कर लेते हें ,ओर बिना विषय भी कई कई लाइने लिख लेते हें ,ओर आप एक जुबान में भांति भांति की गलियां दे लेते हें ,या कई कई परकार से किसी का मजाक उड़ा लेते हें ,बल्कि कमाल इस में होता कि आप कुरान ए करीम के उस चेलेंज को कबूल करते हुए उस जेसा कुछ पेश करते ओर फिर कहते कि देखो कुरान मजीद जिस चीज़ का इंकार करता हें मैंने वह कर दिखाया हें ,
प्रश्न यह हें कि यह लोग कोन हें ओर यह इस परकार का तूफ़ान ए बद तमीजी क्यों खड़ा करते हें ,जवाबन कहा जा सकता हें कि यह लोग इस्लाम विरोधी हें ,ख्याल रहे कि यह धर्म विरोधी कतई नहीं हें ,क्यों कि अगर यह धर्म विरोधी होते तो कभी कभार ही सही इनको एक आध कमी, खामी, किसी अन्य धर्म में भी नज़र आती,परन्तु एसा इन्हों ने कभी नहीं किया ,इस लिए यह तो तय हें कि यह लोग नास्तिक नहीं आस्तिक हें अब इन कि मानसिकता का अंदाज़ा कीजिये कि यह लोग अल्लाह का नाम ले ले कर उसे गालिया देते हें कपटी ,जंगली ,जाहिल ओर न जाने क्या क्या कहते हें ,इन बेचारों को इतना भी सलीका नहीं कि अल्लाह उसी एक सर्व शक्तिमान ईश्वरीय सत्ता का नाम हें जिस ने इस विशाल बर्हामांड की रचना कि हें ,ओर उसे गाली देना या बुरा कहना आसमान पर थूकने जेसा हें जो स्वयं के ही मुंह पर आता हें ,
अक्सर इस्लाम धर्म पर कीचड उछलने वाले अपने धर्म को छुपाकर चलते हें ,ओर स्वयं को नास्तिक ज़ाहिर करते हें ,परन्तु नास्तिक होना कोई अक़ल्मंदी की बात नहीं ,क्यों की इन्सान कितना भी महान होजाए, कम से कम एक समयं इन्सान पर एसा आता ही हें , जब वह स्वयं को कमज़ोर ओर असहाय महसूस करता हें ,ओर वह समयं हें ,उसकी मोंत का समयं ,अगर इन्सान कहीं जाकर छोटा पड्जता हे तो उसे मान लेना चाहिए कि कोई हे जो उस के ऊपर हे ,ओर वही अल्लाह हे ,,,
Saturday, June 19, 2010
फिरदोस का इस्लाम सम्बन्धी ज्ञान सुना सुनाया है
कुछ लोगों के सर पर सस्ती शोहरत का भूत सवार होता है , आज कल शोहरत हासिल करने का आसन नुस्खा हे इस्लाम में फी निकालने का ,कम से कम इस्लाम मुखालिफ तो एसे इन्सान को हाथोंहाथ लेते हैं ,यहाँ हम बात कर रहे हें ,एक महिला की,, जिसे ब्लागर फिरदोस नाम से जानते हें ,इन्हें कभी पर्दा बुरालागता हे ,कभी कुरआन की आयतों में कमी नज़र आती हे ,कभी कहती हें कि इस्लाम में भी सुधार की गुंजाईश होती ती तो अच्छा होता,,वगेरा ,,वगेरा ,,,इस्लाम दुनिया के बड़े मज़ाहिब में से एक हे ,,जिस के पास अपनी पूर्ण जीवन व्यवस्था हे ,,,,,जिस पर आधारित बहुत से देशों में हुकूमत भी चलाई जाती हे ,,,एसे धर्म के बारे में उस व्यक्ति की टिपण्णी जिस ने उसे शोध कि हद तक न पढ़ा हो क्या उचित हे ? जब कि फिरदोस का ज्ञान तो इस्लाम के सम्बन्ध में केवल सुना सुनाया हे , यव हम इस लिए कह रहे हें कि फिरदोस ने अपने एक लेख में लिखा था कि उसने दर्जा दो तक मदरसे में धार्मिक शिक्षा वह भी एक मुल्लानी से प्राप्त कि थी ,अब ज़रा सोचें कि अगर कौई व्यक्ति साइंस पर टिपण्णी करे ,उस के नियमों में सुधार का मशविरा दे ,ओर कहे कि मेने भी दर्जा दो तक साइंस पढ़ी हे तो उसके बारे में आप क्या कहेंगें ? ,,,अभी हाल ही में फिरदोस का एक लेख उर्दू में पढ़ा ,लिखती हें कि हम ने बजुर्गों से सुना हे कि ,शायरों की बख्शिश नहीं होगी ,, आगे लिखती हें कि अगर एसा हे की सारे शायर दोज़ख में जायेगें तो हमें दोज़ख भी कबूल हे , क्यों की वह भी (दोज़ख भी ) अल्लाह की ही बनायीं हुयी तो हे ,,? ,,क्या खूब तर्क हे ,,इस पर हम थोडा बाद को बात करेंगे ,पहले इस पर चर्चा करलें ,,जो उन्हों नें बजुर्गों से सुना हे ,वह जिस जानिब इशारा कर रही हें जिस की वजह से उन्हें दोज़ख भी कबूल हे ,,वह कुरान की सूरः २६ की आयत २२४ हे जिस में कहा गया हे की शायर लोग भटके हुए लोगों की पेरवी करते हें ,, ,इस आयत का शान ,ए,नुजूल यह हे कि मुमम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम जब लोगों को कुरआन पढ़ कर सुनाते तो मुखालिफ लोग उन्हें कहते कि यह तो शायर हें ,चुनाचे कुरआन में इस का इंकार किया गया ओर कहा गया कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम शायर नहीं ,ओर शायरों की पैरवी वह करे जो भटक गया हो .परन्तु यह फिरदोस के बजुर्ग हें जिन्हों ने इस बात का बतंग्गढ़ बनादिया ,उधर फिरदोस हें कि सुनी सुनाई बातों की बुनियाद पर दोज़ख में जाने को तैयार हें ,,, अब बात दोज़ख में जानें की करते हें ,,ऐसी बातें वह करे ,,,जिसे अल्लाह की पकड़ का भय न हो ,ओर यह तर्क भी खूब रहा की धोज़ख भी तो अल्लाह की ही बनायीं हुयी हे ,,एरे भाई क्या आप अपनी एक ही अंगुली आग के हवाले कर सकते हें यह कहते हुए की आग भी अल्लाह की बनायीं हुयी हे ,खेर हम तो फिरदोस के लिए दुआ ही कर सकते हें,,साथ ही उन्हें यह मशविरा भी हें कि जिस चीज़ का इन्सान को ज्ञान न हो उस पर ख़ामोशी बेहतर होती हें ,,परन्तु जब बुद्धिजीवी बन ने का सर पर खब्त सवार हो ,खामोश रहना मुश्किल होता हें ,फिरदोस एक जर्नलिस्ट हें ,हो सकता हें वह पत्रकारिता बहुत अच्छी कर लेती हों ,परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि वह ला कालिज वालों को या पुरातत्व विभाग को भी मशविरा दें कि उन्हें अपने यहाँ क्या रखना चाहिए ओर क्या निकाल देना चाहिए , एक बात ओर ,,, इस्लाम धर्म का सारा ज्ञान या तो अरबी भाषा में हें ओर या उर्दू में ,भारत में बिना उर्दू की मदद के अरबी भाषा का ज्ञान प्राप्त करना आसान नहीं ,अब ज़रा उन के उर्दू ज्ञान के बारे में देखें कि उनका नाम फिरदोस हें अर्थात उनके नाम के आखिर में छोटा सीन आएगा ,न कि बड़ा ,जब कि वह अपने नाम में हमेशा बड़े शीन का पर्योग करती हें ,ओर हमें फ़ौरन अपने एक अफसर याद आजाते हें ,जो बात बात में बड़े शीन का पर्योग करते थे ,,,,,,बेतर हो कि कुछ बात फिरदोस कि शायरी पर भी कर ली जाए ,,शायरी के नाम पर यह जो कुछ लिखती हें उसे हो सकता हें हिंदी में शायरी माना जाता हो ,उर्दू में तो उन के कलाम को नसरी नज़्म कहा जा सकता हें ,ओर उर्दू के नाकिदों ने नसरी नज़्म लिखने वालों को लताड़ पिलाते हुए मशविरा दिया हें, कि वह नसर व् नज़्म को खल्त मल्त न करें ,देखें उन्वान चिश्ती कि तनक़ीद
नज्म में नस्र जो लिखते हें वह कुछ भी लिखते ,,,,,
नज्म में पर नस्र यूँ न मिलायी जाती ,,,,,
फिरदोस की नज्म पर यह कहना हें मुझे ,,,,
हम से नम्कीम मिठाई नहीं खायी जाती ,,,,
फिरदोस की कुछ नज्में ऐसी भी होती हें जिन पर उर्दू का रंग चढ़ा होता हें परन्तु वह भी आउट आफ काफिया ,होती हें , उनमे ,फीलपा ,,श्तुर्गुरबा ,,,शकिस्त ना रवा,, जेसी तो आम खराबियां होती हें ,,इस लिए बेहतर यह हें की जो जिसका मैदान हें वह उसी में रहे ,,,
Friday, June 11, 2010
तलाक लेना होगा आसान
Sunday, June 6, 2010
बेरागी जी ,,,आदाब अर्ज़ हे ,,
हज़रत आयशा की बड़ी बहिन( हज़रत अस्मां बिन्त अबुबकर ) जो उन से दस साल बड़ी थीं ,उन्हों ने सो साल की आयु पाई ओर उनका सवरगवास सन बहत्तर हिजरी में हुआ ,इस पर तमाम इतिहासकार सहमत हें ,इस हिसाब से ज़ाहिर हे कि हिजरत के समय हज़रत अस्मां की आयु २८ साल बनती हे ,अर्थात इस समय उन की छोटी बहिन आयशा(जो अस्मां से दस साल छोटी हें ) की उम्र १८ साल हुयी ,ओर यह बात भी तारिख के दामन में महफूज़ हे कि हज़रत मुहम्मद साहब (सल्लाल्लाहुअलेहीवसल्लम) का निकाह हज़रत आयशा के साथ सन एक हिजरी में ओर रुखसती उसके दो साल बाद तीन हिजरी में हुयी , इस का मतलब यह निकलता हे कि निकाह के समय हज़रत आयशा की उम्र १९ साल ओर रुखसती के समय २१ साल थी ,,,,,ओर यह ऐसा गणितीय तर्क हे जिसे झुटलाया नहीं जा सकता ,क्यों कि जो कुछ ऊपर लिखा गया वह तारीखी हकीक़त हे ,जिस से साफ ज़ाहिर होता हे ,कि सात साल कि बच्ची से शादी रसूलुल्लाह (सल्लाल्लाहुअलेहीवसल्लम) पर महज़ मुखालिफीन का इलज़ाम हे , ,,जिस का यकीन नहीं किया जासकता ,,,,
Saturday, May 29, 2010
आपने इस्लाम और मुसलमानों की बात की तो यह समझने में देर नहीं लगी होगी कि जिन को इस्लाम ओर मुसलमानों से खुदा वास्ते का बेर हे वह तिलमिला उठे ,बिंदास को बुरा लगा ,शिवम् परेशान होगए
ComposeEdit Html
फिरदोस जी
आपने इस्लाम और मुसलमानों की बात की तो यह समझने में देर नहीं लगी होगी कि जिन को इस्लाम ओर मुसलमानों से खुदा वास्ते का बेर हे वह तिलमिला उठे ,बिंदास को बुरा लगा ,शिवम् परेशान होगए ,बेरागी को पसीने छूट गए ,ओर उन्हों ने आप को आइना दिखाना शुरू कर दिया ,वह कहते हें कि उन्हें मुसलमानों से इतनी परेशानी नहीं जितनी इस्लाम से हे ,उन्हों ने पुछा हे कि साठ साल का व्यक्ति अगर सात साल की बच्ची से शादी करे तो वह धर्मगुरु केसे हो सकता हे , में उनकी इस बात का जवाब दूंगा ,लेकिन पहले एक बात आप से कह्दुं, आप समझ गयी न उन लोगों की मानसिकता ,जिन के वास्ते आप दिल निकल कर रखती रही हें ,आप ज़िन्दगी भर इमान बेचते रहिये ,मगर बे ईमानों कि तसल्ली नहीं होती,, ओर आप का इमान तो आप के ही बकोल
खतरे में हे, ,,,,,,,,,,,खेर ,,,,बात करते हें ,,,बेरागी की ,,,,उन्होंने जिस जानिब
इशारा किया हे वह यह हे कि हजरत मुहम्मद साहब ने सात साल की आयशा से शादी की थी ,,, ,,,इस सम्बन्ध में आप पहले तो यह बात ध्यान में रखें कि इस्लाम में ना बालिग बच्ची
से शादी जायज़ नहीं , ,,ओर यह मसला इस बात को साबित करने के लिए काफी हे कि यह केवल
बेरागी जेसे लोगों की जानिब से लगाया जाने वाला इल्जाम हे ,,,दूसरी बात यह हे कि इस्लाम की सब से महत्त्वपूर्ण पुस्तक कुरान हे उसमे एसा कही भी नहीं लिखा हे कि मुहम्मद साहब ने सात साल की आयशा से शादी कि थी , ओर जो बात कुरान में न हो ओर वह कुरान के हुक्म से टकराती हो तो हम उसको नहीं मानते ,स्वय मुहम्मद साहब कहते हें की अगर मेरी बात तुम्हे कुरान से टकराती मिले तो उसे दीवार से दे मारो ,इस लिए आप का यह सवाल फिजूल हे ,तीसरी बात रामपुर के तारिक अब्दुल्लाह सहित कई लोगों ने इस मसले पर शोध कर गनितिग्य आधार पर वैज्ञानिक तोर पर यह साबित किया हे कि यह महज इस्राईली (यहूदियों की शाज़िशी) रिवायत अर्थात झूठा ओर मन घडत इलज़ाम हे ,,, आप कहेंगे तो उस शोध का पूरा लेख में आप के सामने परस्तुत कर दूंगा ,,,,मगर फिर कभी ,,,क्यों कि अभी आप से कुछ ओर बातें करनी हें ,,,, आपने कहा हे ,कि जो सात साल की बच्ची से शादी करे वह धर्म गुरु केसे होसकता हे ,? ,,,आप के इस सवाल के हवाले से में पूछना चाहता हूँ कि जो घर से मक्खन चुराए ,नदी में नहाती हुयी महिलाओं के कपडे उठा कर पेड़ पर चढ़ जाए ,वे कपडे मांगें तो कहे पहले बाहर निकलो ,वे हाथों से अपने अशलील अंगों को छुपा कर बाहर
आएं ओर अपने कपडे मांगे तो वह कहे कि पहले हाथ जोड़ कर मुझे नमस्कार करो, एसा व्यक्ति धर्म गुरु केसे हो सकता हे,? ब्रह्मा शिव कि शादी में प्रोहित का कार्य करे तो पार्वती का पैर खुल जाए तो बरह्मा उसका सुन्दर पैर देखकर अस्खलित होजाए ,तो वह धर्म गुरु केसे हो सकता हे, वेद व्यास जंगल से आए ओर कोरों व् पाडुओं की माताओं को गर्भवती कर जाए तो वह धर्म गुरु केसे हो सकता हे ? पवन देवता हनुमान जी , की माता के पास आएं ओर उन्हें देख कर उन पर मोहित होजाएं ,ओर ज़बर दस्ती व्यभिचार कर के उन्हें गर्भवती बनादें तो वह धर्म गुरु केसे हो सकता हे पांच पुरुष एक पत्नी रखें ,ओर जुआं खेलें ओर जुवे में पत्नी को भी दाँव पर लगाएँ ओर मदिरा का सेवन करे तो वह धर्म गुरु केसे होसकता हे ,? ,,, पिता ओर पुत्र एक ही पत्नी से सम्भोग करे तो धर्म गुरु केसे होसकता हे ? बरह्मा जब अपनी बेटी पर ही मोहित होजाए ओर उस के पीछे भागे ओर अस्खलित होजाए तो धर्मगुरु केसे हो सकता हे ,? मुनि गोतम जानकी अप्सरा को नग्न देख कर अस्खलित होजाएं ओर अपना वीर्य सरकंडों में रख दें जिस से वेद शास्त्र्रों के ज्ञाता गुरु किर्पचारी पैदा हों तो वह धर्मगुरु केसे हो सकता हे ?,,, जब इंद्र गोतम की पत्नी अहल्लिया से व्यभिचार करें तो धर्म गुरु केसे होसकता हे ,,?बरहम ऋषि शिवामित्र मेनका के साथ,,,,,,,? संपर्क ,,,,,,,,,,,करें तो धर्म गुरु केसे हो सकता हे ,?,,,, मित्रा मुनि उर्वशी अप्सरा को देख कर काम वासना से पीड़ित हों ओर अपना वीर्य घड़े में छोड़ दें जिस से म्र्म्गमुनिव्शिष्ट पैदा हों तो वह धर्म
Tuesday, May 25, 2010
मज़हब ही सिखाता हे आपस में बेर रखना
यह कहना हे एक मज़हब बेजार नारी का , असल में यह बेचारी चाप्लोस स्वभाव की शिकार हे ,कहती हे हिन्दू धर्म की यह खूबी हे की उसमे नारी को सम्मान दिया गया हे ,वहां नारी की पूजा होती हे , पता नहीं इस मत मरी नारी ने कोनसे हिन्दू धर्म का अध्यन किया हे ,हमने तो , हिन्दू धर्म की एक पुस्कक में पढ़ा था ,कि ,,,, ढोल, गावर शूद्र ओर नारी ,,यह सब हें ताडन के अधिकारी ,,,, एक ओर धर्म पुस्तक जो उक्त महोदया की पसंदीदा पुस्तक भी हे,, उसके नोवें अध्याय में श्री कृष्ण कहते हें ,,, कि मेरा आश्रय पाकर नीच कुल में जन्मी स्त्रयां ,वेश ओर शूद्र भी उत्तम गति को प्राप्त होते हें ,,जहा स्त्रयां ओर शूद्र नीच कुल में उत्पन्न कहे गये हों उसकी झूटी तारीफ ही चप्लोसी हे ,हिन्दू धर्म में महिला की क्या दुर दशा हुई हे उस का अंदाज़ा करने के लिए द्रोपदी ,की कहानी पढना काफी हे , बाली ओर सुग्रीव की एक मात्र पत्नी का भी यही हाल श्री राम ने करवाया कि जिस के हाथ में सत्ता आती वह गरीब उसी की पत्नी बन कर रह जाती ,नारी कि इज्ज़त यहाँ यह हे कि ,देवताओं के देवता बरह्मा अपनी बेटी पर मोहित होकर उसके पीछे भाग पड़े थे ,उधर सीता की कहानी को लीजिये ,बेचारी को भगवन कहलाने वाले परम पूज्य श्री राम ने अग्नि परीक्षा लेने के बाद भी गर्भवती होने के बावजूद घर से निकाल दिया था ,इस्लाम धर्म जिस में फिरदोस को बुराई ही बुरिय नज़र आती हे वहां शोहर के सिवा किसी ओरत को कोई छु भी नहीं सकता ,ओर जिस धर्म की वह झूटी तारीफ कर रही हें ,उसका हाल सुनये कोरव ओर पांडव की मां अपने पति से बच्चा उत्पन्न करने में असमर्थ रही तो सास ने जंगल से वेद व्यास को बुलाकर उस के द्वारा दोनों की माताओं को गर्भवती करा दिया ,हनुमान की माता पर पवन देवता मोहित हो गये थे ,ओर उन्हों ने उसे गर्भवती कर डाला जिस से हनुमान पैदा हुए ,राजा दशरथ जब अपनी तीनों पत्नियों से बच्चा उत्पन्न करने में असमर्थ रहे तो श्रंगी ऋषि को बुलाकर पुत्रोत्पत्ति यग किया, ,,
फिरदोस जी इस्लाम पर नाजायज़ टिपण्णी करके गूलर का पेट फाड़ने पर मजबूर न करें ,,,,,,
Sunday, May 23, 2010
श्री बलबीर पुंज जी,
आपके लेख दैनिक जागरण के माध्यम से नज़र नवाज़ होते रहते हैं। मैंने अपनी एक पुस्तक में
ऐसे ही कुछ लेखों पर विस्तार से चर्चा की है। ऐसा ही आपका एक लेख ‘‘आतंक के प्रेरणा श्रोत’’ 11 मई 2010 को दैनिक जागरण में पढ़ा । आपके ज्ञान स्तर को जानकर अफसोस के साथ हंसी भी आई । चौथे कॉलम की इस पंक्ति का अवलोकन करें ..
‘‘किस मुस्लिम देश में एक गैर मुस्लिम को ‘
शासनाध्यक्ष बनाया गया?’’
आपके ज्ञान भण्डार में वृद्धि के लिए बता दूं कि
1. लम्बे समय तक इराक के प्रधानमंत्री रहने वाले तारिक़ अजी़ज गैर मुसलमान थे ।
2. कम से कम दो अवधियों के लिए तुर्की के राष्ट्रपति रहने वाले सुलेमान
ऐलदर भी गैर मुसलमान थे ।
3. अरब देश लेबनान में अगर प्रधानमंत्री मुसलमान हो तो राष्ट्रपति गैर मुसलमान होता है और राष्ट्रपति मुसलमान हो तो प्रधानमंत्री गैर मुसलमान होता है ।
4. इथोपिया में मुसलमान बहुसंख्यक हैं परन्तु वहॉं पर सरकार पूरे तौर पर गैर मुसलमानों होती है ।
आपका प्रश्न है -
अवलाकी ने किस कुरआन की विवेचना कर फैसल को बड़े पैमाने पर तबाही बचाने के लिए प्रेरित किया ?
मेरा प्रश्न है कि - ‘
शंकराचार्य, दयानन्द पाण्डे, साधवी प्रज्ञा, लेफ्टी नेन्ट कर्नल पुरोहित, और देवेन्द्र गुप्ता को मालीगांव के कब्रिस्तान, अजमेर की दरगाह और हैदराबाद की मक्का मस्जिद में बडे पैमाने पर तबाही मचाने के लिए किस धर्म पुस्तक ने प्रेरित किया ?
और ज़रा रूक कर ये भी सुने कि अभी तक जो जो मुसलमान आंतकी पकडे गये हैं वह सामान्य लोग थे । जबकि हिन्दु आंतकियों में बडे-बडे धर्म गुरू, साध्वी, ‘
शंकराचार्य, लैफ्टीनैन्ट कर्नल आदि ‘शामिल हैं । (ख्याल रहे कि दुनिया में दो ही किंगडम होते हैं एक धार्मिक किंगडम और दुसरा फौजी किंगडम) आपके तो दोनों की किंगडम आंतक में लिप्त हैं ।
एक दुसरा अंतर भी देखें, मुसलमानों ने आंतकियों पर कभी फूल नहीं बरसाये और न ही उनकी हिमायत की जबकि लैफ्टिनैन्ट कर्नल पुरोहित जब न्यायालय में पेश हुए तो कईं हिन्दू संगठनों ने उनका फूलों से स्वागत किया और ये नारे लगाये - आया आया भारत का ‘
शेर आया।
आपका प्रश्न है महमूद गजनबी, मौ
. गौरी, इब्राहिम लोदी ...... गाज़ी बनने के लिए किसने प्रेरित किया ?
मेरा प्रश्न है कि अशोक महान को रक्तपात करने, पृथ्वीराज को जयचन्द पर हमला करने और उसकी बेटी को भरे दरबार से उठा ले जाने के लिए किसने प्रेरित किया ?
आपने पूछा है, न्याय का घंटा बांधने वाले जहाँगीर ने अर्जूनदेव का वध क्यों किया ?
मैं पूछना चाहता हूं कि मराठा सरदार शिवाजी ने धोके से अपने घर बुलाकर अफज़ल खान का वध क्यों किया ? इसी में महात्मा गांधी का आर.एस.एस. के गौडसे ने वध क्यों किया ?
आपका प्रश्न हैः खिलजी ने ................ हिन्दू शिक्षण संस्थानों को ध्वस्त क्यों किया?
मेरा प्रश्न है आपकी सरकार के रहते, हिन्दू वादी ताक़तों ने मुसलमानों के धर्म स्थल बाबरी मस्जिद को ध्वस्त क्यों किया ?
यह भी नोट करें कि खिलजी अपने गुनाह की जवाबदेही के लिए मौजूद नहीं है जबकि बाबरी मस्जिद के मुलजिम स्वतन्त्र घूम रहे हैं।
आपका प्रश्न है - दो अलग-अलग जगहों में आतंकी तावड मचाने का प्रेरणा स्रोत आखिर
कौन है?
मेरा प्रश्न है कि जुआ खेलकर राजकाज के साथ पांच पांडवो की एक मात्र पत्नी द्रोपदी को भी जिता देना और जुवें में जिताए हुये को महाभारत अर्थात महायुद्ध बरपा करके दो करोड़ से अधिक इनसानों को मार देनें का प्रेरणा स्रोत आखिर कौन हैं ?
अगर आप कोई जवाब न दे सकें तो मैं बताता हूं इसका प्रेरणा स्रोत वह धर्म पुस्तक है जिस पर हिन्दूओं को इतना गर्व है कि हाईकोर्ट के एक माननीय न्यायधीश ने यह मशवरा तक दे दिया था के इसे राष्ट्रीय पुस्तक बनाया जाए । मेरी मुराद गीता से है जिसमें श्री कृष्ण अर्जून को युद्ध करने पर उभारते हुए कहते है कि युद्ध करना ही तुम्हारा धर्म है अगर युद्ध नहीं करोगे तो अधर्म हो जायेगा।
मेरा दूसरा प्रश्न है कि - आर्यो के द्वारा भारत पर आक्रमण कर यहाँ के मूल निवासियों पर अत्याचार करना और उनको दास और ‘
शूद्र बना देने का प्रेरणा स्रोत आखिर कौन है?
अगर आपको नहीं मालूम तो मैं बताता
हूँ।
वेदों के ये मंत्र देखें -
1. हमारे चारों ओर दस्यू जाति के लोग हैं वह यज्ञ नहीं करते कुछ मानते नहीं, वह अन्यवृत व अमानुष हैं । हे ‘
शत्रु हन्ता इन्द्र तुम इनका वध करो । (ऋगवेद 10-22-8)
2. इन्द्र तुम यज्ञाभिलाषी हो जो तुम्हारी निन्दा करता है उसका धन आहरत करके तुम प्रश्न होते हो, प्रचुरधन इन्द्र तुम हमें दोनों जांगों के बीच छुपा लो, और ‘
शत्रुओं को मार डालो । (ऋगवेद 8-59-10)
3. हे इन्द्र तो समस्त अनआर्यो को समाप्त कर दों । (ऋगवेद 1-5-113)
4. धर्मात्मा लोग अर्धमियों का नाश करने में सदा उधत रहते हैं । (अथर्व वेद 12-5-62)
5. उसकी दोनों आंखे छेद डालो, ह्रदय छेद डालो, आंखे फोड डालो, जीभ को काटो और दांतों का तोड डालो । (अथर्व वेद 5-29-4)
6. धर्मात्मा लोग धर्महित कार्यो से प्रिय व्यवहार करें । और दुष्टों को कष्ट देते रहें । (अथर्व वेद 12-3-49)
इस प्रकार के कई सौ मंत्र वेदों में हैं । मैं जानता हूँ कि आप इनका अर्थ बदलने का प्रयास करेंगे परन्तु आपके इस कथन के सन्दर्भ में --
‘‘ क्या उसामा बिन लादेन आदि को इस्लाम की सही जानकरी नहीं, और केवल सैकुलरिस्टों को ही सही ज्ञान है’’
मैं भी पूछना चाहता हूं कि दयानन्द पाण्डे और साध्वी प्रज्ञा, देवेन्द्र गुप्ता को हिन्दू धर्म की सही जानकारी नहीं और संघ प्रचारकों को ही सही ज्ञान है ।
प्रस्तुति
डा
. मुहम्मद असलम कासमी
मिल्लत उर्दू एकेडमी
मौहल्ला सोत, रुड़की
दिनांक 12-5-2010
Saturday, May 22, 2010
ब्लॉग की दुनिया में भी भांत भांत के लोगों से मुलाक़ात होती हे .अब देखिये न एक हे लफ़्ज़ों के जजीरे की शाहजादी वह कहती हें की उनका ईमान खतरे में हे ,क्यों
Saturday, May 8, 2010
श्री महक जी आज एक मुद्दत के बाद ब्लॉग खोला तो आप नज़र आए ,श्री आनन्द जी ने आप की
May 8, 2010 11:02 AM
Post a Comment
Friday, April 30, 2010
हिन्दू राष्ट्र - सम्भव या असम्भव?
- आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के चौदहवें अध्याय का अनुक्रमिक तथा प्रत्यापक उत्तर(सन 1900 ई.). लेखक: मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी
मुकददस रसूल बजवाब रंगीला रसूल . amazon shop लेखक: मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी
- '''रंगीला रसूल''' १९२० के दशक में प्रकाशित पुस्तक के उत्तर में मौलाना सना उल्लाह अमृतसरी ने तभी उर्दू में ''मुक़ददस रसूल बजवाब रंगीला रसूल'' लिखी जो मौलाना के रोचक उत्तर देने के अंदाज़ एवं आर्य समाज पर विशेष अनुभव के कारण भी बेहद मक़बूल रही ये 2011 ई. से हिंदी में भी उपलब्ध है। लेखक १९४८ में अपनी मृत्यु तक '' हक़ प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश'' की तरह इस पुस्तक के उत्तर का इंतज़ार करता रहा था ।
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
हक़ प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश amazon shop
- आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के चौदहवें अध्याय का अनुक्रमिक तथा प्रत्यापक उत्तर(सन 1900 ई.). लेखक: मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी
- '''रंगीला रसूल''' १९२० के दशक में प्रकाशित पुस्तक के उत्तर में मौलाना सना उल्लाह अमृतसरी ने तभी उर्दू में ''मुक़ददस रसूल बजवाब रंगीला रसूल'' लिखी जो मौलाना के रोचक उत्तर देने के अंदाज़ एवं आर्य समाज पर विशेष अनुभव के कारण भी बेहद मक़बूल रही ये 2011 ई. से हिंदी में भी उपलब्ध है। लेखक १९४८ में अपनी मृत्यु तक '' हक़ प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश'' की तरह इस पुस्तक के उत्तर का इंतज़ार करता रहा था ।